Site icon अग्नि आलोक

डोंगरे जी महाराज,जो भागवत कथा के लिए एक भी पैसा नहीं लेते थे

Share

आज के दौर में जब भागवतकार एक भागवत कथा के लिए लाखों रुपए तक ले रहे हैं, वहीं यह जानकर सुखद आश्चर्य होता है कि पूज्यनीय रामचंद्र डोंगरे जी महाराज जैसे* *भागवताचार्य भी हुए हैं जो भागवत कथा के लिए एक भी पैसा नहीं लेते थे।* 

*जहां जहां भी वे भागवत कथा कहते थे, उसमें जो भी दान दक्षिणा चढ़ावा आता था, उसे उसी शहर या गांव में गरीबों के कल्याणार्थ दान कर देते थे। कोई ट्रस्ट बनाया नहीं और किसी को शिष्य भी बनाया नहीं।*

*अपना भोजन स्वयं बना कर ठाकुरजी को भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करते थे।*

*डोंगरे जी महाराज कलयुग के दानवीर कर्ण थे। उनके अंतिम प्रवचन में चौपाटी में एक करोड़ रुपए जमा हुए थे जो गोरखपुर के कैंसर अस्पताल के लिए दान किए गए थे।*

*डोंगरे जी महाराज की शादी हुई थी। सुहागरात के समय ही उन्होंने अपनी धर्मपत्नी से कहा था-‘देवी मैं चाहता हूं कि आप मेरे साथ 108 भागवत कथा का पारायण करें, उसके बाद यदि आपकी इच्छा होगी तो हम ग्रहस्थ आश्रम में प्रवेश करेंगे’।* 

*इसके बाद जहां जहां डोंगरे जी महाराज भागवत कथा करने जाते, उनकी पत्नी भी साथ जातीं।108 भागवत पूर्ण होने में करीब सात वर्ष बीत गए।*

*तब डोंगरे जी महाराज पत्नी से बोले-‘ अब अगर आपकी आज्ञा हो तो हम ग्रहस्थ आश्रम में प्रवेश कर संतान उत्पन्न करें’।*

*इस पर उनकी पत्नी ने कहा था,’ आपके श्रीमुख से 108 भागवत श्रवण करने के बाद मैंने गोपाल को ही अपना पुत्र मान लिया है, इसलिए अब हमें संतान उत्पन्न करने की कोई जरूरत नहीं है’।*

*धन्य हैं ऐसे पति-पत्नी,* 

*धन्य है उनकी भक्ति और* *उनका कृष्ण प्रेम।*

*डोंगरे जी महाराज की पत्नी आबू में रहती थीं और डोंगरे जी महाराज देश दुनिया में भागवत रस बरसाते थे।* 

*पत्नी की मृत्यु के पांच दिन पश्चात उन्हें इसका पता चला*। *

*वे अस्थि विसर्जन करने गए, उनके साथ मुंबई के बहुत बड़े सेठ थे। सेठ रतिभाई पटेल ने बाद में बताया था कि डोंगरे जी महाराज ने उनसे कहा था कि रति हमारे पास तो कुछ है नहीं और अस्थि विसर्जन में कुछ तो लगेगा। क्या करें ? …*

*फिर खुद ही आगे बोले थे,* 

*ऐसा करो, पत्नी का मंगलसूत्र और कर्णफूल बेचकर जो मिलेगा उसे अस्थि विसर्जन क्रिया में लगा देते हैं।*

*सेठ रतिभाई ने रोते हुए बताया था……*

*जिन महाराजश्री के इशारे पर लोग कुछ भी करने को तैयार रहते थे, वह महापुरुष कह रहा था कि पत्नी के अस्थि विसर्जन के लिए पैसे नहीं हैं।* 

*हम उसी समय मर क्यों न गए* l

*फूट फूट कर रोने के अलावा मेरे मुंह से एक शब्द नहीं निकल रहा था।*

*ऐसे महान संत के चरणों में कोटि-कोटि नमन।*

Exit mobile version