अग्नि आलोक

अधर्म का नाश होजाति का विनाश हो*(खंड-1)-(अध्याय-42)

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संजय कनौजिया की कलम”✍️

मोदी एंड कंपनी का तो इस बार जाना तय है, यह समाजवादियों ने ठान लिया..बिहार से प्रधानमंत्री हो यह देश हित में शुभ भी होगा, परन्तु एकजुटता का प्रयास केवल प्रधानमंत्री के पद के लिए हो, तब यह प्रयास कारगर नहीं होगा और उस स्थिति में विपक्षी एकता में खलल भी पैदा होगा..आज विपक्ष के हर छोटे-बड़े दल के लगभग अधिकतर सुप्रीमो अपने-अपने राज्य के इतने वरिष्ठ व अनुभवी नेता हैं, कि प्रधानमंत्री बनने की काबलियत रखते हैं..इस पेंच को समझते हुए एकता का प्रयोग करना है..प्रयोग की इस स्थिति को लालू यादव खूब जानते हैं और नितीश कुमार का भी यही मंतव्य है, इसीलिए तो बिहार को राजनीति की प्रयोगशाला कहते हैं..कल दिनांक-5 सितम्बर 2022 को, नितीश कुमार पहले लालू यादव से मिले और एकता के सूत्र का फार्मूला लेकर, तीन दिनों की यात्रा पर दिल्ली आ गए हैं..जहाँ नितीश कुमार अधिकतर विपक्षी दलों के नेताओं से मिलकर “सत्ता परिवर्तन” या यूँ भी कहा जा सकता है “व्यवस्था परिवर्तन” को लेकर सबको गोल-बंद करेंगे, सबकी राय लेंगे, आगे एकजुट होकर चलने हेतू सुझाब लेंगे और हो सकता है सीटों के तालमेल की “सोशल-इंजीनियरिंग” पर भी बात हो..अब आगे क्या होगा, एकजुटता का कैसा स्वरुप होगा यह लालू यादव के राजनीतिक विवेक और नितीश कुमार के कौशल पर छोड़ देना चाहिए..लेकिन जो भी होगा शुभ होगा, क्योकि इस प्रयोग के प्रयासों में..देश के 90% (प्रतिशत) आबादी की सभी समस्याओं की पीढ़ा साथ होगी..त्राहिमाम-त्राहिमाम की वेदना रुपी गूँज की अनुगूंज जो पूरे भारत वर्ष में सुनाई पड़ रही है, वह साथ होगी..5 सितम्बर, 22 को “अधर्म के नाश” का बिगुल, बिहार ने फूंक दिया है.. यही समाजवाद की ख़ूबसूरती है..इसी को कहते हैं बाबा साहब डॉ० भीम राव अंबेडकर और डॉ० राममनोहर लोहिया के द्वारा दिखाई राजनीतिक “दशा और दिशा”..!
देश का बहुत ही बड़ा प्रबुद्ध लोगों का तबका, जिसमे विद्वान, साहित्यकार, कवि, शायर, कला क्षेत्र के कलाकार, अभिनेता, खिलाड़ी तथा वह प्रशासनिक अधिकारी जो रिटायर्ड हो चुके है या अपने समय पर होंगे, जैसे आई.ए.एस, आई.आर.एस, आई.पी.एस, आई.एफ.एस एवं सुप्रीम कोर्ट-हाई कोर्ट के रिटायर्ड या जिम्मेवारी सँभालें हुए जज..ई.डी, सी.बी.आई, इनकम-टैक्स अधिकारी, लेखक, पत्रकार आदि इत्यादि सभी वर्गों के प्रबुद्ध जन, जो दबाव और भय से ख़ामोशी अख्तियार किये हुए हैं..इन वर्गों के प्रबुद्धों को इससे मतलब नहीं, कि प्रधानमंत्री का चेहरा कौन होगा..उन्हें केवल विपक्षी एकजुटता की मजबूत गारंटी से मतलब है..यह सब चाहते हैं कि विपक्ष की एक ऐसी एकता सामने आए जो, मोदी एंड कंपनी के अधर्म का नाश कर सके..उस स्थिति में यह तमाम प्रबुद्ध वर्ग बेख़ौफ केंद्र सरकार के खिलाफ खड़ा हो जाएगें..जिस मीडिया को केंद्र सरकार ने भोग-विलासी बनाकर अपने पक्ष में कर, पत्रकारिता के मूल सिद्धांत से भटकाया है, और अपने गुणगान तथा महिमा-मंडन हेतू तैयार किया है, यही भटकाव का प्रक्षिक्षण, मोदी सरकार के लिए अभिशाप जैसा साबित हो सकता है..