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सिर पर तो किसी को भी नहीं चढ़ाएं 

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 (ग्रामीण भारत : कमासुतों की छुट्टी पर घर वापसी और स्थानीय समाज की प्रतिक्रिया)

             *~ प्रखर अरोड़ा*

      पहले गांवों में नौकरी करने वाले जब छुट्टी में घर आते तो गाँव की सीमा में प्रवेश करते ही गाँव के किसी परिचित से मुलाकात होने पर दंड-प्रणाम के बाद जो गांववाले सबसे पहला प्रश्न पुछते थे, वह यही होता था कि “कतिना महीना में मिलेगा”.

        इसके जवाब में जब वह अपने वेतन में मिलने वाली राशि बताता तो तड़ से दूसरा प्रश्न दागा जाता कि  “ऊपरवार मिलेला कि ना”.  अगर इस प्रश्न का भी जवाब साकारात्मक दे दिया तो तीसरा प्रश्न आपके सामने आएगा कि  “कतिना ले मिल जाला”. अब आप धीरे-धीरे नाराज होने लगेंगे, पर कड़ा रूख करके जवाब नहीं देंगे. इसके बाद गाँव वाले तड़ से पुछेंगे  ” घरे कतिना भेजलअ “.

        इसके बाद तो किसी का भी धैर्य जवाब दे देगा. और, सचमुच घर आने वाला वह नौकरीपेशा आदमी किसी तरह से अपना पिंड छुड़ाकर भागने में ही कल्याण समझता.

       कहने का मतलब यह है कि गांववाले आपकी कमाई और खर्च से लेकर बचत तक का हिसाब-किताब आपसे लेने का प्रयास करते थे, और यह आज भी किसी न किसी रूप में है. अब सब कोई सब कोई से नहीं पुछता. पर उनकी आज भी यह कोशिश होती है कि वे नौकरी करने वाले या बाहर रहने वाले की आमदनी का पूरा हिसाब-किताब मालूम कर लें.

       अब पुछेंगे, “सुनलीं हं कि कलकत्ता में बढ़िया घर बनवल ह. तब त बढ़िया पइसो लागल होई. कतिना लागल होई”. आप उनको खुश करने या उनका मन रखने के लिए कुछ तो कहेंगे ही. जैसे ही आपने घर की लागत बताया, उनके मुखारविंद से अगला प्रश्न होगा, ” एकर मतलब बा कि नोकरी बढ़िया रहे आ ओ में पइसो बढ़िया मिलत रहे “.

       आप फिर उनके मन के अनुसार जवाब देंगे. यह उनके अगले प्रश्न की पृष्ठभूमि होती है. वे फिर पुछेंगे, ” कतिना मिलत रहे आ हर महीना कतिना बचावत रहअ”. आप जवाब देते जाएंगे, पर उनका प्रश्न खतम नहीं होगा. वे आपके घर का प्रतिमाह का खर्च, बच्चों की पढ़ाई का खर्च से लेकर न जाने कितने तरह के खर्चों की चर्चा करेंगे और आपके लिए तब यह सुनना कठिन हो जाएगा कि “अतिना कमइलअ, बाकी गांव खातिर कुछो ना कइलअ. गाँव पर भी कुछ धेआन देवे के चाहत रहे. ना होइत त केकरो नोकरिए लगा देतीं”.

        यहाँ उनका साफ इशारा है कि उनका कोई बेटा बेरोजगार है, जिसके लिए वे बहुत ही चिंतित हैं और यह आपकी जिम्मेदारी है कि उनकी मुसीबत को दूर करने के लिए कुछ करें.

   इसी तरह वे आपसे किसी न किसी तरह से खोद-खोदकर यह पता करने की कोशिश करेंगे कि आप कितने पानी में हैं और आप उनके लिए क्या कुछ कर सकते हैं. आपके गाँव पहुंचते ही कुछ चापलूस आपके पास पहुंच जाएंगे और आपके कशीदे काढ़ने लगेंगे. अगर आपके पास अपना कार है या कोई ऐसी चीज, जिसके बारे में उनको मालूम नहीं, वे उसका बारे में सब कुछ जानने का प्रयास करेंगे, मतलब वे आपका पुरि हुलियागुदिया पता करना चाहेंगे.

