“संजय कनौजिया की कलम”✍️
बिहार ने इस यह तो स्पष्ट कर दिया कि देश का अगला प्रधानमन्त्री कौन होगा और यह भी तय कर लिया है कि इस बार प्रधानमंत्री बिहार से ही होगा..ऐसा हो गया तो उस स्थिति में बिहार के मुख्यमंत्री तेजश्वी यादव होंगे और प्रधानमंत्री नितीश कुमार..ऐसे में बिहार और केंद्र में एक विचारधारा की सरकार होगी और लालू यादव का वह महत्वपूर्ण मुद्दा..जो बिहार को “विशेष राज्य के दर्ज़ा” दिलाने हेतू है, वह पूर्ण होगा..उस आधार पर बिहार की पिछड़ी आर्थिक स्थिति को देखते हुए “विशेष पैकेज” आसानी से उपलब्ध हो सकेगा..जिससे रोजगार के अधिक अवसर खुलेंगे..शिक्षा, चिकित्सा, यातायात के माध्यम, तेजी से चुस्त-दुरुस्त होंगे..बाढ़-सुखाड़ जैसी प्राकर्तिक आपदाओं से उत्पन होने वाली समस्याओं का निदान होगा..हर क्षेत्र में बिहार का नवनिर्माण होगा देश के उन्नत राज्यों के मुकाबले बिहार भी अपना स्थान स्थापित करने में आगे आएगा, तब बिहार का नौजवान किसी अन्य राज्य में काम की तलाश की अभिलाषा लेकर नहीं जाएगा..तब वह बिहार के उत्थान में ही सहयोग कर अपनी आजीविका भी चलाएगा.. यानी बिहार फिर से मध्यकाल के स्वर्णिम युग की तरह चमकेगा जैसे चन्द्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक के काल में अपनी पहचान बनाये हुए था..और लालू यादव “द-ग्रेट किंग मेकर” कहलायेंगे..यह कोई कोरी कल्पना नहीं, बस जरुरत है कि तमाम विपक्ष मजबूती से देश हित में, अपनी-अपनी महत्वकांक्षाओं को तिलांजलि देते हुए लालू यादव और नितीश कुमार द्वारा विपक्षी एकता के प्रयासों में एकजुट हो सकें..और एक “कॉमन-मिनिमम कार्य्रक्रम” जिसमे देश के अन्य राज्यों का एवं उन राज्यों के जनमानस का भी उत्थान जुड़ा हो..विपक्षी एकता में, एक बात और भी स्पष्ट होनी चाहिए..चूँकि एक मंच पर विपक्ष पहले भी एकजुट तो हुआ है, लेकिन जब-जब प्रांतों में तालमेल की बात आई है, तब सीटों को लेकर टकराव देखने को खूब मिले है और यही टकराव एकता में बाधा भी बने हैं..पहले-दूसरे व तीसरे स्थान में रहे उम्मीदवारों के वोट प्रतिशत के अर्थशास्त्र को लेकर यह मामले अक्सर देखने को मिलते हैं..यहाँ कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी को अपना-अपना उदार रुख दिखाना होगा..कांग्रेस को बड़ी पार्टी और फ्रंट-फुट पर खेलने के गुमान का आभूषण उतार कर विचार करना होगा, हालांकि अब राहुल गांधी परिपक्व हो चुके हैं, उनसे इस ओर आशाएं भी ठोश रूप से बन रहीं हैं..बहुजन समाज की सुप्रीमो, मायावती की इच्छाओं का सम्मान करना होगा, लेकिन देश हित और बहुजन हित को देखते हुए, मायावती को भी अपने अड़ियल रुख में बदलाव लाना होगा..वामपंथी दल अपना रुख साफ़ किये हुए है, उनका एक मात्र लक्ष्य भाजपा को हराने का है..लेकिन उसका यह मतलब नहीं की वामपंथिओं के एकता हेतू सुझाबों को हल्के में लिया जाए..उनके सम्मान को बरकरार रखना होगा, हालांकि कांग्रेस-बहुजन समाज पार्टी और वाम दलों के लिए लालू यादव की भूमिका बड़ी अहम रहेगी..लालू यादव के स्वास्थ्य में लगातार होते उतार-चढ़ाव के कारणों के अनुसार उनके द्वारा दिए एकता के सन्देश भी लाभदायक सिद्ध होंगे..