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महिलाओं के उत्थान में डॉक्टर अंबेडकर का अद्वितीय योगदान

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मुनेश त्यागी 

     भारत के इतिहास में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का विशिष्ट स्थान रहा है। वे गरीब परिवार से थे जिसके पास धन-धान्य का अभाव था। अंबेडकर बहुत पढ़ाकू प्रवृत्ति के बच्चे थे। उन्होंने लगातार कोशिशें के बाद अपनी पढ़ाई जारी रखी और उन्होंने एमए, एमएससी, डीएससी, पीएचडी, बारएटला और एलएलडी की डिग्रियां हासिल कीं और वे एक बहुत बड़े शिक्षाविद और समाज सुधारक बनें।

      उन्होंने समाज में व्याप्त भेदभाव को अपनी आंखों से देखा था। नाई उनके बाल नहीं काटे, तांगे वाले ने तांगे पर नहीं बिठाया, हॉस्टल में कमरा नहीं मिला, होटल वाले ने भेदभाव किया, पानी वाले ने पानी नहीं पिलाया। समाज में व्याप्त इन सारे भेदभावों का उनके जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ा था। इसे परेशान होकर उन्होंने भारतीय समाज में फैले तमाम तरह के भेदभाव और थोड़ा छात्र को जड़ से खत्म करने की ठान ली थी।

     डॉक्टर अंबेडकर मजदूर एकता की हामी थे। वे शोषण और अन्याय से मजदूरों की मुक्ति चाहते थे। सारे समाज में समता, समानता और भाईचारे की भावना देखना चाहते थे। अपने इन्हीं विशिष्ट गुणों के कारण डॉक्टर अंबेडकर को संविधान निर्माता समिति का अध्यक्ष बनाया गया। वे भारतीय समाज में समता, समानता, आजादी और सबके समुचित विकास के बहुत बड़े हामी थे। वे मनुस्मृति के सबसे बड़े विरोधी थे क्योंकि मनुस्मृति ने भारत के तमाम एससी, एसटी, ओबीसी, गरीबों, वंचितों, पिछड़ों और महिलाओं को तमाम तरह के हक अधिकारों से वंचित का रखा था।  वैसे तो डॉक्टर अंबेडकर ने समस्त भारतियों के विकास और उत्थान के लिए कार्य किया था, मगर औरतें की शिक्षा, रोजगार, विवाह और विरासत में समानता दिलवाने में उनका महान योगदान था।

     वे औरतों की समता, समानता और विकास के सबसे बड़े हामी थे। उन्होंने औरतों की शिक्षा के लिए काम किया। भारतीय समाज में आजादी से पहले औरतों की शिक्षा का कोई प्रावधान नहीं था। इस विषय में अंबेडकर ने कड़ी लड़ाई लड़ी, हिंदू कोड बिल लाये और सारे भारतीय पुरुषों महिलाओं के लिए समान, निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के प्रावधान कराये।

     संविधान लागू होने के बाद सभी लड़के लड़कियों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की गई। केजी से पीजी तक मुक्त शिक्षा का इंतजाम किया गया था। इस प्रकार डॉक्टर अंबेडकर ने मनुस्मृति द्वारा औरतों के पढ़ने पर लगी पाबंदी को जड़ से खत्म कर दिया और लड़कों के समान सभी लड़कियों के पढ़ने लिखने पर जोर दिया और उन्हें शिक्षा के मार्ग पर आगे बढ़ाया।

    डॉ आंबेडकर औरतों के लिए रोजगार के सबसे बड़े हामी थे। वे चाहते थे कि पुरुषों की तरह महिलाओं को भी नौकरी रोजगार मिले। इस नीति के अमल में आने के बाद, महिलाओं को नौकरियां मिलने लगी। वे भी पुरुषों की तरह आईएएस, पीसीएस, जज, डॉक्टर, शिक्षिका, बाबू, स्टेनो, दाई, नर्स, वकील, विधायक, सांसद, पार्षद, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक बन गईं।

