Site icon अग्नि आलोक

क्या भाजपा के पास नैरेटिव का बड़े पैमाने पर टोटा?

Share

राहुल द्वारा बोला गया सिर्फ एक वाक्य आज पीएम मोदी सहित गोदी मीडिया के लिए बड़ा मुद्दा बन गया है। राहुल ने कहा, “हिंदू धर्म में शक्ति शब्द होता है, हम शक्ति से लड़ रहे हैं। एक शक्ति से लड़ रहे हैं।” यहां पर राहुल क्रोनी कैपिटलिस्ट, बड़े पूंजीपति के हाथ में सत्ता की बागडोर कहने से बचने के लिए पॉवर (शक्ति) शब्द का सहारा लेते हैं, जिसका संदर्भ उन्हें हिंदू धर्म में मिलता है। अंग्रेजी में सोचकर हिंदी में जवाब देने की यह समस्या है। लेकिन अगले ही पल वे आगे कहते हैं, “अब सवाल उठता है, वो शक्ति क्या है? यहां पर किसी ने कहा, राजा की आत्मा ईवीएम में  है। हां, यह सही बात है। राजा की आत्मा हिंदुस्तान की हर संस्था ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स में है।

कर्नाटक के शिवमोगा से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गठबंधन की रविवार को मुंबई में हुई रैली पर जोरदार हमला किया। भाजपा प्रवक्ता नलिन कोहली से शुरू होकर अब दल के हर प्रवक्ता और टेलीविजन न्यूज़ एंकर्स इसी मुद्दे को लेकर ब्रेकिंग न्यूज़ चला रहे हैं। मुद्दा है, मुंबई की रैली में राहुल गांधी ने शक्ति से लड़ने का संकल्प लिया है। मोदी जी अपने चुनावी रैली में इसे नारी शक्ति से जोड़कर एक बिल्कुल नया ट्विस्ट दे रहे हैं। यह बताता है कि मोदी का 370 सीट का दावा कितनी खोखली जमीन पर खड़ा किया गया है। इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के आगे बचाव पक्ष के धुरंधर वकीलों की फ़ौज ने हथियार डाल दिए हैं, और इस चुनाव में पहली बार सरकार पर चुनावी चंदे के बदले कॉन्ट्रैक्ट, हफ्ता वसूली के आरोप लगने शुरू हो चुके हैं, जिसे विपक्ष पिछले 10 साल से सुबूत होने के बावजूद चस्पा नहीं कर पा रहा था।   

अगर आपने इंडिया गठबंधन की रविवार की रैली और विपक्षी गठबंधन के नेताओं को नहीं सुना, तो एकबारगी आपको भी संदेह हो सकता है कि शायद ऐसा कुछ हुआ हो, और हिंदू धर्म का जाने-अनजाने में राहुल गांधी ने अपमान कर दिया हो। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं था। इसे सफेद झूठ भी कहना नाकाफी होगा। असल में राहुल गांधी राज सत्ता की ताकत की बात कर रहे थे, जिसपर वामपंथियों के अलावा शायद ही कोई राजनीतिक दल प्रहार करने के बारे में ख्वाब में भी नहीं सोचता है। राहुल ने तो अपने भाषण में नरेंद्र मोदी को एक कमजोर शख्सियत के साथ-साथ उस शक्ति के इशारे पर काम करने वाला व्यक्ति तक करार दिया।

बता दें कि कल 17 मार्च मुंबई के शिवाजी पार्क में ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के समापन पर इंडिया गठबंधन ने एक संयुक्त सभा का आयोजन किया था। राहुल की दोनों यात्राओं को स्थापित न्यूज़ मीडिया में कवरेज न के बराबर मिला है, और यही हाल हम इस रैली का भी देख रहे थे। राहुल गांधी के अलावा कुछ यूट्यूब चैनलों के माध्यम से देश में कुछ लाख लोग ही मुंबई की इस रैली को देख पाए होंगे। इस रैली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के अलावा डीएमके अध्यक्ष स्टालिन, आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव, झारखंड के मुख्यमंत्री चंपई सोरेन और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी, कश्मीर से फारुख अब्दुल्ला और मेहबूबा मुफ़्ती, आप पार्टी से सौरभ भरद्वाज, महाराष्ट्र से शरद पवार, प्रकाश आंबेडकर और उद्धव ठाकरे मौजूद थे। सभा में सिर्फ अखिलेश यादव की कमी खली, जिनके बारे में खबर है कि कल उनकी पार्टी में पश्चिमी यूपी के कुछ उम्मीदवारों को लेकर विरोध को किसी तरह शांत करने की कोशिश न आ पाने की वजह बना। 

