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लड़कियों को समानता, सुरक्षा, सम्मान और मौलिक अधिकारों से वंचित करना पितृसत्तात्मक समाज के सामंती व्यवहार

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चंदा यादव

श में आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, लेकिन आज भी महिलाओं की घरेलू, सामाजिक, आर्थिक स्थितियों में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। सभी वर्ग की महिलाएँ इस पितृसत्तात्मक समाज के सामंती व्यवहार से जूझ रहीं है।

पितृसत्तात्मक समाज में पुरुषों को महिलाओं से श्रेष्ठ माना जाता है, जिससे पुरुषों को लगता है कि उन्हें महिलाओं पर शासन करने और नियंत्रित करने का अधिकार है जिसके कारण घरेलू हिंसा होती है। महिलाओं और लड़कियों को समानता, सुरक्षा, सम्मान और मौलिक अधिकारों से वंचित करना ये भी अमानवीय व्यवहार है।

वाराणसी के सीरगोवर्धनपुर की एक महिला शीला ने कहा कि, ‘इस हिंसा की कोई वजह नहीं होती है फिर भी हमें अनावश्यक रूप से अपने पतियों की भद्दी-भद्दी गालियां सुननी पड़ती है और मार खाना पड़ता है। हमलोग दिन भर काम भी करते हैं और बेतहाशा उनकी मार भी खानी पड़ती है’।

चंदौली जिले की भी एक महिला विमला की उम्र अभी मात्र 30 साल है वह भी इसी तरह की प्रताड़ना की शिकार हैं। वह असंगठित क्षेत्र में काम करती हैं और अपने पति के साथ अपने परिवार को बराबर का आर्थिक सहयोग करती हैं, वह बताती हैं कि, ‘जब हम काम से लौटते हैं तो पति हमसे तमाम सवाल करते हैं और वह हमारे कपड़ों को भी चेक करते हैं कि हम काम पर कैसे कपड़े पहन के गए थे।’

वाराणसी जिले के सुसुवाही की महिलाओं से घरेलू हिंसा पर बातचीत के दौरान एक महिला ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि ‘ऐसा नहीं है कि हमलोग अपने घरों में सुरक्षित हैं हम महिलाओं के लिए कही भी सुरक्षित जगह नहीं है। हमारे अपने ही घर में हमारे साथ हिंसा होती है। पति हमारे साथ हमेशा मारपीट करते रहते हैं। चाहे वो शराब के नशे में हों या सामान्य स्थिति में हों। घर खर्च के लिए पैसे मांगने या उनके मनपसंद का खाना नहीं बनने पर भी मार पड़ती है। अगर हम बीमार भी पड़ते है तो हमारे पति हमसे दवा वगैरह के लिए नहीं पूछते हैं बल्कि वो हमारे ऊपर उल्टा आरोप लगाते हैं कि हम बीमारी का बहाना लगाए हैं।

देश में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कुल 4,71,684 मूल मामले और 21,088 अपीलें लंबित हैं। नालसा ने 1 जुलाई, 2022 तक घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत लंबित मामलों के निपटान के संबंध में राज्यवार डेटा प्रस्तुत किया है. आंकड़ों के अनुसार, अधिनियम की अधिसूचना के बाद से 1 जुलाई 2022 तक देश भर में घरेलू हिंसा के कुल 1,193,359 मामले दर्ज किए गए हैं। देश में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में 30 जून, 2022 तक 7,27,788 केस का निपटारा हुआ है. वहीं, 4,71,684 केस अब भी अदालतों में लंबित हैं।

आज़ादी और अधिकारों की लड़ाई के इतने सालों बाद भी महिलाओं के प्रति हिंसा को लेकर समाज के बड़े हिस्से में एक सहज स्वीकार्यता बनी हुई है। इसको लेकर समाज मे उस तरह की बेचैनी बिल्कुल नहीं है जैसी अन्य सामाजिक हिंसाओं के प्रति है। महिलाएं आज भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं। महिलाओं के प्रति पितृसत्तात्मक समाज की बर्बरता खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है।