      उनके प्रयासों से ही कारखाने में काम करने वाली महिलाओं के लिए सवेतन मातृत्व अवकाश अधिनियम बनाया गया। उन्होंने प्रावधान किया कि सारे श्रम कानून महिलाओं के लिए भी लागू हों। उन्होंने श्रम कानून में व्यवस्था की कि समान काम का समान वेतन मिले, यानी औरतों और पुरुषों द्वारा किए जा रहे समान प्रकृति के कार्य का समान वेतन मिलना चाहिए। उन्होंने औरतों के लिए भी 8 घंटे काम का दिन निश्चित कराया। कामकाजी महिलाओं की वर्किंग कंडीशन में प्रभावी सुधार किया और कामकाजी महिलाओं को मातृत्व का लाभ देने के लिए, आधा वेतन कारखाना मलिक दे और आधा वेतन सरकार दे, ऐसी व्यवस्था कराई। महिलाओं के लिए कैजुअल लीव और चोट लगने पर या मृत्यु होने पर, स्थाई क्षतिपूर्ति का कानूनी इंतजाम किया गया और सेवा निवृत होने पर महिलाओं को भी पुरुषों की तरह पेंशन का प्रावधान किया गया।

      इस तरह डॉक्टर अंबेडकर ने महिला सशक्तिकरण का बीड़ा उठाया और इस मुहिम को पूरा किया और उन्होंने भारत की तमाम औरतों को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में समता और समानता के अधिकार मोहिया कराए।

     डॉक्टर अंबेडकर के प्रयासों से ही महिलाओं को विवाह करने का कानूनी अधिकार दिया गया और जरूरत पड़ने पर कानूनी तलाक लेने का अधिकार दिलाया। उन्होंने बहु विवाह प्रथा को खत्म किया और औरतों को अपनी मर्जी से अपना पति चुनने का अधिकार दिया और परिस्थितियों के अनुसार औरतों को कानूनी तलाक लेने का अधिकार भी दिया।

      डॉक्टर अंबेडकर के प्रयासों से ही विधवा महिलाओं के पुनर्विवाह का कानूनी प्रावधान किया गया और विधवा पुनर्विवाह अधिनियम बनाया गया। पैतृक संपत्ति में समानता दिलाने के लिए अंबेडकर ने जी जान से काम किया। महिलाओं को पति की मृत्यु के बाद संपत्ति में हकदार बनाया गया और जरूरत पड़ने पर औरतों को संपत्ति बेचने का अधिकार भी दिया गया।

     डॉ आंबेडकर के प्रयासों से औरतों को बच्चे गोद लेने का प्रावधान किया गया और उन्हें गोद लेने का अधिकार दिया गया। जरूरत पड़ने पर औरत को अधिकार दिया गया कि वह लड़का या लड़की गोद ले सकती है। उन्होंने पति द्वारा गलत तरीके से छोड़ने पर या लापरवाही करने पर औरतों को भरण पोषण का अधिकार दिलाया और इसी के साथ-साथ उन्होंने पिता की तरह, मां को भी बच्चों का प्राकृतिक अभिभावक बनने का अधिकार दिलाया। लैंगिक समानता का अधिकार देने में भी अंबेडकर पीछे नहीं रहे।

      उन्होंने प्रावधान किया कराया कि लिंग के आधार पर औरत या मर्द में कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा और इस प्रकार औरतों को लैंगिक समानता का अधिकार दिलवाया। अंबेडकर द्वारा औरतों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता और आजादी देने में और उनके सशक्तिकरण करने में उनकी विशेष और महत्वपूर्ण भूमिका रही है। औरतों के उत्थान, विकास और आजादी के लिए भारत के संवैधानिक इतिहास में डॉक्टर अंबेडकर का महान और अविस्मरणीय योगदान रहा है।

      आज के दौर में महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, पेंशन यानी उनके राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक समानता और भागीदारी पर भयंकर हमले हो रहे हैं। दहेज रूपी वर्तमान राक्षस, औरत और मर्दों समेत सारे समाज को परेशान कर रहा है। आज पुनः इन समस्त संवैधानिक, जनतांत्रिक अधिकारों और आजादियों को बचाने की और आगे बढ़ाने की सबसे ज्यादा जरूरत है और इसी के साथ-साथ औरतों की समता और समानता और आजादी के डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के सपनों को आगे ले जाने की जरूरत है।

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