तो पिछले 3 महीने तक जारी ईडी, सीबीआई की रेड का कुल जमा नीतीश कुमार और राष्ट्रीय लोकदल ही निकला। यह सही है कि बड़ी संख्या में करीब-करीब सभी दलों से नेता भाजपा की गंगोत्री में शामिल हुए, लेकिन आम लोगों के बीच सरकार की साख पर बट्टा भी लगा है। सरकारी एजेंसियों का ऐसा दुरूपयोग आम लोगों को सशंकित करने लगा है। ऊपर से एनडीए को इस बार 400 पार ले जाने के दावे से अब वे लोग भी खौफ में हैं, जो कल तक मानते थे कि मोदी विकास के प्रति समर्पित हैं। लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड में जिस तरह से रोज नए खुलासे हो रहे हैं, उससे भी उनकी पूर्व-धारणाओं को बड़ा झटका लग रहा है। 

भाजपा ने 2024 चुनाव के लिए राम मंदिर को एक बड़ा चुनावी अस्त्र मान रखा था। इसके अलावा जी-20 की मेजबानी, जीडीपी के आंकड़े और मोदी जी के नेतृत्व में विश्व की तीसरी अर्थव्यस्था बनने की स्टोरी से एक बार फिर से मोदी सरकार के दावे को मतदाताओं के दिलो-दिमाग में पेवश्त करना था। लेकिन कहीं न कहीं इवेंट मैनेजमेंट इतना भव्य, दिव्य हो गया कि वह वास्तविकता से पूरी तरह से अलग दिखने लगा। देश का गरीब और वंचित व्यक्ति ही नहीं बल्कि मध्य वर्ग का भी अच्छा-खासा हिस्सा मोदी सरकार के इन दावों को पचाने की स्थिति में नहीं है। उसे भी लगने लगा है कि यदि अगली बार जीतने पर भी विकास की ऐसी ही लफ्फाजी जारी रही, तो उसका भविष्य भी अंधकारमय हो सकता है। 

शायद यही वजह है कि ऐन चुनाव की घोषणा के बाद ही अचानक से भाजपा के पास मुद्दों का टोटा पड़ गया नजर आता है। इसके विपरीत राहुल गांधी ने पहले कश्मीर से कन्याकुमारी तक पैदल ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और इस वर्ष मणिपुर से मुंबई तक ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में ‘नफरत के बाजार में, मोहब्बत की दुकान’ के स्लोगन को लोकप्रिय बना दिया, वहीं कल उन्होंने अपने अनुभवों का निचोड़ पेश किया, वह देश की एकाधिकार पूंजी की असल सत्ता को सीधी चुनौती देने वाला था।

राहुल के भाषण को स्वयं कांग्रेस, एनसीपी सहित डीएमके या तृणमूल कांग्रेस तक को पचा पाना काफी मुश्किल है, फिर भाजपा के लिए तो ऐसा करना अंगारों पर चलने के समान है। लेकिन पूरे भाषण में से सिर्फ एक शब्द ‘शक्ति’ को अपने हिसाब से व्याख्यायित कर पीएम मोदी ने साफ़ कर दिया है कि उनके लिए इस बार की लड़ाई वाटरलू साबित होने जा रही है। अपने बचाव में उनके पास विपक्षी दलों के खिलाफ नेगेटिव अभियान चलाकर जीत का ख्वाब बदा है।     

