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डॉ लोहिया ने फूंका था गैर कांग्रेसवाद का बिगुल

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कैलाश रावत

जब तक इस दुनिया में मनुष्य की उपस्थिति है समाजवाद किसी न किसी रूप में सार्थक बना रहेगा जब भी दुनिया में समाजवाद पर विचार होगा डॉ राम मनोहर लोहिया के विचारों की भूमिका बनी रहेगी समतामूलक समाज और सुख संपन्न अदाओं को लाने का संघर्ष भी चलता रहेगा

डॉ राम मनोहर लोहिया लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़े समाजवादी मजबूत विकल्प देने की स्थिति में है समाज में उनकी हैसियत भी है राजनीतिक परिस्थिति वश में गुमनामी के अंधेरे में खो गए इन सब बातों को हमें स्वीकार करना पड़ेगा जवाब रचनात्मक राजनीतिक कार्य में सहयोगी बना पाओगे सबकी अपनी क्षमताएं होती हैं देश में चुनाव व्यवस्था से लड़ना सुचिता पारदर्शिता लाने का से उन्हीं लोगों को जाता है जो धनबल बाहुबल और सरकार के खिलाफ सीना तान कर खड़े होते हैं

गैर कांग्रेसवाद का असर है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जंनसघ  आज की भारतीय जनता पार्टी के तमाम लोग उस भवन में भारी संख्या में घुस पाए जिसे लोकसभा कहते हैं मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति में उदय का सबसे बड़ा योगदान लोकनायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति डॉ राम मनोहर लोहिया के गैर कांग्रेसवाद के खाते में जाता है

9 अगस्त 1965 को हिंदी भाषी राज्यों को केंद्र बनाकर गैर कांग्रेसी बाद के तहत डॉ राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में संयुक्त विपक्ष ने पहला और जोरदार संघर्ष किया था इससे पहले 1955 में सोशलिस्ट पार्टी के हैदराबाद स्थापना सम्मेलन में दो राजनीतिक लक्ष्य निर्धारित किए गए थे जिसमें पहला था 7 साल में सत्ता 

वेदखल और दूसरा था कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों से समान दूरी बना कर रखना

ब्राह्मण  विरोध घणित  मानसिकता का  देवतक  हैं

         भारत छोड़ो आंदोलन में युवा सम्राट डॉक्टर राम मनोहर लोहिया आजादी के बाद भारत की राजनीति को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु है और उम्मीद जगाने विचारों को आंदोलित कर परिवर्तन की और प्रेषित कर आपने हम जैसे कई लोगों को राह दिखाई हमारे आपके आदर्श पुरुष  डॉ राम मनोहर लोहिया को सादर नमन करता हूं

महात्मा गांधी के अवसान के बाद तीन प्रकार के गांधीवादी सामने आए

1।  सरकारी गांधीवादी

2।  मट्ठी गांधीवादी

3। कुजात  गांधीवादी

सरकारी गांधीवादी हर काम में गांधी का नाम लेकर गांधी की रूपरेखा से उलट नीति के आधार पर देश चलाने में लगे

मट्ठी गांधीवादी महंत बनकर चंदा बटोर कर उपदेशक एवं सरकारी तंत्र के रूप में अवतरित हो गए इनके भिन्न-भिन्न नाम और मठ है

कुजात गांधीवादी समाज सत्ताचयुत कुजात गांधीवादी रहे जो अन्याय के प्रकार के लिए शक्तिशाली स्वशासन से टकराते थे वर्ण उनके द्वारा देश के प्रति किए गए विश्वासघात से देश को परिचित कराते थे

           कुजात गांधीवादीयो को सरकार अखबार एवं मठ तीनों के कोप भाजन बनना पड़ा

 जाति तोड़ने और अंतर जाति विवाह की तरफदारी करने

 वाले डॉक्टर राम मनोहर लोहिया का मानना है कि सामाजिक परिवर्तन सभी जातियों के सहयोग के बिना संभव नहीं है डॉक्टर लोहिया आत्मा से विद्रोही अन्याय का तिब्बतम प्रतिकार उनके कर्म का  सिद्धांतों की बुनियाद रही डॉक्टर लोहिया कहा करते थे

 ब्राह्मण बाद

 का विरोध तो जायज लगता है पर ब्राह्मण विरोध घाणित मानसिकता का देवतक है 

सामाजिक विषमताओं के सवाल पर वह कहते हैं इस देश में वंचित शोषित पीड़ितों के साथ नारी भी पिछड़ी है