यूनाइटेड नेशन पापुलेशन फंड रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग दो-तिहाई विवाहित महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हैं। आए दिन हमारे आस-पास, अखबारों या न्यूज़ चैनलों में घरेलू हिंसा की खबरें सुनने को मिलती हैं। घरेलू हिंसा के अलग-अलग रूप होते हैं शारिरिक, मानसिक, यौनिक और आर्थिक हिंसा। हमारे सामाज की संरचना ऐसी है जहाँ महिलाओं को पुरुषों के संरक्षण में रखा जाता है, पहले पिता फिर पति और बाद में बेटा। अगर कोई महिला अपने स्वतंत्र जीवन के लिए किसी पुरुष के संरक्षण में न रहकर अकेले रहने का फैसला लेती है तो समाज के तथाकथित लोग और परिवार वाले उस महिला को प्रताड़ित करना शुरू कर देते हैं। इन सब में घरेलू हिंसा का शिकार ज्यादातर विवाहित महिलाएं होती हैं। जिनके पति उस महिला के साथ बेवज़ह या छोटी-छोटी बातों के लिए मारपीट करते हैं।

जब भी महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा होती है तो अक्सर निजी मामला कहकर उस हिंसा को दबाने की कोशिश की जाती है और ये कहा जाता है कि ये ये पति-पत्नी का आपसी मामला है, अगर तुम्हारा पति तुम्हें मारपीट या गली-गलौच कर भी रहा है तो ये कौन सी बड़ी बात है? ये सब तो पति या घर के पुरुष करते ही हैं। समाज का नजरिया इस तरह से विकसित किया गया है कि पति के मारपीट को सह लेना चाहिए। लड़कियों और महिलाओं की अगर गलती ना भी हो तो उन्हें दबा के रखना चाहिए क्योंकि वो पुरुष नहीं हैं महिला हैं। और अगर कोई महिला इस हिंसा के ख़िलाफ़ हिम्मत जुटा के आवाज़ उठाती है तो उसे घर-परिवार के इज़्ज़त के साथ जोड़ दिया जाता है। उन्हें चुप कराने के लिए परिवार के लोग अलग-अलग प्रकार के हिंसात्मक तरीके अपनाते हैं। आधी आबादी महिलाओं की होने के बाद भी उनके साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया जाता है।

घरेलू हिंसा के प्रति घर की महिलाएं जब विरोध करती है तो लोग उसके ऊपर तमाम तरह के आरोप लगाते हैं जिसमें उसका चरित्र हनन करना सबसे ऊपर होता है। सामाजिक बदनामी का डर दिखाकर उसे देहरी के भीतर कैद करने का प्रयास किया जाता है। महिलाएं समाज में बदनामी के कारण इस आभासी प्रतीक के सामने चुप हो जाती हैं। समाज में यह सोच है कि घरेलू हिंसा की बात घर में ही रहे बाहर किसी को पता न चले। हमने बचपन से अपने घरों में यही देखा और सुना है, कहा जाता है कि अगर दो थप्पड़ मार दिया तो क्या हो गया? पति है तुम्हारा, जैसा है इसी के साथ सहन करके बिताना होगा। बहुत सी महिलाएँ जब इस प्रताड़ना को झेल नहीं पाती हैं तो वो आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाती हैं या डिप्रेशन का शिकार हो जाती हैं। इस तरह की अमानवीयता की खबर अखबारों और न्यूज़ चैनलों में हर रोज मिलती है।

