शशिकांत गुप्ते
आज सीतारामजी को गलती से एक मंच पर बुलाया। यह बात खुद सीतारामजी ने मुझे बताई।
मैने पूछा गलती से मतलब?
सीतारामजी ने कहा एक राजनैतिक विश्लेषक के रूप में मुझे बुलाया गया?
मै व्यंग्यकार हूँ। यह जानते हुए मुझे बुलाया इसलिए मैं कह रहा हूँ गलती से?
मैने पूछा फिर आपने मंच सांझा किया?
हाँ किया और अपनी व्यंग्य की शैली में ही वर्तमान राजनीति पर विश्लेषणात्मक उद्बोधन किया।
सबसे पहले मैन कहा हमें यह समझना जरूरी है कि अपना देश सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। इसे दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि,अपने देश के अधिकांश राजनैतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव है।
जहाँ लोकतंत्र की एहमियत पर सवाल उठता है? वहाँ हर मुद्दे पर कानून बनाने की वकालत की जाती है। कारण अधिनायकवादी मानसिकता जनता से सीधे संवाद करने में कतराती है।
लोकतंत्र बगैर विपक्ष के अधूरा है।
असहमति लोकतंत्र की बुनियाद है।
विपक्ष का मतलब सिर्फ विपक्षी दल नहीं होतें हैं। हरएक वो व्यक्ति या वो सामाजिक कार्यकर्ता जो सत्ता की ग़लत नीतियों का विरोध करता है, वह विपक्ष होता है। व्यंग्यकार, साहित्यकार भी विपक्ष होता है। कवि,शायर जो अपनी शैली में सच्चाई जनता के सामने रखता है, वह भी विपक्ष होता है।
सबसे बड़ा विपक्ष लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ होता है।
चौथे स्तम्भ की भूमिका स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण रही है।
आज बहुत से समाचार माध्यमों पर संदेह पैदा होता यह लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नहीं है।
मैने अपनी धारावाहिकता के साथ उपर्युक्त मुद्दे श्रोताओं के समक्ष रखें।
एक श्रोता ने सवाल किया आपने जो भी मुद्दे कहे, वर्तमान में सारा माहौल ही विपरीत चल रहा है।?
मैने जवाब दिया सिर्फ राजनेताओं पर अवलंबित रहोगे तो ऐसा ही चलेगा। स्वयं के अंदर विपक्ष तैयार करों।
उसने पुनः प्रश्न किया साम,दाम, दंड और भेद इन चारों अनीतियों से कैसे लड़ेंगे?
हमेशा वर्तमान में उक्त अनीतियों सहारा अक्षम राजनेता ही लेता है। अक्षम राजनेता मतलब जिसके मानस में गुरुर भरा रहता है।
ऐसे गुरुर का जवाब शायर नईम अख्तर खादमीजी के इस शेर में है।
तू किसी से ना हारे गा
तेरा गुरुर तुझको मारेगा
इसी शेर के साथ मैने अपने उद्बोधन को पूर्ण विराम दिया।
शशिकांत गुप्ते इंदौर