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 ‘आदरणीय ‘और ‘जी’ कहने से बढ़ती हैं दूरियां 

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सुसंस्कृति परिहार

 मोदीजी  शाहे वतन ने अपने हालिया बयान में  बताया कि उन्हें आदरणीय और जी पसंद नहीं। पिछले दिनों  भाजपा पार्लियामेंट समिति की मीटिंग में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा -“उन्हें आदरणीय और मोदीजी सम्बोधित करने से उनके और देश के लोगों से दूरियां बढ़ती हैं। मैं पार्टी का एक छोटा सा कार्यकर्ता हूं और लोग मुझे मोदी नाम से पहचानते हैं। उन्होंने कहा मुझे लोग अपने परिवार का हिस्सा मानते हैं।

लगता है भाजपा संसदीय परिवार की मीटिंग, लोकसभा और राज्यसभा में भाजपा सदस्यों द्वारा मोदी मोदी नारों की गूंज से वे अत्यंत गदगद हैं इसलिए भाजपाइयों से वे ये अपील कर बैठे हैं।सोचिए कोई मंत्री ,सांसद , विधायक, कार्यकर्ता क्या उन्हें सिर्फ मोदी कह पाएगा। शायद नहीं क्योंकि यह इस देश की तहज़ीब नहीं है।पद की एक गरिमा होती है उसे मोदीजी ही गिरा सकते हैं इससे पूर्व इस पद की गरिमा कभी आहत नहीं हुई।ये हर्ष और विरोध के वक्त समूह में मोदी मोदी ,नमो नमो चल सकता है।आपके मित्र प्यार से मोदी कह सकते हैं वह भी सार्वजनिक तौर पर नहीं।हां आपसे नाराज़ आगबबूला या चाहने वाले भक्त  लोग ही सीधे मोदी कहते हुए अच्छे या बुरे विचार रख देते हैं। इसे आप कैसे देखते हैं यह आपकी बात है।मगर यह दुर्भाग्यपूर्ण है। मोदीजी आप वही है ना जब मां को कांधा देने में शिवराज सिंह आगे आ गए तो आगबबूला होकर उन्हें हटा दिया कितनी जगह शिवराज के कदम आपसे आगे बढ़ गए आपने पीछे करवा दिए क्योंकि आप उनसे अग्रणी हैं। शिवराज आज आपसे आगे निकलने की चाहत में पिछड़ रहे हैं। जब आप इसे पसंद नहीं कर सकते तो मोदी कहा जाना आप कैसे बर्दाश्त कर पाएंगे।ये तो एक शिगूफा ही लगता है।

हालांकि कुछ दिनों से आपने देशवासियों, भाई-बहनों की जगह परिवार जनों का जो सम्बोधन प्रारंभ किया है उसके तहत इन लोगों को यदि यह छूट दी जा रही तो बड़ी बात है।अब देश के लोग यदि परिवार जन हैं तो कांग्रेस और अन्य दलों के साथ व्यवहार ऐसा तो नहीं  होना चाहिए खैर विपक्ष की बात अलग थलग रहने दें आपके भाजपा के लिए अपना जीवन अर्पित करने वाले शिवराज सिंह और वसुंधरा के प्रति यह खौल क्यों। वे आपको बराबर सम्मान देते हैं। क्या सीधे मोदी कहेंगे तो अच्छा लगेगा क्या इसीलिए इनसे दूरियां बढ़ी हैं। 

 आपने पहले अपने को फ़कीर ,चौकीदार ,जनता का सेवक  और ना जाने क्या क्या कहा-यह क्या कम था जो ‘मोदी’ कहवाने पर तुले हैं। राहुल गांधी ने जिस तरह मोदी सरनेम को भगोड़ों के लिए उपयोग किया था तब ये शब्द कितना नागवार गुजरा था।ये सत्य है कि  मोदी सरनेम वाले बड़े डकैत निकले बैंकों को लूटकर भाग खड़े हुए। लेकिन आप मोदी मोदी की जय-जय कार से ऊपर उठकर देखें।देश के प्रधानमंत्री हैं। परिवार जनों के सिर्फ़ मोदी कहने से संतुष्ट होने की बात ना करें , आदरणीय बने रहें। और कम से कम संसदीय गरिमा का ख्याल रखिए। वैसे भी राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा स्पीकर का आपके सामने नतमस्तक होना अच्छा नहीं लगता। संसदीय परम्परा में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति,लोकसभा स्पीकर के बाद प्रधानमंत्री का नंबर आता है।इस भूल को सुधारने का कष्ट करें और ‘मोदी’ का ख्याल नज़र अंदाज़ करते हुए इस पद की गरिमा बनाए रखें।यह पद बड़ा महत्वपूर्ण है और यहां जो भी बैठा होगा। वह कानूनन आदरणीय, सम्माननीय और जी का पात्र होगा भले वह काबिलियत ना रखता हो सिर्फ चयनित हो।

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