      संसोपा ने बांधी गांठ

                पिछड़ा  पावे सौ में  साठ

राजनीति में शुचिता नैतिकता के बड़े हिमायती थे जब उसी पार्टी की विचारधारा के लोग उसी पार्टी की गलत बात का विरोध करेंगे तभी राजनीतिक शुचिता और नैतिकता आएगी हर व्यक्ति का दृष्टिकोण अलग अलग होता है स्वयं का परीक्षण करते रहना चाहिए  देह धरे का दोष होता है इस दोष से छुटकारा नहीं पाया जा सकता बड़े काम के लिए छोटे दोषों को नजरअंदाज करना पड़ता है

महात्मा गांधी आचार्य विनोबा भावे  से डॉ राम मनोहर लोहिया जयप्रकाश नारायण वैचारिक रूप से हमेशा नजदीक रहे

गांधी जी के मुकाबला लोहिया के विचारों ने साहित्यकारों को ज्यादा मत था गांधी और लोहिया में उतना भेद देखता हूं जितना राम और कृष्ण गांधीजी राम नाम और मर्यादाओं में बधे दूसरा मर्यादाओं को तोड़ने को हर समय उद्धत भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान देश की तरूणाई में बगावत के शोले भर गए थे जयप्रकाश डॉक्टर लोहिया भूमिगत होकर गिरफ्तारी से बचने के लिए नेपाल की ओर भागे गिरफ्तार हो जाने के बाद गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत को ललकारा यहां तक कहा डॉक्टर लोहिया जयप्रकाश भारत की आत्मा है लोहिया जेपी गिने चुने नेताओं में गांधी के ग्राम स्वराज के साथ थे और विनोबा के भूदान आंदोलन में जेपी शामिल हो गए

डॉ राम मनोहर लोहिया को सिर्फ 57 साल की उम्र मिली गुजरे हुए 54 साल बीत गए पर दूसरों के लिए जीने वाले हमेशा जिंदा रहते हैं डॉक्टर लोहिया भी जिंदा है अपने विचारों के जरिए वह गांधीवादी थे खुद को कुजात गांधीवादी बताते थे उन्होंने गांधी वादियों की तीन श्रेणी बाटी हैं 1 को सत्ता के साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू डॉ राजेंद्र प्रसाद दूसरे जो गांधी के नाम पर संस्थाएं चलाते हैं आचार्य विनोबा भावे जेसे उसमें शामिल मानते हैं तीसरी श्रेणी में खुद को रखते थे वह गांधी के सत्याग्रह और अहिंसा के प्रबंल अनुगामी थे पर उन्होंने गांधी बादको अधूरा दर्शन बताया

डॉक्टर लोहिया ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को उस दौर में चुनौती दी जब बह लोकप्रियता के शिखर पर थे लोहिया जी का नेहरू जी वा कांग्रेस की आलोचना में निजी बैर जैसा कुछ नहीं था वे मानते थे कि नेहरू जी और कांग्रेश उस रास्ते से भटके हुए हैं रास्ते के लिए आजादी की लड़ाई लड़ी गई इसलिए वह कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करना जरूरी मानते थे 

गैर कांग्रेसी बाद की मुहिम पर निकले डॉक्टर लोहिया ने 1967 अभी तक 9 राज्यों में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया था यह चमत्कार डॉक्टर लोहिया का था जिनकी कोशिशो थे कम्युनिस्ट और जनसंघ सरकारों में एक साथ शामिल थे 

1977 में जनसंघ को आगे बढ़ाने का श्रेय लोकनायक जयप्रकाश नारायण को जाता है इसके एक दशक पहले यह डॉक्टर लोहिया पर चस्पा किया जा चुका था लोहिया जी का कद राजनीति में बहुत बड़ा था विपरीत धाराओं में तैर कर पार पहुंचने वाले गांधी के अनुयाई लोहिया पर भक्त नहीं किसी को अपना वक्त बनाने की चाहत ना रखने वाले की सवाल करने वाले और सवालों का जवाब देने के लिए तैयार रहने वाले लोग भी

22 अगस्त 1963 को पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार के खिलाफ पहला विश्वास लोहिया ने पेश किया था उस बहस में हिस्सा लेते हुए लोहिया ने कहा था जिंदा को 5 साल इंतजार नहीं करती या तो सरकारें सुधरती हैं या फिर बदलती हैं

डॉ लोहिया ने रामायण मेले की परिकल्पना की और यह करते समय उनके दिमाग के किसी भी कोने में इसके जरिए हिंदुओं को लामबंद करने की चाहत नहीं थी

दूसरी तरफ उन्हें आयोजन के चलते मुस्लिम मतदाताओं के बिदक ने का भय भी नहीं था सांप्रदायिक हिंसा के लिए हिंदू मुसलमान दोनों को जिम्मेदार मानते थे  दोनो समाज के परिवारों कि तरफसे  हुई हिंदू और मुसलमानों की जड़ों में अविश्वास का जहर घोल आ गया एक काम किसी और ने नहीं बल्कि दोनों समुदाय के पढ़े लिखे लोगों ने किया