इसके लिए ममता बैनर्जी और सीताराम येचुरी को, बंगाल में कांग्रेस के सम्मान को भी देखते समझते हुए बैठक करने की जरुरत है..यह संभव है क्योकिं बंगाल में भाजपा के पास आज 18 सांसद हैं..वहीँ दूसरी ओर वाम दलों को केरला में भी कांग्रेस के सम्मान का ख्याल रखना होगा, और कांग्रेस को भी इन दोनों राज्यों में अपना उदार रुख दिखाना होगा..यहाँ हर दल के उदार रुख का तात्पर्य यह है, कि तमाम विपक्ष सीटों का इस तरह से “सोशल-इंजीनियरिंग” करें कि देश की सभी 543 सीटों पर हर उमीदवार अपने 50% (प्रतिशत) वोट के साथ चुनाव के रण में उतर सके, तथा लालू यादव अनुसार देश का नेता, “नितीश कुमार” को स्वीकार कर लें, तो तब सब कुछ संभव है..तब कल्पना भी हक़ीक़त सिद्ध हो सकती है..तभी “भाजपा मुक्त भारत” का लक्ष्य पूरा हो सकेगा..!
बिहार में समाजवादी क्या इक्कट्ठे हुए कि भाजपा और मोदी की छटपटाहट..उनके मुख और हावभाव पर साफ़ देखने को मिल रही है..कुछ भी इन्हे सूझ नहीं रहा..2024 के चुनाव को देखते हुए, यह फासीवादी जो रणनीति बना रहे थे..मानो उन पर गाज ही गिर गई हो..”अधर्म जब सर चढ़ जाता है तो बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है”..सत्ता की मद में चूर इन अधर्मियों का नाश समाजवाद ही कर सकते हैं..डॉ० अंबेडकर और डॉ० लोहिया का सिद्धांत ही, इन अधर्मियों के लिए ब्रम्हास्त्र साबित होगा..ऐसा नहीं कि भाजपा के चाणक्य या रणनीतिकार यह नहीं समझते होंगे, कि 2014 में भाजपा के खिलाफ तब भी 65% (प्रतिशत) वोट जनता ने खिलाफ डाला था..यदि पुलवामा हादसे से उपजी राष्ट्रीयता की भावना पैदा ना हुई होती तो 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की स्थिति इतनी सुखद ना होती, 2019 में भी भाजपा को 60% (प्रतिशत) देश की जनता ने, खिलाफ ही वोट डाला था..लेकिन कुछ राष्ट्रीयता की भावना और कुछ विपक्षी एकता का आभाव भाजपा को 40% वोट के आधार पर उसके गठबंधन के साथी दलों सहित बम्पर जीत दिला गया था..भाजपा जैसी कुटिल पार्टी या उसके चाणक्य इस ओर नहीं सोचते होंगे, यह कहना भी उचित ना होगा..लेकिन विपक्ष भी यह समझता है, कि आज भी भाजपा के साथ 40% (प्रतिशत) वोट है..जिसमे 30% उसका कट्टर वोट है..अतः विपक्ष को फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाना पड़ रहा है..और उसपर भाजपा की गोद में बैठा मीडिया, जिसकी नाट्य शैली से पूरा देश अवगत हो चुका है, और उसपर भाजपा का बेशुमार धन..उसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छटपटाहट, अभी दो ही दिन पहले मोदी, केरला में एक जनसभा को सम्बोधित कर, विपक्ष पर भ्रष्ट्राचार को लेकर प्रभावहीन तंज कस्ते दिखाई दिए..जिसका माकूल जवाब मुख्यमंत्री नितीश कुमार और उपमुख़्यमंत्री तेजश्वी यादव ने दिया..आश्चर्य होता है कि प्रधानमंत्री मोदी, भ्रष्ट्राचार पर विपक्ष को घेर कैसे सकते हैं ?..स्वयं शीशमहल में बैठें है और विपक्ष के घरों पर पत्थर फेंक रहे हैं….
धारावाहिक लेख जारी है
(लेखक-राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)