लेकिन एक बात राहुल गांधी के खिलाफ अभी भी जाती है। उनके पास हिंदी का शब्द भंडार अभी भी सीमित है। दूसरा, वे अपने भीतर जो सोचते हैं, उसे अभिव्यक्त करने में कई बार उनके पास शब्द नहीं होते। राजनीति में यह बेहद अहम हो जाता है, वो भी तब जब सामने नरेंद्र मोदी जैसा मंझा खिलाड़ी हो।  

राहुल गांधी ने अपने भाषण की शुरुआत यह कहते हुए शुरू की कि देश में अधिकांश लोग सोचते हैं इंडिया गठबंधन के घटक दल एक खास राजनीतिक दल और एक व्यक्ति विशेष (नरेंद्र मोदी) के खिलाफ लड़ रहे हैं। राहुल ने साफ़ कहा कि, “न हम बीजेपी से लड़ रहे हैं, न नरेंद्र मोदी से लड़ रहे हैं। वे तो एक चेहरा हैं, जिसे सामने डाल रखा गया है।”

यहां तक सब ठीक था, लेकिन इसके बाद उनके द्वारा बोला गया सिर्फ एक वाक्य आज पीएम मोदी सहित गोदी मीडिया के लिए बड़ा मुद्दा बन गया है। राहुल ने कहा, “हिंदू धर्म में शक्ति शब्द होता है, हम शक्ति से लड़ रहे हैं। एक शक्ति से लड़ रहे हैं।” यहां पर राहुल क्रोनी कैपिटलिस्ट, बड़े पूंजीपति के हाथ में सत्ता की बागडोर कहने से बचने के लिए पॉवर (शक्ति) शब्द का सहारा लेते हैं, जिसका संदर्भ उन्हें हिंदू धर्म में मिलता है। अंग्रेजी में सोचकर हिंदी में जवाब देने की यह समस्या है। लेकिन अगले ही पल वे आगे कहते हैं, “अब सवाल उठता है, वो शक्ति क्या है? यहां पर किसी ने कहा, राजा की आत्मा ईवीएम में  है। हां, यह सही बात है। राजा की आत्मा हिंदुस्तान की हर संस्था ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स में है।”

राहुल आगे कहते हैं, “इसी प्रदेश (महाराष्ट्र) के एक वरिष्ठ नेता कांग्रेस पार्टी को छोड़ते हैं, और मेरी मां से रोते हुए कहते हैं कि सोनिया जी, मुझे शर्म आ रही है, मेरे में इस शक्ति से लड़ने की हिम्मत नहीं है। मैं जेल नहीं जाना चाहता। ऐसे एक नहीं हजारों लोग डराए गये हैं। क्या आप सोचते हो कि शिवसेना, एनसीपी के लोग ऐसे ही भाजपा में चले गये? नहीं, जिस शक्ति की मैं बात कर रहा हूं, उन्होंने उनका गला पकड़कर उनको बीजेपी के पक्ष में किया है। और वे सब डर के कारण गये हैं।”

इसके बाद राहुल पिछले वर्ष से अब तक की अपनी दो यात्राओं के अनुभव को साझा करते हुए पैदल यात्रा मैं उन्होंने क्या देखा, क्या सुना के बारे में बताते हुए कहते हैं कि वे उसे शब्दों में नहीं बता सकते। यहां भी वे सेना में भर्ती के लिए 3 साल से दिन-रात मेहनत कर मोदी सरकार द्वारा अग्निवीर स्कीम को लागू किये जाने पर उस लड़के की हताशा को बयां कर बताते हैं। राहुल उस लड़के से कहते हैं कि तुम्हें देश या सेना ने धोखा नहीं दिया, बल्कि उसी शक्ति ने धोखा दिया है, जिसके डिक्टेट पर सरकार ने यह कदम उठाया है।

अपने भाषण में वे मोदी को उस शक्ति का मुखौटा बताते हैं। मुंबई की फिल्म नगरी का उदाहरण देते हुए राहुल ने कहा, “एक एक्टर को जैसे जो रोल मिलता है, उसे उसी के अनुसार अपना किरदार अदा करना पड़ता है। मोदी की छाती को 56 इंची के बजाए वे खोखला व्यक्ति होने का दावा करते हैं। 

