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सीआरपीएफ के जांबाजों के पैसों पर डीजीपी का जश्न

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ब्रह्मदीप अलूने

आंतरिक सुरक्षा के सबसे बड़े प्रहरी सीआरपीएफ के अधिकारियों की तनख्वाह में से हर महीने एक निश्चित रकम सेंट्रल वेलफेयर फंड के लिए काट ली जाती है। जम्मू कश्मीर, पूर्वोत्तर हो या छत्तीसगढ़ के नक्सली इलाके में तैनात ये अधिकारी यह अपेक्षा करते है कि सेंट्रल वेलफेयर फंड में जमा उस पैसे का उपयोग कल्याणकारी कार्यों में खर्च होगा। युद्द जैसे मोर्चों पर तैनात सीआरपीएफ के लिए मिट्टी भरी थैलियां सुरक्षा कवच का काम करती है। कभी कभी इस अर्द्धसैनिक बल को उन मिट्टी की थैलियों के लिए भी बजट का इंतजार करना होता है।

लेकिन सबसे बड़े साहब यानि महानिदेशक के बिदाई समारोह में फंड की कोई कमी नहीं आती। 30 सितम्बर को सीआरपीएफ के डीजीपी कुलदीप सिंह रिटायर्ड हो गए। दिल्ली से सटे गुरुग्राम में सीआरपीएफ के सेंटर में इस मौके पर भव्य पार्टी का आयोजन किया जा रहा है। देशभर के विभिन्न इलाकों में तैनात नामचीन अधिकारियों और जवानों का चयन इस परेड में शामिल होने के लिए किया गया है।

पिछले कई दिनों से महानिदेशक की बिदाई पर होने वाले कार्यक्रमों और परेड की रिहर्सल कई बार की जा चूकी है। इसमें कमांड किसके जिम्मे होगी, ड्रिल किसे करवाना है, फ्लैग बियरर से लेकर कार्यक्रम के संचालन तक के लिए देश के कोने-कोने से अधिकारियों और जवानों को बुलाया गया है। साहब का बिदाई समारोह जो है, खाने से लेकर मेहमानों के रुकने तक, स्वागत सत्कार और सुख सुविधाओं के अम्बार तक भरपूर व्यवस्थाएं की गई है।

यह समूचा आयोजन गुलामी काल से अंग्रेजों द्वारा बनाई गई परिपाटी का हिस्सा है जिसमें राजसी ठाट बाट से सेना के सर्वोच्च अधिकारी को बिदा किया जाता था। गौरतलब है कि केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल क्राउन प्रतिनिधि पुलिस के रूप में 27 जुलाई 1939 को अस्तित्व में आया था। आज़ादी के बाद इसे केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल कहा जाने लगा। यह देश ही नहीं दुनिया का यह सबसे बड़ा अर्द्धसैनिक बल है। सीआरपीएफ़ की इस समय देश भर में लगभग 242 बटालियन है। जिसमें से 204 विशेष बटालियन, 6 महिला बटालियन, 15 आरएएफ बटालियन, 10 कोबरा बटालियन, 5 सिग्नल बटालियन और 1 विशेष ड्यूटी ग्रुप और 1 पार्लियामेंट्री ग्रुप हैं। इसकी एक बटालियन में करीब 1100 जवान होते हैं। इसमें प्रतिनियुक्ति पर आये महानिदेशक के अलावा तीन-तीन अतिरिक्त महानिदेशक और सात इंस्पेक्टर जनरल हैं। सीमा पर तैनाती से लेकर देश के भीतर तमाम तरह के ऑपरेशन में जुटे रहने के साथ संयुक्तराष्ट्र के शांति मिशन में भी सीआरपीएफ़ के जवान शामिल है। इसमें से चुनिंदा जांबाज़ अधिकारी और जवानों का चयन कोबरा बटालियन के लिए किया जाता है जो नक्सली इलाकों में तैनाती के लिए खास तौर पर बनाई गई है।

भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को सीआरपीऍफ़ से गहरा लगाव रहा। इसका एक प्रमुख कारण यह भी था कि देश में जब रियासतों का विलय हो रहा था,तब कुछ विद्रोही राजाओं को डंडे के बल पर समझाने का काम सीआरपीएफ ने ही किया था। आजादी के तुरंत बाद कच्‍छ,राजस्‍थान और सिंध सीमाओं में घुसपैठ रोकना हो या जम्मू कश्मीर में पाकिस्तानी घुसपैठियों के घुसने की कोशिश,सीआरपीएफ ने ही दुश्मन के इरादों को नाकाम किया था। पंजाब में खालिस्तानी आंदोलन को खत्म करना हो या उत्तर पूर्व में पृथकतावादी चरमपंथी ताकतों को रोकना,जम्मू कश्मीर में आतंकवाद हो या रेड कोरिडोर की चुनौती सीआरपीएफ की बिना आंतरिक सुरक्षा की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील स्थानों,चुनाव, दंगे, साम्प्रदायिक तनाव, आपदा से लेकर युद्द जैसी परिस्थितियों में लगातार काम करने वाले सीआरपीएफ के जवानों को अल्प सूचना पर और अक्सर बिना किसी पूर्व तैयारी के देश के किसी भी इलाके में भेज दिया जाता है। छत्तीसगढ़ के जंगलों में नक्सलियों से जानलेवा संघर्ष में अपनी जान गंवा देने का जोखिम,उत्तर पूर्व के गहरें बियाबानों में अलगाववाद हो या दक्षिण कश्मीर में आतंकियों से सामना, सीआरपीएफ़ ने चुनौतियों का लगातार सामना किया है और वे डटे भी हुए है। आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन,चरमपंथ और नक्सलवाद से निपटना,मतदान के समय तनावग्रस्त इलाकों में बड़े स्तर पर सुरक्षा व्यवस्था करना, भीड़ नियंत्रण, दंगा नियंत्रण, अति विशिष्ठ लोगों तथा स्थलों की सुरक्षा,पर्यावरण एवं जीवों का संरक्षण,युद्ध काल में आक्रमण से बचाव,प्राकृतिक आपदाओं के समय राहत एवं बचाव कार्य करना जैसी जिम्मेदारियों को सफलतापूर्वक सीआरपीएफ ने निभाया है और लगातार प्रभाव में भी है। पिछले दशकों में इसने अपने कौशल और दक्षता का परिचय देते हुए घरेलू मोर्चे पर शत्रु को कड़ी चुनौती दी है।

