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साबरमती आश्रम को गांधी आश्रम ही रहने दो, मत बनाओ इसे पर्यटन स्थल

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  • प्रो. हेमन्तकुमार शाह, पूर्व प्राचार्य,
    एच के आर्ट्स कॉलेज, अहमदाबाद
  • मुदिता विद्रोही,
  • सामाजिक कार्यकर्ता
  • (लोकशाही बचाओ आंदोलन)
  • भारत के प्रधान मंत्री अब महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम को विश्वस्तर पर ले जाना चाहते हैं ऐसा एक अखबार में हमने पढ़ा। वे क्या आश्रम को विश्व स्तर पर ले जाएंगे!! गांधी और उनका आश्रम भारत के किसी भी प्रधान मंत्री का मोहताज आज तक नहीं रहा।

    प्रधानमंत्री का मानना है कि हर चीज़ सिर्फ मकानों से विश्व स्तर पर पहुंचती है। तो सभी ऐतिहासिक मकान गिरा कर ‘विश्व स्तर’ का आश्रम बनाएंगे ऐसा तय किया गया है ऐसा समाचार है। वैसे इस बात से जरा भी आश्चर्य नहीं हो रहा। बेचारे वे क्या जानें कि गांधी की कुटिया खुद ही विश्व स्तरीय है जहां दुनिया के हर एक देश के राष्ट्र प्रमुख, राजा-महाराजा, नेता – नेल्सन मंडेला से ले कर प्रिंस चार्ल्स और बिल क्लिंटन से लेकर यूनाइटेड नेशन्स के जनरल सेक्रेटरी बान-की-मून – तक हर कोई सिर झुका कर आता रहा है। गांधी के आंगन में लोग मकान देखने कब आये? लेकिन अब सरदार पटेल के स्टेच्यू की तरह गांधीजी का आश्रम भी ‘विश्व स्तरीय’ बनेगा। सिर्फ गोदी मीडिया ही गोदी में नहीं बैठती, यहां हर कोई गोदी में बैठने को तैयार है। बापू के आश्रम को भी मोदीजी के चरणों में धर देने को आश्रम के ट्रस्टी तैयार हैं। आश्रम विश्व स्तरीय ‘भगवा’ कब धारण कर ले यह मंजर भी हम देखेंगे।

    सवाल यह नहीं है कि गांधी आश्रम को देखने लोग नहीं आते इस लिए इसे विकसित करना है। पूरी दुनिया से लोग इस पवित्र भूमि के दर्शन करने हेतु आते ही हैं। सरकार करोड़ों रुपयों का खर्च करके शायद इसे एक कमाई का साधन बनाना चाहती है। गांधी आश्रम आज जैसा है वैसा रहेगा तो गांधी जिस सादगी से जीते थे और जो उच्च विचार दुनिया के सामने रखते थे इसका अहसास लोगोंको होगा। अगर इसे विकास के नाम पर आधुनिक प्रवासी स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा तो, वह अनिवार्य रूप से आकर्षक बनेगा, लेकिन वहां गांधी आश्रम नाम मात्र का रह जाएगा। गांधी की खुश्बू सादगी में और उच्च विचार में है, चकाचौंध में नहीं।

    गांधी आश्रम के जो ट्रस्टी हैं, वे सरकार के सामने क्यों झुक जाते हैं और सरकार को वहां तथाकथित विकास करने की अनुमति क्यों देते हैं यह हमारी समझ के परे हैं। क्या इनका कोई निजी स्वार्थ है या क्या वे सरकार के सामने, गांधी जैसे सत्याग्रह करते थे वैसे सत्याग्रह करने का हौसला नहीं रखते?

    वे आश्रम उस सरकार के चरणों में धर देंगे जिनकी पार्टी के लोग गांधी के हत्यारे की पूजा करते हैं और गांधी के पुतले को गोली मारकर लहू बहाते हैं एवम् जो गांधी हत्या को गांधी वध कहते हैं। हमें आश्चर्य नहीं है कि इस पर भी मोदी ने प्रधानमंत्री होते हुए कोई प्रतिक्रिया नहीं दी या कोई आपत्ति नहीं जताई। किसी पर भी कोई एक्शन लेना तो दूर की बात है। ऐसे प्रधानमंत्री किस अधिकार से गांधी को विश्व स्तर पर ले जानेकी लियाकत भी रखते हैं?

    आलबर्ट आइंस्टाइन एवम् जवाहरलाल नेहरू ने गांधी के देहांत के बाद गांधी को जो श्रद्धांजलि दी थी वह गांधी की महानता प्रस्थापित करने के लिए पर्याप्त है। बराक ओबामा पहले मुस्लिम थे, बाद में ईसाई बने। उन्हों ने भी कहा था कि अगर उन्हें किसी एक महान व्यक्ति के साथ भोजन करने का अवसर मिले तो वे गांधी होने चाहिए, ऐसे गांधी जो अपने आप को सनातनी हिन्दू कहते थे।
    अब हमारे प्रधान मंत्री गांधी को विश्व स्तर पर ले जाने की इच्छा ना करें तो वह गांधी एवम् दुनिया के लिए अच्छा रहेगा।

    सब को सन्मति दे भगवान।

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