मणिपुर को भी राहुल इसी शक्ति की करतूत बताते हुए कहते हैं कि इसके करण वहां गृहयुद्ध के हालात बने हुए हैं। हिंदुस्तान के लिए नया विज़न धारावी से मिल सकता है, इसे सोचकर ही यात्रा का अंत उन्होंने धारावी में रखा। धारावी को वे हुनर का कैपिटल बताते हुए कहते हैं कि आज इनके घरों से वही शक्ति उन्हें उठाकर बाहर फेंक रही है और इनकी जिंदगी बर्बाद करने पर तुली हुई है।

राहुल चीन के एक शहर शेनजेन का उदाहरण देते हुए भारत में धारावी को उसके मुकाबले का शहर बताते हैं। यह बेहद तथ्यपरक बात है, क्योंकि धारावी जैसे स्लम से भारत आज भी 1 बिलियन डॉलर मूल्य का सामान निर्यात कर रहा है। राहुल दावा करते हैं कि बैंक के दरवाजे इन बच्चों के लिए खोल दो तो ये लोग शेनजेन को परे हटा सकने में समर्थ हैं। लेकिन राहुल साफ़ कहते हैं कि धारावी को कभी भी शेनजेन नहीं बनने दिया जायेगा, क्योंकि भारत में चीन से बड़े पैमाने पर आयात से सिर्फ चीन को फायदा नहीं पहुंच रहा था, बल्कि यहां के अरबपति भी मोटा माल कमा रहे हैं। 

जिस शक्ति की ओर राहुल इशारा कर रहे हैं, उसे वे अपने भाषण के अगले चरण में स्पष्ट करते हैं। राहुल “22 लोग हैं यहां पर, जिनके पास इतना धन है जितना भारत के 70 करोड़ लोगों के पास है। हिंदुस्तान में एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा खुलवाने में सालों लग जाते हैं, लेकिन इनके लिए जामनगर को 10 दिन में खोल दिया जाता है। 

इसी प्रकार दिवंगत अरुण जेटली के उनके पास आकर भूमि अधिग्रहण बिल पर सवाल उठाने से मना करने की बात का खुलासा करते हुए राहुल बताते हैं कि उनके मना करने पर अरुण जेटली ने कहा था कि तुम्हारे ऊपर केस लगा देंगे। 

राहुल ने अपने भाषण में इलेक्टोरल बॉन्ड का मुद्दा भी मुंबई के हफ्ता वसूली के उदाहरण से समझाया। मुंबई एअरपोर्ट को कैसे ईडी और सीबीआई के जोर से रातोंरात जीवीके ग्रुप से अडानी समूह को दिलाया गया, का उदाहरण भी राहुल मुंबई वासियों के सामने रखते हैं। अंत में राहुल ने अपना भाषण इस बिंदु पर खत्म किया कि हिंदुस्तान नफरत का देश नहीं है, ये मोहब्बत का देश है। नफरत को फैलाया ही इसलिए जाता है ताकि आपके जेब से पैसा निकाल लिया जाये। वे कहते हैं गांधी, गौतम बुद्ध, राम सबने इसी का पाठ सिखाया है। 

अब इस पूरे भाषण में आपको कहां पर हिंदू धर्म के खिलाफ एक भी शब्द कहा गया? 

ये पूरा भाषण विशुद्ध रूप से पीएम मोदी को बेहद ताकतवर कॉर्पोरेट के मोहरे के रूप में निरुपित करता है। इसी के साथ इस भाषण से यह भी साफ़ होता है कि राहुल गांधी अगर सत्ता में आते हैं तो देश की आर्थिक नीतियों पर पुनर्विचार की पूरी-पूरी संभावना है। देश में 90% आबादी को ध्यान में रखकर ही इंडिया गठबंधन कोई भी कदम बढायेगा। अब मोदी जी ने इसका जवाब आज कैसे दिया? 