महिलाओं की सुरक्षा के लिए मजबूत संवैधानिक ढांचे, खासकर सख़्त घरेलू हिंसा कानून 2005 होने के बावजूद देश में हर तीन महिलाओं में से एक महिला घरेलू हिंसा की शिकार है। घरों में होने वाली हिंसा के ज्यादातर मामलों की रिपोर्ट महिलायें नहीं दर्ज करा पाती हैं क्योंकि महिला आर्थिक रूप से अपने परिवार या पति पर निर्भर होती है। महिलाएं शारिरिक हिंसा के साथ-साथ आर्थिक हिंसा भी झेलती हैं। आर्थिक शोषण नियंत्रण करने का सबसे बड़ा रूप है। हिंसात्मक व्यवहार करने वाला व्यक्ति महिलाओं के पैसे, रहने की जगह, भोजन अन्य जरुरत की चीजों को प्रतिबंधित कर देता है ताकि उसका वर्चस्व महिला पर बना रहे।  महिला जब अपने साथ हुई हिंसा के खिलाफ कोर्ट-कचहरी में रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए चक्कर लगाती है तो उनके सामने आर्थिक संकट होता है। आर्थिक मजबूती न होने के कारण वह चुप लगा जाती हैं और मामले सामने नहीं आ पाते हैं। आज के समय में शारीरिक के साथ-साथ आर्थिक हिंसा भी महिला उत्पीड़न का बड़ा माध्यम बन चुकी है।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में एक तिहाई महिलाओं ने अपने साथ घरेलू हिंसा की बात मानी है। NFHS सर्वे के मुताबिक 18 से 49 साल की लगभग 30 प्रतिशत महिलाएँ ऐसी हैं जिन्हें 15 साल की उम्र के बाद शारिरिक हिंसा का सामना करना पड़ा है। 6 फ़ीसदी महिलाओं को जिंदगी में कभी न कभी यौन हिंसा झेलनी पड़ी लेकिन महज़ 14 फीसदी महिलाएँ ऐसी रहीं जिन्होंने अपने साथ हुई शारिरिक या यौन हिंसा की बात स्वीकार की है।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, देश में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कुल 4,71,684 मूल मामले और 21,088 अपीलें लंबित हैं।  नालसा ने 1 जुलाई, 2022 तक घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत लंबित मामलों के निपटान के संबंध में राज्यवार डेटा प्रस्तुत किया है. आंकड़ों के अनुसार, अधिनियम की अधिसूचना के बाद से 1 जुलाई 2022 तक देश भर में घरेलू हिंसा के कुल 1,193,359 मामले दर्ज किए गए हैं। देश में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में 30 जून, 2022 तक 7,27,788 केस का निपटारा हुआ है. वहीं, 4,71,684 केस अब भी अदालतों में लंबित हैं। नालसा के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में अधिनियम की अधिसूचना के बाद से कुल 2,02,880 मामले दर्ज किए गए हैं, जिससे यह सबसे अधिक मामला दर्ज करने वाला राज्य बन गया है, इसके बाद महाराष्ट्र में 1,96,717 मामले दर्ज किए गए हैं।  1 जुलाई तक मूल मामलों की अधिकतम संख्या उत्तर प्रदेश में 1,19,684 लंबित है, इसके बाद महाराष्ट्र में 84,637 मामले, राजस्थान में 27212 मामले और दिल्ली में 27043 मामले लंबित हैं।

जब पति का अत्याचार बढ़ जाता है और हम लोग अपने घर-परिवार या मायके वालो से शिकायत करते हैं तो हमें ही गलत ठहराते है और कहा जाता है कि थोड़ा सह लो। अगर किसी काम से कहीं जाना हुआ या किसी रिश्तेदार के यहां जाने के लिए इजाजत मांगते हैं तो वो मना करते हुए कहते हैं कि अगर गई तो तुम्हारा पैर तोड़ देंगे। बात-बात में मार खानी पड़ती है, अपनी इच्छा से हम लोग घर से बाहर निकल भी नहीं सकते हैं। कभी-कभी तो सास-ससुर पति दहेज के लिए भी ताना देते हैं कि तुम्हारे मायके वालों ने क्या दिया है और पति द्वारा बार-बार ये धमकी दी जाती है कि यहाँ तुम्हारा कुछ नहीं है ये मेरी संपत्ति है मैं मालिक हूँ इस घर का मैं तुम्हें इस घर से निकाल दूँगा अगर तुम मेरे अनुसार नहीं रही तो। समय तो बदल रहा है हम लोग बाहर काम के लिए भी जाते है लेकिन ये जो घरेलू हिंसा है ये खत्म नहीं हो रही है।”

शिक्षा का अभाव भी महिला हिंसा का एक बहुत बड़ा कारण है। महिलाएँ जब शिक्षित होंगी तभी वो आर्थिक मजबूती हासिल कर पाएंगी। महिलाओं में शिक्षा और संपत्ति का स्तर जब बढ़ेगा तभी हिंसा की घटनाएं भी कम होंगी। घरेलू हिंसा पर कई सारे साहित्य और कविताएं लिखी गईं और फिल्में भी बनाई गई हैं। थप्पड़ और डार्लिंग फ़िल्म में पत्नी के साथ पति द्वारा की गई हिंसा को दिखाया गया है। कवि प्रभात की एक कविता है, जिसमें घरेलू हिंसा करने वाले पुरुषों के सामाजिक सम्मान और स्थिति को बखूबी चित्रित किया गया है और दिखाया गया है कि तमाम हिंसक व्यवहार के बावजूद पुरुष समाज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और वह समाज में गर्व से रहता है।

साल भर पहले ही जिसने हत्या की है/अभी वह दूसरी क्षुद्रताओं में लिप्त है/ समाज में उसके उठने-बैठने की जगह सीमित नहीं हुई है/ औरतों में वह अभी भी उनका देवर है/ जेठ है / पुरुषों में वह अभी भी / उनका भाई है / भतीजा है जिनकी बेटी को उसने मार दिया / वे अभी भी उसे अपना जँवाई मानते हैं / वार-त्योहार पर बुलाते हैं।

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