अग्नि आलोक

अधर्म का नाश हो *जाति का विनाश हो*(खंड-1)-(अध्याय-31)

Share

संजय कनौजिया की कलम”✍️

राजनीतिक हस्तक्षेप और हस्ताक्षर के बिना यह आंदोलन सरकार को डिगा ना सका और पांच राज्यों के चुनावों को देखते हुए “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी” ने बड़ी चालाकी द्वारा झूठे वायदे कर इस आंदोलन को खत्म करवा दिया..लेकिन 700 से भी अधिक किसानो के बलिदान के बाद, जबकि किसानो की इन मौतों की जिम्मेदारी केवल मोदी सरकार की ही बनती है..किसानो का कहना है की आंदोलन खत्म नहीं हुआ बल्कि उचित वक्त तक मांगें ना पूरी हुईं तो आंदोलन फिर शुरू होगा, यानी किसानो ने आंदोलन खत्म नहीं सिर्फ स्थगित किया है..!
उक्त सभी बिंदुओं अनुसार गैर-राजनीतिक आंदोलन सफल नहीं होते, या तो उसे कुचल दिया जाता है या कूटनीतिक षड्यंत्र के तहत समाप्त करवा दिया जाता है..यह फर्क होता है, “आंदोलन और अभियान”..में, यह कहना चाहूंगा कि सिर्फ एक आंदोलन को छोड़कर जो “राम जन्म भूमि आंदोलन” के नाम से हुआ था अपने 97 वर्ष से सक्रिय हिन्दूवादी संगठन “आरएसएस” (RSS) ने कभी कोई आंदोलन किया है..?? वह सिर्फ अभियान चलाने वाला संगठन है..यह वो संगठन है जिसने स्वतंत्रता संग्राम में कोई हिस्सा ना लेकर केवल अंग्रेजो का साथ दिया था और हर संभव, आरएसएस स्वतंत्रता आंदोलन को कमजोर करने के षड्यंत्र रचती रही..जबकि विभिन्न स्त्रोतों से आजादी की जो इच्छा और उसे हासिल करने की जो ताक़त भारत में बनी थी, उसके अंतिम प्रदर्शन, “भारत छोड़ों आंदोलन-9 अगस्त, 1942” के सबसे प्रभावशाली व असरदार, जिसमे अग्रणी भूमिका समाजवादियों की रही थी, जिसमे हज़ारों-हज़ार लोगों ने अपना बलिदान देकर सींचा था उस आंदोलन में आरएसएस के अनुयायियों, गोलवरकर-दीनदयाल उपाध्याय-बलराज मधोक-लालकृष्ण आडवाणी या अन्य आदि, लोगों ने उस महान मुक्ति आंदोलन में किसी भी तरह का कोई हिस्सा नहीं लिया था, क्योकिं आरएसएस, अंग्रेजो और सावरकर का पिछलग्गू था..देश की आजादी के बाद, आरएसएस का एकमात्र लक्ष्य रहा कि भारत को सनातन संस्कृत के मूल्यों के आधार के साथ कैसे खुशहाल और समृद्धशाली देश बनाया जाए इसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतू उसने एक नए अभियान की शुरुआत की.. बालासाहब देवरस का यह ब्यान संघ प्रचारकों के खिलाफ लम्बा अभियान चलाने का संकेत जैसा था..बताया जाता है कि देवरस ने प्रचारकों से कहा था, आपको राममंदिर के मुद्दे पर आंदोलन तभी शुरू करना चाहिए जब आप इस लड़ाई को अगले तीन दशक तक एक अभियान के रूप में चलाने को तैयार हों..यह आपके धैर्य की परीक्षा की लड़ाई होगी, जो इस लड़ाई में पूरे धैर्य के साथ अंत तक लड़ता रहेगा, जीत उसी को होगी..इसके बाद संघ ने गोकशी के खिलाफ चलाए हस्ताक्षर अभियान की तर्ज़ पर एक साथ पूरे देश में आंदोलन छेड़ने की योजना बनाई..विश्वहिंदू परिषद, बजरंग दल, हिन्दू युवा वाहिनी आदि इत्यादि हिंदूवादी संगठनो ने इसमें बढ़चढ़कर अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर हिस्सा लिया..इस आंदोलन का मुखर होकर विरोध भी समाजवादी विचार धारा के नेताओं ने अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर किया..