Site icon अग्नि आलोक

चूड़ियाँ पहनाने की बात कर दम्भ और वैचारिक दीवालियेपन का मुजाहिरा

Share

राकेश अचल

करोड़ों के सरकारी विमान में उड़ान भरते हुए,हजारों किलो गुलाब और गेंदे के फूलों की महक को आत्मसात करते हुए चुनाव प्रचार करना ,नामांकन भरना आसान है लेकिन आम आदमी की तरह किसी सेलून में जाकर हजामत बनवाना कठिन काम है। कम से कम नामदार लोग तो ऐसा नहीं कर सकते ,लेकिन अंधभक्तों की नजर में पप्पू राहुल गांधी ने ऐसा कर दिखाया और देश को बिना एक शब्द कहे ये बता दिया कि असली कामदार और असली नामदार कौन है ?
संकीर्णता और आत्मग्लानि से उबरना बहुत कठिन काम है । देश का नेतृत्व करने वाले तमाम नेता अपनी हीनता और दीनता को छिपाने के लिए क्या कुछ नहीं करते। अब तो नौबत ये आ गयी है कि मध्यप्रदेश में केंद्र सरकार के एक मंत्री [जो स्वयंभू महाराज भी हैं ] कार की छत पर चढ़कर भांगड़ा करते हैं तो उनके कप्तान देश में नया चूड़ी उद्योग खोलने के संकेत दे रहे हैं। कोई सरकार किसी देश को चूड़ियाँ पहनाने की बात कर अपनी मजबूती का नहीं बल्कि अपने दम्भ और वैचारिक दीवालियेपन का मुजाहिरा कर सकती है।
चूड़ी भारतीय संस्कृति में महिलाओं का एक महत्वपूर्ण आभूषण है। कांच की चूड़ियां आम हाँ लेकिन ख़ास लोग और खासकर नकली कामदार सोने-चंडी की चूड़ियां भी अपने परिवार की महिलाओं को पहनाते हैं। फिरोजाबाद की चूड़ियां देश और एशिया में मशहूर है। चूड़ियों का कोई मजहब नहीं होता । चूड़ियां हिन्दू भी पहनते हैं और मुसलमान भी । अगड़े भी पहनते हैं और पिछड़े भी । दलित भी पहनते हैं और महाहदलित भी। चूड़ी बनाने वाले ज्यादातर लोग मुसलमान होते हैं और पहनने वाली महिलाएं हिन्दू। आजतक किस हिन्दू महिला ने चीड़ियाँ पहनने से इसलिए इंकार नहीं किया कि उन्हें बनाने और पनाने वाले हाथ मुसलमान या किसी और मजहब वाले के है। कोई मनिहार या मनिहारिन किसी कलाई से उसका मजहब नहीं पूछती । ये काम तो केवल और सियासत वाले करते हैं। तमिल में चूड़ी को वलायल और तेलुगु में गाजू भी कहा जाता है। अंग्रेज़ी में इसे बेंगल कहते है जो हिन्दी के ही शब्द बंगरी से बना है
चूडिया एक और जहां सुहाग यानि सौभाग्य का प्रतीक हैं वहीं चूड़ियाँ भेंट करना सामने वाले की कमजोरी ,अकर्मण्यता,दीनता को उजागर करने का तरीका भी है । विपक्ष में रहने वाले लोग अक्सर सत्ता प्रतिष्ठान और नौकरशाही को चूडिया पहनाने की कोशिश करता है। मजे की बात ये है कि पूरे दस साल केंद्र की सत्ता में रहने के बाद भी भाजपा और भाजपा के नेताओं का चूड़ी भेंट करने का तौर-तरीका बदला नहीं है । वे अब विपक्ष को तो चूड़ियाँ पहना नहीं सकते लेकिन पड़ौसी देश को चूड़ी पहनाने की बात जरूर करने लगे हैं। उन्हें लगता है कि देश का विपक्ष इन दिनों पड़ौसियों की शह पर सत्ता प्रतिष्ठान की राह में रोड अटका रहा है।
बात राहुल गांधी से शुरू हुई थी और वहीं समाप्त भी होना चाहिए,इसलिए मै आपको दोबारा राहुल गांधी की उस तस्वीर की और ले चलता होऊं जो हाल ही में चुनाव प्रचार से समय निकालकर एक हजामत बनाने वाले की दूकान से ली गयी है। बकौल भाजपा राहुल शाहजादा है। चांदी की चम्मच मुंह में रखकर पैदा हुए है। नामदार हैं और सबसे बड़ी बात पप्पू हैं। हम ये सब बातें मान लेते हैं क्योंकि बड़ों की बातें मानने में ही आजकल भलाई है ,लेकिन हमारा सवाल भी है कि आप कामदार होते हुए राहुल की तरह जनता से सीधे क्यों नहीं जुड़ पा रहे ? क्यों आप सड़कों पर पैदल नहीं चल सकते ? क्यों आप किसी आम आदमी या कामदार की तरह अपनी हजामत किसी साधारण सेलून में बनवाने की हिम्मत नहीं कर रहे ?
