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” डॉ अम्वेडकर का सामाजिक न्याय और समता मूलक समाज का सपना,दशा और दिशा

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नीरज कुमार

 डॉ अम्वेडकर अपने जीवन में वर्ग संघर्ष और शोषित और वंचित समुदाय को सामाजिक न्याय दिलबाने के लिए सतत संघर्षशील रहे उनका दर्द जातियों में बटे समाज को शोषण और ऊच -नीच के भेद से बाहर निकाल कर देश की अखंडता और समता मूलक समाज की स्थापना और राष्ट्र के उन्नयन में उनकी पारस्परिक सहभागिता सुनिश्चित करवाना मुख्यता रही वे संविधानिक मूल्यों को आडम्बर और कुरीतियों के समूल नाश का मुख्य हथियार मानते थे आज उनकी १३१ वी जयंती पर उनके मूल्यों और संघर्षो को तेज धार देने वाले एक जननायक की आवश्यकता पर पुनर मंथन करने की आवश्यकता है जो शोषित वंचित समुदाय को सामाजिक न्याय और समतामूलक समाज की स्थापना के अवरुद्ध पड़े मार्ग को फिर से बहाल कर सके

अम्बेडकर ने देश के हर पिछड़े और वंचित क्षेत्रो में रह रहे उन वंचित और शोषित समुदाय के आम लोगो के दर्द और दासता की वर्षो से चली आ रही कुप्रथाओ और वर्ग संघर्ष के उस घर्षण को महसूस किया जिसने समाज को ऊच नीच के आधार पर वर्गीकृत कर दिया था, अम्बेडकर वर्ग संघर्ष के लिए कही न कही धर्म को जिम्मेदार मानते थे यधपि कोई भी धर्म अपने अनुयाइयों में जन्म के आधार पर ऊच नीच के कुचक्र में कैसे वाध सकता है व्यक्ति अपने कर्मो और विचारो से श्रेष्ठ वनता है अत उनकी धर्म से भी कुंठा थी एक लोकतान्त्रिक देश के लिए उसका संविधान ही महत्वपूर्ण  वैधानिक धर्म ग्रन्थ होता है जिसके आधार पर उचित और अनुचित का निर्णय होता है लेकिन भारत में इसका निर्धारण धर्म और उसकी प्रथाओं द्वारा होता  है यहाँ एक तरह से अम्बेडकर संवैधानिक मूल्यों के सजगता से अनुपालन के पक्षधर के रूप में नजर आते है अम्बेडकर एक उस अकेले नायक के रूप में संघर्षशील दिखते है जो की अकेले ही सदियों  से चले आ रहे शोषित और वंचित समाज के ऊपर अन्याय और शोषण के खिलाफ मुखर दिखते है अम्बेडकर की विराशत को फिर से सहेजने की आवश्यकता है जिससे जातियों और वर्ग के संघर्ष को समाप्त कर शोषण मुक्त समाज की स्थापना की जा सके और इक्कीशवी सदी के भारत का नवनिर्माण किया  जा सके तभी अम्बेडकर की जयंती मनाने का उद्देश्य सार्थक होगा। @  लेखक नीरज कुमार (अध्यक्ष ),सर्वोदय जागरण मंच,भारत।

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