इस आंदोलन के हीरो लालकृष्ण आडवाणी ने अपने सबसे प्रिय शिष्य “नरेंद्र दामोदरदास मोदी” को अपने रामरथ यात्रा का सारथी बनाया..जैसे जैसे यह रथ यात्रा आगे बढ़ रही थी, धार्मिक भावनाओं से ग्रसित जन-समहू का सैलाब भी उमड़ रहा था.. लेकिन जैसे ही यह रथ बिहार की भूमि में प्रवेश किया, बिहार के युवा मुख्यमंत्री, समाजवादी नेता, गांधी-अंबेडकर-लोहिया-जयप्रकाश और कर्पूरी ठाकुर के अनुयायी “श्री लालू प्रसाद यादव” ने उस रथ पर लगाम ही नहीं लगाईं बल्कि आडवाणी को जेल में ठूंस कर “हीरो से जीरो” बना दिया था..यही एकमात्र कारण है कि लालू यादव आरएसएस की आँखों में खटकने लगे और उस कट्टरवादी विचारधारा के लगातार प्रतिशोध के षड्यंत्र रुपी दंश का शिकार होते चले आ रहे हैं..लेकिन बेजुबानो की जुबान और शोषित-उपेक्षित-वंचित जमात के सदाबहार नायक श्री लालू यादव की ताक़त यही जनता बनी रही और लालू यादव कभी आरएसएस के आगे झुके नहीं..आज बिहार के लोग ही नहीं बल्कि देशभर का हर सुलझा समझदार, सभ्य वर्ग जो राजनीतिक की समझ रखता है, वह लालू जी की हिम्मत का लोहा मानता है..इसी वजह से किसी अनाम कवि की यह खूबसूरत रचना..में, लालू जी के जीवन पर आधारित समझता हूँ..”मैंने उनको जब-जब देखा..लोहा देखा-लोहा जैसा..गलते देखा, ढलते देखा, बनते देखा..मैंने उनको जब जब देखा, चलते देखा-गोली जैसा..!
आज भी लालू जी की प्रासिंगिकता ज्यों की त्यों बरकरार है लेकिन हीरो से जीरो बने आडवाणी को उन्ही के प्रिय शिष्य और उनके रथ के सारथी नरेंद्र मोदी ने अज्ञातवास के कोप भवन में भेज दिया, और स्वयं सत्ता सुख का आनंद ले रहें हैं, क्या आरएसएस का अनुशासन यही है ?..इसी अनुशासनहीनता ने पूरे देश में “अधर्म” पैदा कर दिया है..क्या यह अधर्म नहीं ?..कि जिस राज्य की जनता भाजपा को विपक्ष में बैठने का मौका देती है वहां मोदी सरकार पैसो के बल व उच्च पद का लालच देकर, जोड़-तोड़ कर अपनी सरकार बना लेती है..सम्पूर्ण विपक्ष व क्षेत्रीय पार्टियों को खत्म कर देना चाहती है..सत्ता का दुरूपयोग कर खुले-आम अधर्म का नंगा नाच नाचा जा रहा है..सभी महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों का दुरूपयोग किया जा रहा है..सत्ता के मद में चूर मोदी सरकार ने अपने को अजेय मान लिया है.. कमंडलवादी मोदी सरकार समझने लगी है कि अब उन्हें कोई हरा नहीं सकता..वह इस ओर गंभीरता से चिंतन कर नहीं सकी, कि “सत्य परेशान तो हो सकता है लेकिन पराजित कभी नहीं हो सकता”..दिनांक-9 अगस्त, 2022 का, बिहार के मुख्यमंत्री “श्री नितीश कुमार जी”, ने जो ऐतिहासिक फैसला लिया है जिसमे लालू जी के साहसी पुत्र “तेजस्वी यादव” ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए मोदी सरकार से मुक्ति का मार्ग खोलने हेतू..उचित वक्त में उचित फैसला लिया है यह भारत के बिगड़ते स्वरुप को बचाने के लिए गांधी-अंबेडकर-लोहिया-जयप्रकाश-चरण सिंह-देवीलाल-बीजू पटनायक-मधु लिमय-वी.पी सिंह-चंद्रशेखर जैसे महान लोगों के अनुयायियों को संजीवनी की तरह उपयोगी साबित होगी..भाजपा को हराना असंभव नहीं, बल्कि संभव है, बशर्ते…

धारावाहिक लेख जारी है
(लेखक-राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)

Exit mobile version