मजहब का काम है अच्छाई करें और राजनीति का काम है बुराई से लड़े एक ही सिक्के के दो पहलू हैं

डॉक्टर लोहिया ने वह रास्ता दिखाया जिसके जरिए साधारण लोग भी  पहलाद बन सकते हैं वह तकलीफ उठाने  सिविल नाफरमानी का करतब करने वाला एक होता है सेंकड़ों आदमी उसकी स्तुति करने वाले होते हैं

मैं नहीं जानना चाहता श्रीराम थे कि नहीं यह भी नहीं जानना चाहता कीवी परमेश्वर थे या दशरथ नंदन भारत के करोड़ों करोड़ जनता जिस राम के नाम के सहारे अपना सुख दुख जीवन में सब कुछ सहन कर लेते हैं अपने राम के प्रति समर्पण और विसर्जन

आज   की राजनीति में गैर कांग्रेसी बाद गैर भाजपा बाद के लिए उनके संगठन कांग्रेश के आगे  आत्मसमर्पण कर रहे हैं सिर्फ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शोर मचाने से रोकने वाला नहीं है जनता की अपनी समझ होती हैइसके लिए डॉक्टर लोहिया के बताए हुए विकल्प और कार्यक्रम रखना होंगे उन पर अमल भी करना पड़ेगा संघर्ष करते हुए विफलताओं को झेलते हुए सिद्धांतों पर रहकर काम करना यही समाजवाद है

डॉ राम मनोहर लोहिया गैर कांग्रेसी बाद स्थाई सरकार बनाने के लिए नहीं अपनाना चाहते थे बगैर कांग्रेश बाद को स्वीकार करते हुए चाहते थे कि स्थाई सरकार बनाने की अपेक्षा ऐसी योजनाएं बने जो जन संघर्ष को तीव्र करें जो भी सरकार हो उसे तबे की रोटी की तरह उलटने पलटने मैं संकोच न करें 

डॉ राम मनोहर लोहिया के बाद समाजवादियों ने उसके इस मूल मंत्र को ही पलट दिया  परिणामस्वरूप समाजवादी पार्टी टुकड़े-टुकड़े होकर टूटने लगी समस्त विघटनकारियों के पीछे जो मन काम कर रहा था बह लालची मन था सत्ता पाने का लोभी मन था और संघर्ष से बिमुख होकर आराम की राजनीति करने वाला पतन शील मन था कोई भी संगठन जब इस प्रकार की दुरभि संधियों का शिकार होता है  तव सुविधा बाद विकसित होता है सारी क्रांतियां समाप्त हो जाती हैं

डॉ राम मनोहर लोहिया के जीवन काल में समाजवादी संगठन समाजवाद के व्यावहारिक रूप को केवल उतना ही समझ पाए थे जितना डॉक्टर लोहिया ने स्वयं करके दिया था जो नीतियां निर्धारित की नीतियां कम सिद्धांत अधिक थे गांधीजी के बाद मट्ठी और सरकारी गांधी वादियो ने घोषित कर दिया था कि गांधी संघर्ष परख रूप समाप्त हो गया है जितने गांधी वादी सिद्धांत थे उससे बचना शुरू कर दिया

 गैर कांग्रेसी बाद और थोड़ी सी सत्ता की नजदीकी ने देश को गर्म करने वाले सारे काम समाप्त कर दिए वाणी दिवस किसान दिवस दाम बांधो खर्च और आमदनी पर सीमा लगाओ जाति तोड़ो आदि जितने देश को गर्म करने वाले कार्यक्रम थे कहीं नहीं उठाएगा लोगों को ऐसी लगने लगा जैसे समाजवादी आंदोलन भी कांगेश  भाजापा की सही और सच्ची कार्बन कॉपी हो गयी

