मुनेश त्यागी
आदिवासियों, मत समझो तुम आजाद हो,
तुम्हारा अंगूठा काटने वाले ,फिर लौट आये हैं।
दलित भाईयों, मत समझो तुम आजाद हो ,
तुम्हारी जीभ काटने वाले ,फिर लौट आये हैं।
वेद सुनने वालों, मत समझो तुम आजाद हो,
कानों में शीशा डालने वाले ,फिर लौट आये हैं।
हक मांगने वालों, मत समझो तुम आजाद हो,
तुम्हें जेल में डालने वाले, फिर लौट आये हैं ।
मेहनतकशों, मत समझो तुम आजाद हो,
तुम्हारे रुजगार छीनने वाले ,फिर लौट आये हैं।
अन्नदाताओं, मत समझो तुम आजाद हो,
फसलों को हडपने वाले ,फिर लौट आये हैं।
आरक्षणियों, मत समझो तुम आजाद हो,
आरक्षण को छीनने वाले ,फिर लौट आये हैं।
अल्पसंख्यकों, मत समझो तुम आजाद हो,
तुम्हें दुश्मन बताने वाले, फिर लौट आए हैं।
हिंदुस्तानियों, मत समझो तुम आजाद हो,
तुम्हें गुलाम बनवाने वाले ,फिर लौट आये हैं।