सीआरपीएफ के जवान साथियों की शहादत से अविचलित साहस और जोश के साथ अपने कर्तव्य को मुस्तैदी से निभा रहे है। देश के कई इलाकों में अलग अलग परिस्थितियों में काम करने वाले इस अर्द्धसैनिक बल के जवानों के बड़ी संख्या में मारे जाने का प्रमुख कारण बेहतर योजना का क्रियान्वयन रहा है और इसके समस्याग्रस्त होने के अनेक कारण भी है। भारतीय सेना से किसी भी मामले में कमतर न होने वाला यह अर्द्धसैनिक बल सुविधाओं के लिए भी मोहताज है और उन्हें पुलिस जैसा ही समझा जाता है।

पिछलें दिनों डीजीपी कुलदीप सिंह की एक प्रेस वार्ता बड़ी चर्चा में रही। इस साल 25 फरवरी को बिहार के जहानाबाद के घने जंगलों में नक्सलियों के साथ एक मुठभेड़ में सीआरपीएफ के असिस्टेंट कमांडेंट विभोर कुमार सिंह अपने दोनों पैर गंवा बैठे और गंभीर रूप से घायल हो गए। इस दौरान उन्होंने अदम्य साहस का परिचय देते हुए अपनी टीम की रक्षा की और घायल होते हुए भी नक्सलियों पर फायर करते रहे। इससे अंततः नक्सली भाग खड़े हुए और सीआरपीएफ के जवानों की रक्षा हो सकी। लेकिन 30 सितंबर को रिटायर हो रहे महानिदेशक ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि विभोर सिंह का बलिदान वीरता की श्रेणी में नहीं आता है। अत: उन्होंने वीरता पदक जैसे दावे को ही ख़ारिज कर दिया। यह भी दिलचस्प है कि जिस वक्त जंगल में सीआरपीएफ का ऑपरेशन चल रहा था,वहां आसपास के किसी भी बेस पर हेलीकॉप्टर मौजूद नहीं था। गया तक पहुंचने के लिए घायलों को एंबुलेंस में चार घंटे का सफर करना पड़ा। जब ये एंबुलेंस गया पहुंची तो रात को हेलीकॉप्टर उड़ाने की मंजूरी नहीं मिली। ऐसे में घायलों को 19 घंटे बाद दिल्ली एम्स में लाया गया। नतीजा,सहायक कमांडेंट विभोर ने अपनी दोनों टांगें खो दी और उनके एक हाथ की दो अंगुलियां भी काटनी पड़ी थी।

देश के इस सबसे बड़े अर्द्धसैनिक बल का मुखिया किसी आईपीएस को बनाया जाता है जबकि इन्हें युद्द जैसी परिस्थितियों में काम करने का कोई अनुभव नहीं होता है। यह आईपीएस प्रतिनियुक्ति पर केंद्र सरकार की और से भेजे जाते है और इनका कार्यकाल अमूमन 1 या दो साल का होता है। इतने कम समय में सीआरपीएफ की रीति नीति को समझना मुश्किल होता है और यही प्रमुख कारण रहा है कि दुश्मनों से सबसे ज्यादा जूझने वाला यह संगठन व्यवस्थागत कमियों से भी बेहाल है जिसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकाना पड़ रही है। आईपीएस अपने सेवाकाल के अंतिम एक दो साल में प्रतिनियुक्ति पर सीआरपीएफ में आते है,लिहाजा ऐसे बिदाई समारोह भी सीआरपीएफ में होते रहते है। विभोर सिंह को लेकर नियमों का हवाला दे दिया जाता है लेकिन बिदाई समारोह को लेकर सारे नियम तोड़ दिए जाते है। बहरहाल गरिमामय सादगी से दूर खर्चीली भव्यता का कार्यक्रम गुरु ग्राम में होने जा रहा है जहां सीआरपीएफ के जांबाजों के पैसों पर डीजीपी की बिदाई का जश्न मनाया जाएगा।

डॉ. ब्रह्मदीप अलूने उच्च शिक्षा, मध्य प्रदेश शासन के अंतर्गत राजनीति विज्ञान अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के प्राध्यापक है और डेढ़ दशक से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सेवाएं दे रहे हैं। राष्ट्रीय समाचार पत्र -पत्रिकाओं के नियमित कोलमनिस्ट है और राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय विषयों पर लगातार लिखते रहे हैं।

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