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डॉ लोहिया का पुण्य स्मरण

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शशिकांत गुप्ते

प्रख्यात समाजवादी चिंतक विचारक, स्वतंत्रता
सैनानी डॉ राममनोहर लोहियाजी की 12 ऑक्टोबर को पुण्यतिथि है।
डॉ लोहियाजी का जन्म दिन 23 मार्च को है।लोहियाजी ने अपने जीते जी कभी भी अपना जन्म दिन नहीं मनाया कारण 23 मार्च को महान क्रांतिकारी भगतसिंह, राजगुरु,और सुखदेव के शहादत का दिन है।23 मार्च को तीनों को फाँसी हुई थी।
लोहियाजी ने गांधीजी के सिंद्धान्तों को अमलीजामा पहनाया।
लोहियाजी के जनजागृति के लिए बहुत से स्लोगन थे। जिंदा कौम पाँच साल तक इंतजार नहीं करती
अन्याय वहीँ होता है जहाँ सहने वाला होता है

जबतक इंसान भूखा रहेगा
धरती पर तूफ़ान रहेगा

ऐसे अनेक नारे लोहियाजी ने दिए हैं।


आज के संदर्भ में प्रासंगिक स्लोगन है। वाणी की स्वतंत्रता के साथ कर्म पर नियंत्रण
वर्तमान राजनीति में वाणी की स्वतंत्रता के मूलभूत अधिकार को दबाया जा रहा है।लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका को हाशिए रखा जा रहा है।यह तानाशाही प्रवृत्ति है।
स्वतंत्रता आंदोलन में समाचार माध्यमो की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।वर्तमान में बहुत से समाचार माध्यमों की निष्पक्षता पर संदेह होता है।यह लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर लिए बहुत ही गम्भीर प्रश्न है?
डॉ लोहियाजी ने वाणी की स्वतंत्रता के साथ कर्म पर नियंत्रण की बात संयमित वाणी और परस्पर एक दूसरे के प्रति आदर का शुद्ध भाव जागृत हो इसलिए कही थी
इनदिनों राजनीति में सक्रिय लोगों की वाणी ही दूषित हो रही है? जब वाणी ही दूषित हो रही है तो, कर्म पर नियंत्रण की बात करना व्यर्थ है?
डॉ लोहियाजी का वाणी की स्वतंत्रता के साथ कर्म पर नियंत्रण की बात इस इसतरह समझाया था कि,यदि आपको अपने वरिष्ठ का भी विरोध करना होतो आप विरोध कर सकतें हैं, लेकिन विरोध करतें समय वाणी पर संयम रख करना चाहिए।अर्थात विरोध करते समय शब्दों का चयन अच्छा होना चाहिए।
मतलब वरिष्ठ व्यक्ति का आदर करते हुए उसका विरोध करना चाहिए।
डॉ लोहियाजी की तात्कालिक प्रधानमंत्री से संसद के सदन में बहुत तीखी बहस होती थी।
लोहियाजी तार्किकता के साथ बहस करते थे।एक बार तात्कालिक जनसंघ के संसद अटलजी ने भी अपने चौदह मिनिट लोहियाजी को ही दिए थे।संसद के सदन में कितनी भी तीखी बहस हो संसद के बाहर लोहियाजी की तात्कालिक प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू साथ मित्रता किसी से छिपती नहीं थी।नेहरूजी ने अपने कार्यकाल में लोहियाजी के बहुत से मुद्दों पर अमल भी किया है।
तात्कालिक समय सदन में इतना परिपक्वता पूर्ण माहौल था।
वर्तमान में विपक्ष को पूर्ण तरह नजरअंदाज किया जा रहा है।बहुत से सामाचार माध्यमों के द्वारा यह गफलत भी फैलाई जा रही है कि विपक्ष तो है ही नहीं?
डॉ लोहियाजी का सोच बहुत व्यापक था।
स्त्रियों के अधिकार को लेकर लोहियाजी ने सावित्री बनाम द्रौपदी की बहस को चलाया था।लोहियाजी ने द्रौपदी का सम्मान इसलिए था कि, द्रौपदी ने अपने खुले केश रख कर विद्रोह किया था।
एक बहुत ही रोचक और बोध प्रद किस्सा है।
एक बार तात्कालिक समय की तेजतर्रार संसद सदस्य तारकेश्वरी सिन्हा लोहियाजी के साथ संसद भवन के केटिंग में बैठी थी।लोहियाजी को आइसक्रीम और समोसे का बहुत शौक था। तारकेश्वरी के साथ उसकी दो बेटियां भी थी।
वहीँ पर तारकेश्वरी की सत्तापक्ष के एक संसद के साथ बहस हो गई।
बहस के दौरान तारकेश्वरी ने उस संसद से गुस्से में कह दिया कि, आप तो चूड़ियां पहन लो।तारकेश्वरी की बात सुनकर लोहियाजी ने तारकेश्वरी की बेटियों को अपने पास बुलाया और कहा कि तुम्हारी माँ तुम्हें जन्मजात ही कमजोर रखना चाहती है।लोहियाजी की बात सुनकर तारकेश्वरीजी ने पूछा लोहियाजी मैने ऐसा क्या कह दिया। लोहियाजी ने कहा आपने उस व्यक्ति चूड़ियां पहनने को कहा, इसका मतलब आप समझती हैं कि,चूड़ियां कमजोरी का प्रतीक है,स्त्रियां तो बचपन से ही चूड़ियां पहनती है तो क्या स्त्रियां जन्मजात कमजोर ही होतीं हैं?चूड़ियां, कमजोरी का प्रतीक नहीं, चूड़ियां तो स्त्री का श्रृंगार है।
इस तरह तार्किकता के साथ लोहियाजी मुद्दों को स्पष्ट करते थे।
लोहियाजी ने कहा है, राजनीति अल्प कालीन धर्म है,और धर्म दीर्घकालिक राजनीति है
आज हम लोहियाजी को याद करने की सिर्फ औपचारिकता का निर्वाह न करें।
लोहियाजी के द्वारा प्रतिपादित सिंद्धान्तो पर अमल करने का भरसक प्रयास करें।लोहियाजी को पढ़ने और समझने की कौशिश से तर्कशक्ति बढ़ती है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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