प्रखर अरोड़ा
पौराणिक मिथक की दृष्टि से राम और कृष्ण में एकमात्र समानता यह थी कि दोनों विष्णु के अवतार थे।
समानता होना सम्भव नही था. कृष्ण को पता था वह स्वयं विष्णु के अवतार हैं इसलिए बाल्यकाल से ही उन्होंने न सिर्फ चमत्कार और अमानवीय पराक्रम प्रदर्शित किया बल्कि अपना विराट स्वरूप भी दिखाया। राम को नहीं पता था कि वह विष्णु के अवतार हैं इसलिए राम ने उतने ही पराक्रम दिखाए जितनी एक मनुष्य की क्षमता होती है।
राम एकं पत्नी व्रता थे जबकि कृष्ण अष्टभार्या कहलाये। राम ने जन्म सूर्य वंश में लिया था यह स्थापित करने के लिए कि एक राजा को कैसा होना चाहिए। कृष्ण ने जन्म चन्द्रवंश में लिया था, यह स्थपित करने के लिए कि प्रजा को कैसा होना चाहिए।
राम ने अयोध्या पर राजा के रूप में ग्यारह हज़ार वर्षों तक राज किया और रामराज की स्थापना की। कृष्ण कभी राजा नहीं बने, न मथुरा के न ही द्वारिका के। अपनी बनाई नगरी में भी वो द्वारिकाधीश बने, यानी द्वारिका के संरक्षक।
राम राजतन्त्र के प्रतीक पुरुष थे जबकि कृष्ण प्रजातन्त्र के प्रतीक पुरुष। राम भाइयों में सबसे बड़े थे, उनका मर्यादित होना आवश्यक था इसलिए इस पहलू पर वह मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं। कृष्ण भाइयों में सबसे छोटे थे, उनका चंचल होना स्वाभाविक था, इसलिए वह लीला पुरुषोत्तम कहलाते हैं।
कृष्ण ने अपनी लीलाओं में पूतना को फंसाया, बकासुर को फंसाया। साड़ी की लीला रच दुःशासन को थकाया, गज़ अश्वत्थामा की लीला में द्रोणाचार्य को और शिखंडी की लीला रच भीष्म को फंसाया। इसके विपरीत राम स्वयं मरीच की लीला में फंस गए। सोने का हिरण नहीं होता, यह जानते हुए भी वह उसके पीछे गए।
मारीच से राम का यह दूसरा सामना था। पहली बार मारीच से उनका सामना ताड़का वध के समय हुआ था। तब राम ने उस पर दया दिखाई और उसका वध करने के बजाय एक वाण के प्रहार से सौ योजन दूर फेंक दिया था। पहली बार वह दया का पात्र था क्योंकि वह अपनी मां को बचाने का प्रयास कर रहा था किंतु इस बार वह रावण के कहने पर आया था इसलिए क्षमा और दया दोनों का ही पात्र नहीं था इसलिए एक ही वाण से राम ने उसे मार दिया।