कर्नाटक के शिवमोगा में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए मोदी इसे हिंदू धर्म में शक्ति को समाप्त करने की मंशा बताते हैं। वे कहते हैं कि इंडिया गठबंधन ने हिंदू समाज जिसे शक्ति मानता है उसे खत्म करने का बीड़ा उठाया है। मोदी जी ने अपने भाषण में कहा कि, “देश के करोड़ों लोग शक्ति की उपासना करते हैं। जब मैंने सुना तो सोच रहा था कि बाला साहेब ठाकरे जी की आत्मा को कितना दुःख हो रहा होगा। वो भी शिवाजी पार्क में ऐसी बातें कही गईं, जहां का बच्चा-बच्चा जय भवानी, जय शिवाजी, बोलता है।” 

इसके बाद ही मोदी जी राहुल के बयान को एक कदम और आगे ले जाकर नारी शक्ति से जोड़ देते हैं। मोदी जी के अनुसार, “नारी शक्ति भी उसी शक्ति का एक स्वरुप है। हमारी सरकार ने नारी शक्ति के लिए जितना काम किया, उतना किसी ने नहीं किया। नारी शक्ति मोदी की साइलेंट वोटर है। मेरे लिए मां शक्ति स्वरूपा है। नारी शक्ति का यही आशीर्वाद मेरा सबसे बड़ा कवच है। इसी भावना के साथ हम माँ भारती की भी पूजा करते हैं।” 

इसके बाद पीएम मोदी अपने नैरेटिव को एक और ऊंचाई पर ले जाते हैं, जो उन्हीं के वश में है। मोदी के अनुसार, “इंडिया अलायन्स के लोग अब इसी शक्ति को कुचलना चाहते हैं। इन्हें मां भारती की बढ़ती शक्ति से नफरत है, इन्हें भारतीय नारी का सशक्तीकरण पसंद नहीं आ रहा है। ये देश की मां-बहनों-बेटियों पर वार है। नारी कल्याण की योजनाओं पर वार है। शक्ति पर वार का मतलब है मां भारती पर वार। इसी शक्ति से भारत में आतंकवाद का नाश होता आया है।

इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी चुनावी मुद्रा में आते हुए कहते हैं कि देश की हर महिला, हर बहन और हर बेटी इंडिया अलायन्स की इस चुनौती का जवाब देगी। शक्ति का हर उपासक देगा। 4 जून को इन्हें पता चल जायेगा कि शक्ति को ललकारने का मतलब क्या होता है। कांग्रेस सत्ता हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जाने वाली पार्टी है। अंग्रेज चले गये, पर कांग्रेस में बांटो और राज करो वाली मानसिकता अभी तक नहीं गई। कांग्रेस ने देश को बांटा, जाति, समुदाय, धर्म क्षेत्र और भाषा के आधार पर बांटा। लेकिन फिर भी बांटने वाली इस मानसिकता को इतने से संतोष नहीं है, ये अब फिर से देश को बांटने वाले खतरनाक खेल भी खेलने लगी है।

शाम तक राहुल गांधी ने भी पीएम मोदी के जवाब में सोशल मीडिया X पर दो-टूक जवाब देकर, इस बार के चुनाव को भाजपा के लिए एकतरफा लाभ की स्थिति से साफ़ इंकार कर दिया है।

पाठक खुद दोनों भाषणों से अंदाज लगा सकते हैं कि भाजपा के लिए नैरेटिव का कितने बड़े पैमाने पर टोटा हो चुका है। भाजपा का सांगठनिक ढांचा पूरी तरह से केन्द्रीयकृत हो चुका है, जिसके एक इशारे पर पूरा संगठन टिड्डी दल की तरह मीडिया और सोशल मीडिया पर टूट पड़ता है। एक ही शैली और भाषा में हमले की प्रकृति को देश बखूबी समझने लगा है। राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी ने इंडिया गठबंधन की दशा दिशा को निर्धारित कर दिया है, और जैसे-जैसे गठबंधन किसान, जवान, युवा, जाति जनगणना और संविधान की मांग को स्पष्ट करता जायेगा, पूरी उम्मीद है वोटों का ध्रुवीकरण विभाजनकारी मुद्दों के बजाय असल मुद्दों पर केंद्रित होगा।  

Exit mobile version