देश के नवयुवको को डॉक्टर लोहिया ने जुझारू चरित प्रदान किया था 1957 से लेकर 1967 तक उन्होंने यहसंकल्प शक्ति मंडल नव युवकों की ऐसी पंक्ति खड़ी कर दी थीजिनके चरित्र और व्यक्तित्व ने पूरे समाजवादी आंदोलन को शक्ति प्रदान की    रघु ठाकुर जी जानेश्वर मिश्र मोहन सिंह  प्रेम लाल मिश्रा   रामस्वरूप मंत्री जी रामबाबू अग्रवाल रामाशंकर सिंह डॉ सुनीलम  सत्यदेव त्रिपाठी मुख्तियार अनीश  शिवानंद तिवारी उमेश प्रसाद सिंह नरेंद्र सिंह शक्ति प्रकाश पांडे माता प्रसाद पांडे  जय शंकर पांडे  संतोष भारती डॉक्टर बद्री प्रसाद बच्चन नायक चंद्रमणि त्रिपाठी मगनलाल गोयल गया प्रसाद रावत गौरी शंकर शुक्ला रामेश्वर दयाल दात्ररे चौधरी दिलीप सिंह रघुवीर सिंह कुशवाहा विष्णु दत्त तिवारी बृजेंद्रतिवारी राकेश शर्मा बृजेंद्र तिवारी जी आदि नेता आज भी समाजवाद और डॉक्टर लोहिया के नाम की अलख जगाते रहे आज भी इनके व्यक्तित्व और चरित्र में डॉक्टर लोहिया के प्रशिक्षण और नेतृत्व की छाप देखी जा सकती है अफसोस इस बात का है कि देश के युवकों की क्रांतिकारी छवि ऐसी समाप्त होती जा रही है जिसकी वापसी की संभावनाएं ना के बराबर है

डॉ राम मनोहर लोहिया  सडक की राजनीति के नेता नहीं थे  स्वयं बड़े प्रबुद्ध थे देश के इतिहास उसकी संस्कृति उसके धर्म और उसकी परंपरा की गहरे पारखी थे जहां एक ओर वह जेल बोट और फावड़ा के समर्थक थे वही वह व्यापक मानवीय संस्कृति की भी अधिष्ठाता थेजिसमें बौद्धिक चेतना के साथ-साथ कविता संगीत कला और स्थापत्य के विषय की सही समझदारी भी थी देश में युवकों को सारी समझदारी देखना चाहते थेसबको समाजवादी आंदोलन का महत्वपूर्ण लक्ष्य मानते थे इसलिए उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं की श्रृंखला प्रकाशित की अंग्रेजी में मैनकाइंड हिंदी में जन और चौखंबा जैसी पत्रिकाएं प्रकाशित कराने के लिए उन्होंने साधन जुटाए थे

 वर्ष में  चार पांच प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन करवाते पन्द्रह पन्द्रह दिन तक इन शिविरों में पार्टी के चिंतक और विचारक तो भाग लेते ही थे साथ ही बुद्धिजीवियों को इन शिविरो में आमंत्रित करते थे

जिनमें देश और समाज के प्रति जागरूक एवं क्रांतिकारी विचार हुआ करते थे प्रशिक्षण शिविरों में समाजवादी कार्यकर्ता पार्टी के कार्यक्रमों के प्रति प्रतिबद्ध होते थे इनके भीतर वह शवतहा स्फूर्ति चेतना विकसित होती थी जो न्याय और अन्याय में विभेद कर सके तब तो समाजकी पहचान पैदा कर सके उसी के साथ धर्म के क्षेत्र में अपना योगदान दे सकें डॉक्टर लोहिया के ना रहने के बाद  अलग-अलग दावे पेश कर अपनी बातों की पुष्टि के लिए डॉक्टर लोहिया के कथनो को तोड़ने मरोड़ने भी लगे किसी राजनीतिक पार्टी में  प्राय  दुर्घटनाएं नहीं होती हैं

 डॉक्टर लोहिया ने अपनी पलकें बंद की हर बड़ा नेता अपनी ही बात को सही साबित करने के लिए कहने लगा कि डॉक्टर लोहिया ने उनके कान में है यह  बात कही थी वे यह भूल गए कि डॉ राम मनोहर लोहिया कान में बात कहने की आदी नहीं थे उनका स्वयं का चरित्र एक खुली किताब की तरह था कथनी करनी दोनों साथ-साथ व्यवहार में आती थी लोहिया ने कोई बात कही हो और उसके अनुरूप स्वयं आचरण करके उसको सिद्ध ना किया हो ऐसा प्रमाण मिलना कठिन है 

अभी भी समय है डॉक्टर लोहिया के सिद्धांत पर चलकर देश को बचाया जा सकता है सरकारों को सही दिशा में काम करने के लिए मजबूर किया जा सकता है आइए हम सब लोहिया जी के बताए हुए मार्ग पर चलें समतामूलक समाज की स्थापना में अपना अमूल्य योगदान दीजिए

गैर कांग्रेसी बाद के जनक सम्मानीय स्वर्गीय डॉक्टर राम मनोहर लोहिया को शत शत नमन 

जलती रहेंगी डॉक्टर लोहिया के नाम की मसाले

      कैलाश रावत

ग्राम मडिया जिला निवाड़ी मध्य प्रदेश 742336

7999606143

9826665847

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