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मुझे दुनिया वालों शराबी ना समझो

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शशिकांत गुप्ते

सीतारामजी आज प्रख्यात शायर ग़ालिब के कुछ चुनिंदा अशआर का स्मरण कर रहें हैं। ( मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग ख़ान जो अपने तख़ल्लुस ग़ालिब से जाने जातें हैं।)
इनदिनों सियासित में मय का नशा छाया हुआ है।
शायर ग़ालिब मय के नशे का महत्व इस शेर के माध्यम से बयां
करतें हैं।
जाहिद शराब पीने दे मस्ज़िद में बैठ कर (जाहिद मतलब तपस्वी)
या वो जगह बता जहां खुदा न हो

ग़ालिब का यह भी शेर है।
तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिला के दिखा
नहीं तो दो घूँट पी और मस्ज़िद को हिलता देख

इनदिनों पीने पिलाने की होड़ में सत्ता ही हिल रही है।
कहा गया है कि, दिल्ली दिल है हिंदुस्थान का।
बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभान अल्लाह
जब बड़े से बढकर छोटे कोई कार्य करते हैं तो ऐसा कहा जाता है।
पश्चिम में दशकों से नशा बंदी है।
पश्चिम यह सूबा पूरे देश के समक्ष प्रस्तुत किया एक Modal है। मॉडल के लिए हिंदी इतने शब्द है।नमूना; ढाँचा; प्रतिकृति; प्रारूप। नमूना ही ठीक रहेगा।
प्रख्यात शायर स्व.राहत इंदौरीजी का यह शेर मौजु होगा।
कह कर तो गए थे कि, कपड़े बदल कर आतें हैं
लेकिन सभी चेहरे बदल कर आ गए

एक से बढ़कर एक हैं।
ग़ालिब का यह शेर भी प्रासंगिक है।
शराब शराब करतें हो फिर पीने से क्यों डरते हो
गर ख़ौफे खुदा है दिल में फिर ज़िक्र ही क्यों करतें हो

लेकिन कहा गया है न,प्यार,युद्ध, खेल और सियासत में सब जायज़ है।
सीतारामजी आज पूर्ण रूप से व्यंग्यकार की मानसिकता में हैं।
यकायक सीतारामजी को सन 1964 में प्रदर्शित फ़िल्म लीडर
leader का इस गीत का स्मरण हुआ।
इस गीत को लिखा है गीतकार शकील बदायुनीजी ने।
किसी को नशा है जहाँ में खुशी का
किसी को नशा है ग़म-ए-जिंदगी का
कोई पी रहा है,लहू आदमी का
हर एक दिल में मस्ती रचाई गई है
सियासित की मस्ती भी अजब है।
जमाने के यारों, चलन है निराले
यहाँ तन है उजले,मगर दिल है काले
ये दुनिया है दुनिया,यहाँ मालोजर में(मालोजर का मतलब धन दौलत)
दिलों की खराबी छुपाई गई है
सीतारामजी गाने का दूसरा बंद अंत में लिखा।
मुझे दुनिया वालों, शराबी ना समझो
मै पीता नहीं हूँ,पिलाई गई है
जहाँ बेखुदी में कदम लकखड़ाये
वो ही राह मुझकों दिखाई गई है

नशा कोई भी हो जब नश अधिक हो जाता है तब वह सिर पर चढ़ कर बोलता है।
इनदिनों सत्ता के नशे के कारण उपलब्धियों को विज्ञापनों में ही दर्शाया जा रहा है।
यह और कुछ नहीं गुरुर का सुरूर है।
अंत में शायर मोहम्मद आज़मजी यह शेर प्रस्तुत है।
आसमानों में उड़ा करतें हैं फूले फूले
हल्के लोगों के बड़े काम हवा करती है

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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