-सनत जैन
भारत में चुनाव प्रक्रिया को लेकर आम जनमानस के बीच अब संदेह उत्पन्न होने लगा है। इस संदेह के पुख्ता कारण भी हैं। दिल्ली नगर पालिका निगम के चुनाव हुए थे इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को बहुमत मिला था आम आदमी पार्टी का महापौर चुनाव जाना था लेकिन दिल्ली में जिस तरह से महापौर के चुनाव में उपराज्यपाल द्वारा प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करते हुए चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश की उसे सारे देश ने देखा।
दिल्ली देश की राजधानी है यहां जो भी होता है उसका प्रभाव सारे देश में पड़ता है। हाल ही में चंडीगढ़ के मेयर का चुनाव होना था। इस चुनाव में भी जो हुआ उसको लेकर आम मतदाताओं के बीच में चुनाव प्रक्रिया को लेकर संदेह उत्पन्न हो गया है। चंडीगढ़ नगर परिषद में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के 20 सदस्य हैं। भारतीय जनता पार्टी और अकाली दल के पास 16 सदस्य हैं। महापौर पद के चुनाव के लिए पीठासीन अधिकारी की जो नियुक्त की गई वह भाजपा का पदाधिकारी था, जब चुनाव जीतने की संभावना नहीं दिखी तो उसने बीमारी का बहाना बनाकर चुनाव को टाल दिया। मामला हाईकोर्ट में गया। हाईकोर्ट के हस्तक्षेप से चुनाव की तारीख तय हुई। महापौर पद के चुनाव के लिए एक बार फिर भाजपा के ही एक पदाधिकारी को पीठासीन अधिकारी बना दिया गया। महापौर पद के लिए मतदान हुआ और पीठासीन अधिकारी ने 8 वोट निरस्त करते हुए भारतीय जनता पार्टी के महापौर को जिता दिया। वीडियो के सामने पीठासीन अधिकारी ने उम्मीदवार के नाम के सामने डबल मार्किंग करके मत पत्रअवैध घोषित कर दिए। अब यह मामला फिर हाईकोर्ट में चला गया।
केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा ईवीएम और वीवीपेट मशीन का उपयोग लोकसभा, विधानसभा, और नगरीय संस्थाओं के चुनाव में किया जा रहा है। इन मशीनों की निष्पक्षता को लेकर पिछले कई वर्षों से सवाल उठाए जा रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से केंद्रीय चुनाव आयोग की भूमिका को लेकर लगातार संदेह उत्पन्न किया जा रहा है। केंद्रीय चुनाव आयोग की नियुक्ति में पक्षपात किया जा रहा है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी, प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और मुख्य न्यायाधीश की कमेटी चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करेगी। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को बदल दिया।
सरकार ने जो नया कानून बनाया है उसके बाद चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त एक मंत्री तथा नेता प्रतिपक्ष केंद्रीय चुनाव आयोग के आयुक्त का चयन करेंगे। इसके बाद संदेह और भी गहरा गया। सुप्रीम कोर्ट के वकीलों द्वारा वैलेट पेपर से चुनाव कराये जाने की मांग शुरू की थी। हाल ही में पांच राज्यों के जो विधानसभा चुनाव हुए थे उसमें केंद्रीय चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली तथा ईवीएम मशीनों को लेकर मतदान की जो आंकड़े दिए गए थे, उसमें विरोधाभास होने के कारण वैलेट से चुनाव कराने की मांग की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकीलों का यह कहना है कि जब सारी दुनिया के विकसित देशों में जिन्होंने ईवीएम मशीन का आविष्कार किया था उनके यहां पर भी वैलिड पेपर से ही चुनाव होता है, अत: भारत में भी चुनाव इसी माध्यम से होना चाहिए। केंद्रीय चुनाव आयोग ने जब यह मांग ठुकरा दी उसके बाद टेक्नोक्रेट द्वारा डमी ईवीएम मशीन और वीवीपेट मशीन तैयार कर डेमो दिया गया, जिसमें यह बताया गया कि प्रोग्रामिंग के जरिए कैसे रिजल्ट को बदला जा सकता है। सैकड़ों स्थान पर इसका प्रदर्शन किया गया।
जंतर-मंतर में धरना-प्रदर्शन हुआ। सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका लंबित है। इसी बीच सूचना अधिकार कानून एवं भारतीय इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड जो ईवीएम मशीन बनाती है इसकी वेबसाइट में चार स्वतंत्र निदेशक भाजपा के चार पदाधिकारी पाए गए। इसको लेकर संदेह और भी गहरा गया है। किसी पार्टी विशेष के पदाधिकारी कैसे ईवीएम मशीन और वीवीपेट सप्लाई करने वाले और प्रोग्रामिंग करने वाले हो सकते हैं। देश में पहली बार चुनाव को लेकर केंद्रीय चुनाव आयोग की भूमिका संदेहास्पद हुई है। जिस तरह से केंद्र सरकार की ताकत बढ़ी है। केंद्रीय चुनाव आयोग विपक्षी दलों पर तो तुरंत कार्रवाई करता है लेकिन सत्तारूढ़ दल के बारे में बेखबर होकर रहता है।
विभिन्न हिस्सों में डेमो मशीनों के द्वारा जिस तरह से मतदान में हो रही गड़बड़ी को उजागर किया जा रहा है, उसके बाद अब यह संदेह बुरी तरह गहरा गया है। अब तो यह भी कहा जाने लगा है कि दिल्ली और चंडीगढ़ जैसी नगरीय संस्थानों में हुई पराजय को भाजपा स्वीकार नहीं कर पा रही है। ऐसी स्थिति में लोकसभा के चुनाव में क्या करेगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। निर्वाचन आयोग में नियुक्तियां, इलेक्ट्रॉल बांड तथा ईवीएम मशीन को लेकर जिस तरह का संदेह और चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता को लेकर जो गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं, इनका यदि तुरंत निराकरण नहीं हुआ तो इसके गंभीर परिणाम भी सामने आ सकते हैं।