दरअसल चंडी की चम्मच मुंह से निकाल फेंकना जितना कठिन काम है उतना कठिन काम कामदार से नामदार होना भी है । जो आदमी फर्श से अर्श पर आता है वो कभी भूले से भी नीचे नहीं आना चाहता। उसे विलासता का जीवन जीने की आदत पड़ जाती है और उसके छीने जाने की कल्पना मात्र से ही उसका रोम-रोम कांपने लगता है। वैभव और विलासता के बीच बने रहने के लिए वो एक,दो नहीं अनेक अवसर माँगता है। उसके सामने कोई नैतिकता,कोई नजीर,कोई संविधान काम नहीं करता। उसके सर पर हमेशा एक ही भूत सवार रहता है कि कोई शाहजादा कहीं सिंहासन पर कब्जा करने तो नहीं आ रहा ?
हमारा सत्ता प्रतिष्ठान आजकल इसी भय और आशंका से ग्रस्त है । चार चरणों के मतदान के बाद सत्ता प्रतिष्ठान के चेहरे पर हवाइयां उड़ रहीं हैं। मै हमेशा कहता हूँ कि सत्ता तो आनी -जानी चीज है । इसका मोह नहीं पालना चाहिए अन्यथा यही सत्ता गले की फांसी बन जाती है। इसी सदी में आपने और हमने दुनिया में बड़े -बड़े सत्ताधीशों को धूल चाटते देखा है । किसी को फांसी पर लटकाया गया, तो किसी को गोलियों से भून दिया गया। यहां तक कि सत्ताधीशों के बुतों तक को नेस्तनाबूद कर दिया। इसीलिए कहते हैं कि सत्ता माया का दूसरा रूप है और माया महाठगिनी होती है । इस हकीकत को हमारे सूफी संत -महात्मा और साहित्यकार जान गए लेकिन राजनीतिज्ञ इस हकीकत से अभी तक नावाकिफ हैं।
राहुल के भाग्य में प्रधानमंत्री बनना शायद न लिखा हो लेकिन उसके चाहने वालों की संख्या अंधभक्तों की संख्या से कहीं ज्यादा निकलेगी । देश में ही नहीं देश के बाहर भी राहुल एक नेशनल हीरो की तरह जाना -पहचाना जाता है। राहुल ने कांग्रेस का बंटाधार किया या उसे आत्मनिर्भर बनाया इसका फैसला आने वाले दिन करेंगे। लेकिन अभी ये प्रमाणित हो गया है कि वो न पप्पू है और न जोकर,न विदूषक है और न अधिनायक। वो जन नायक बनने की कोशिश कर रहा है। उसने देश को अपने कदमों से नापा है ,फोकट के हवाई जहाजों से उड़ाने भरते हुए देश को नहीं जाना। प्रतिपक्ष में रहकर राहुल ने वे सब प्रताड़नाएं सही हैं जो आपातकाल के दौरान तब के विपक्षी नेताओं तक ने नहीं सही होंगी।
बहरहाल आज देश के सामने दो ही चेहरे हैं। एक कल्कि अवतार माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दस मोदी जी का और दूसरा राहुल-राजीव गांधी का। कांग्रेस के पास राहुल के अलावा कोई नहीं है और भाजपा के पास मोदी जी के अलावा कोई नहीं है। देश के पास इन दोनों के अलावा कोई नहीं है। एक की सियासी विरासत को देश और दुनिया जानती है और दूसरे की कोई सियासी विरासत है ही नहीं और आगे भी शायद ही उनका कोई उत्तराधिकारी उन जैसा हो पाए। देश इस समय इन दो विरासतों के बीच चुनाव कर रहा है । चुनाव के चार चरण पूरे हो चुके है। तीन बाकी हैं। 4 जून को पता चलेगा कि देश ने नामदार को चुना या कामदार को। जनता जिसे चुनेगी वो सचमुच सौभाग्यशाली होगा।

Exit mobile version