ठीक उसी तर्ज़ पर जिस तरह लाल क़िले पर, मस्त-नृत्य-मद्य के मद में चूर बेपरवाह ख्यालों का बादशाह “मोहम्मद शाह रंगीला” जिसे विदेशी आक्रांता “नादिर शाह” के आगमन का तब होश आया जब वह दिल्ली गेट तक पहुँच गया था..इस बार केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ, बिहार के आह्वान पर देश का किसान-मजदूर, शोषित-उपेक्षित-वंचित-गरीब वर्ग जैसे ही खड़ा हुआ, तब प्रधानमंत्री को होश आया, तभी वह केरल में भ्रष्ट्राचार-भ्रष्ट्राचार कहते सुनाई दिए..प्रधानमंत्री को समझ लेना चाहिए कि उन्होंने जनता का भरोसा खो दिया..इसके जिम्मेदार स्वयं प्रधानमंत्री हैं और उनके सलाहकार एवं गोदी मीडिया सहयोगी है..जो सदैव नरेंद्र मोदी के महिमामंडन में लिप्त रहे, और प्रधानमंत्री स्वप्न एवं अहंकार के आभूषण पहनकर अधर्म को चरम पर ले आए..जनता तो दोषी हो नहीं सकती, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ वायदे किये थे..जनता ने उन्हें वायदों के आधार पर मौका दे दिया..जब जनता ने महसूस किया कि ये सब झूठ के पुलिंदे साबित हुए, तो कोई कैसे भरोसा करेगा..आखिर किस वर्ग के काम आए प्रधानमंत्री ?..क्या किसी दलित वर्ग का कुछ काम हुआ ? क्या पिछड़े वर्ग के काम आए ? अल्पसंख्यकों के तो प्रधानमंत्री दुश्मन ही बने रहे, उनकी पहचान उनकी पोशाकों से करते रहे..यहाँ तक की सवर्ण कहे जाने वाले वर्ग तक के काम नहीं आए..सिवाए अपने दो चहेते पूंजीपतियों अडानी-अम्बानी के तथा चापलूस भगोड़ों के..स्वयं प्रधानमंत्री जनता के खून-पसीने से लिए गए टैक्स के पैसों से आलीशान, तड़क-भड़क और आन-बान-शान की जिंदगी जीते हुए दिखाई पड़ते हैं..एक दिन का प्रधानमंत्री पर कितना खर्च होता है..इसका आने वाली नई सरकार ऑडिट करा लेगी..चकाचोंध वाला निवास, सबसे महंगी गाड़ियां..रावण की तर्ज़ पर लिया पुष्पक विमान..जहाँ देश की जनता के उत्थानो हेतू निर्माणों की मद में राशि खर्च होनी चाहिए थी..वहां अपने सुख के लिए सैनट्राविस्टा प्रोजेक्ट के तहत नई संसद के निर्माण में 20 हज़ार करोड़ की राशि को बेमतलब के लिए खर्च करना जैसा तुगलकी फरमान के हिसाब-किताब का सारा ब्यौरा आने वाली नई सरकार अवश्य लेगी.. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुख से भ्रष्ट्राचार जैसा शब्द अब किसी सियार सा प्रतीत होता है..!
ये कहने में कोई अतिश्योक्ति ना होगी कि भ्रष्ट्राचार देश और देश के सभी प्रांतों का एक अत्यंत ही ज्वलंतशील मुद्दा होता है..देश का जनमानस इसे कभी स्वीकार नहीं करता..1974 में जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन में भी भ्रष्ट्राचार का मुद्दा केंद्र में आ गया था..1989 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के ऊपर बोफोर्स घोटाले को भी देश ने स्वीकार नहीं किया था..लेकिन बाद में देश की अदालत ने उन्हें बरी कर दिया था..उसके बाद राजनीति में नए पाक-पाकीजा लोग आए सबकुछ फ्री देने के लोकलुभावन वायदे लेकर..वर्ष 2013 में, दिल्ली राज्य के चुनाव में कॉमनवेल्थ खेलों में हुए घोटालों का आरोप मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर मढ़ा गया..जनता ने तब भी स्वीकार नहीं किया….

धारावाहिक लेख जारी है
(लेखक-राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)

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