शशिकांत गुप्ते
महात्मा गांधीजी ने लोकतंत्र में चुनाव को लोक शिक्षण कहा है।
लोकतंत्र में लोक शिक्षण से तात्पर्य चुनाव लडने वाले प्रत्येक राजनैतिक दल के रीति,नीति और सिद्धांत के आधार पर बनने वाले घोषणा पत्र को पढ़ कर समझ कर मतदाताओं को स्वयं के विवेक को जागृत रख कर मतदान करना। लोकतंत्र में लोक सर्वोपारी है। इसीलिए लोक में मतलब जनता में व्यवहारिक ज्ञान का होना अनिवार्य है।
यह तो हुई सैद्धांतिक बात।
इनदिनों सिद्धांत तो सिर्फ कहने सुनने और पुस्तकों में पढ़ने तक ही सीमित रह गए हैं।
व्यवहार में सिद्धांत गधे के सिर से सिंग वाली कहावत को चरितार्थ कर रहें हैं?
इस वास्तविकता को मानसिक रूप से हाशिए पर रख कर कुछ लोग चुनाव पूर्ण,और मतदान के बाद चुनाव के नतीजों को लेकर अपना अभिमत प्रकट करते हैं।
इसे साधारण बोल चाल की भाषा में Opinion poll और Exit poll कहते हैं।
एक होता है चुनाव पूर्व अभिमत और दूसरा निर्गम मतानुमान।
इस कार्य में बहुत से एजेंसी सक्रिय होती है।
इन सभी अभिमत प्रकट करने वालों का चुनाव पूर्व या निर्गम मतानुमान करने का जो भी आकलन हो जो भी मापदंड हो लेकिन आकलन करने वाले इस बात पूर्ण तया अनभिज्ञ होते हैं कि, चुनाव के नतीजों के बाद सरकार किसकी बनेगी?
बहुमत मिलने पर या आपस में गलबहियां कर बहुमत सिद्ध होने पर भी सरकार कितने दिनों तक टिकेगी? इस सवाल का जवाब कोई भी राजनैतिक पंडित देने में सक्षम नहीं हो सकता है।
चुनाव के नतीजों के बाद और सरकार बनने के बाद जब चमत्कारिक रूप से धनलक्ष्मीजी पेटियों को छोड़ खोकोँ की गिनती में तब्दील होकर प्रकट होती है,तब बनी बनाई सरकार धराशाही हो जाती है।
यह अदृश्य धनलक्ष्मीजी निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के लिए सर्वसुविधायुक्त वातानुकूल पांच सितारा स्थानों की तफरी करवाती है। तफरी के पर्यायवाची शब्द है, सैर सपाटा,पर्यटन,यात्रा,और सफर। इस तफरी को लुफ्त तो वे लोग उठातें हैं, जो पूर्व में अनेक गंभीर भ्रष्ट आरोपों से घिरे रहते हैं,लेकिन खोको के प्राप्त करने का पुण्यकर्म करते ही सारे साफ स्वच्छ दूध के धुले हो जातें हैं।
ये लोग सर्वसुविधा युक्त स्थानों पर पर्यटन करते हैं।
सारे अभिमत टांय टांय फिस्स हो जातें हैं।
इन लोगों के सफर करने से जनता अंग्रेजी का Suffer करती है।
जनता बेचारी निम्न शेर दोहराती रहती है।
हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था
हमारी कश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था
शशिकांत गुप्ते इंदौर