         इसके बाद वे इस बात की गुंजाइश तलाश करेंगे कि उनके लिए आपके पास कुछ संभावना है या नहीं. हर तरह से संतुष्ट होने और अपने लिए बेहतर अवसर की संभावना होने के बाद ही वे आपके काम के हो सकते हैं, अन्यथा आप इर घाट और वे बीर घाट. अगर आपने अपने बेटे-बेटियों की शादी की है, तो उसका विस्तृत विवरण उन्हें चाहिए. कहाँ शादी हुई, कैसे हुई और दहेज में क्या-क्या दिया या लिया. आपको बार-बार यह बताया जाएगा कि यह आपका गाँव है.

        आपके पुरखों की जनमभूमि है, और आपको यहाँ जरूर आना चाहिए. इसका सीधा मतलब है कि आपसे उनको उम्मीद के मुताबिक लाभ की प्राप्ति हो गई है और आगे भी इसका क्रम बना रहे, इसके लिए वे तैयारी कर रहे हैं. 

   बहुत पहले की बात है. मैं अपने गाँव गया था. मेरे साथ के या मेरे दोस्त तो बहुत ही कम थे. फिर भी बड़ी संख्या में गाँव वाले मेरे परिचित थे. छोटे लड़कों को तो नहीं जानता था, पर जितने लोग सयाने थे, उनको तो जानता ही था. मेरे पास एक छोटा-सा बैग था, जिसमें मैं अपना खैनी-चुनौटी का डिब्बा रखता था.

       यह कोई 1980 के आसपास की बात है. तब मैं खैनी खाता था, पर अब तो खैनी छोड़े हुए पचीस साल से अधिक हो गए हैं. वह बैग मैं अपने साथ ही रखता था. उसी में मैं अपने पैसे भी रखता था. गांववालों के लिए यह बड़ी हैरानी की बात थी कि इस बैग में कितना कुछ होगा. मैं जानबूझकर किसी को भी बैग छुने नहीं देता था.

        कई लोग पता लगाने के इस अभियान में जुटे हुए थे. पर मैं किसी को भी अपने पुट्ठे पर हाथ रखने ही नहीं देता था. वे आपस में बात करते थे, (जैसा मुझे एक विश्वस्त सूत्र से पता चला) कि जरूर इसमें बढ़िया मालपतर होगा, इसीलिए हमेशा अपने साथ रखता है और किसी को छूने नहीं देता है. अपने को कुछ काबिल और धनी समझने वाले आदमी ने एक बार आखिरकार मुझसे स्पष्ट रूप से पुछ ही दिया कि महीना कितना मिलता है और कितने की बचत होती है.

       मैंने थोड़ी रुखाई के साथ ही कहा, देखिए, “मैं गाँव पर किसी की संपत्ति का पता लगाने नहीं आता और न ही मैं यह जरूरी समझता हूँ कि मैं आपको अपनी आमदनी के बारे में बताऊँ. मैं गाँव में न तो अपनी कमाई बताने आया हूँ और न ही किसी की संपत्ति के बारे में जानने के लिए. मैंने तो कभी आपसे आपकी कमाई के बारे में कुछ नहीं पुछा, फिर आप मेरी कमाई के बारे में जानने के लिए इतना इच्छुक क्यों हैं”? उसके बाद से कभी किसी ने मुझसे ऐसा प्रश्न फिर नहीं किया. मुझे भी सुकून मिला. 

        ऐसी ही अनर्गल और बेसिरपैर की बातें आज भी वे करते हैं, पर मुझसे थोड़ा बचने की कोशिश करते हैं. कम से कम सिर पर तो किसी को भी नहीं चढ़ाना चाहिए

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