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द्रौपदी का विलाप !

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निश्चय ही
सतयुग की स्वर्णिम आभा से अधिक
भव्य-दिव्य और अविस्मरणीय पल था वह,
जब न्याय के सर्वोच्च आसन पर,
देवत्व की भंगिमा में
मी लॉर्ड,
एक बलात्कारी को,
पीड़िता का उद्धार कर
पाप-मुक्ति का अवसर
और अभयदान दे रहे थे।
स्त्री के सम्मान की
इससे बड़ी मिसाल,
और क्या हो सकती है
मी लॉर्ड ?

जिसे उद्धारा जाता है
वह तो शिला होती है
बेजुबान,
भाव-संवेदनाओं
इच्छा-अनिच्छाओं के परे….
जिसे उपकृत होना है.
उसकी स्वीकृति-अस्वीकृति के
मायने भी क्या होते हैं?

अपमान और आक्रोश के
ज्वालामुखी-सी धधकती,
मैं पलटती हूँ
सुदूर अतीत के पन्ने।
सतयुग के तमाम
ऋषि-मुनि-देवों-महात्माओं के द्वारा,
नैतिकता-अनैतिकता की
परिभाषा, व्याख्या और निर्णयों के बाद,
कठघरे में खड़ी स्त्रियाँ,
श्राप और दंड के बीच,
स्वयंभू अवतारों द्वारा,
उद्धारे जाने के लिए
युगों-शताब्दियों तक इंतजार में ।

नैपथ्य में
और भी विदारक हो गया है
द्रौपदी का विलाप,
कुरुसभा में सन्नाटा और गहराता।
तय करना मुश्किल है
प्रबुद्धों-दिग्गजों की चुप्पी
अधिक भयावह है
अथवा दुःशासन के अट्टहास
या सभासदों की क्रूर,
अहंकार और विद्वेष से भरी टिप्पणियाँ।

अंधत्व
जन्मजात न भी हो,
तो राजा द्वारा
अर्जित तो किया ही जा सकता है
सुविधा और तमाम स्वार्थों की पूर्ति के लिए।

माफी मांगती हूँ मैं
देश दुनिया की तमाम बेटियों से,
मंगल-चाँद के अभियान,
लंबी उड़ान के रिकार्ड्स,
पदकों-तमगों को बटोर कर
फहराये राष्ट्र-ध्वज,
मुश्किल परीक्षाओं में,
विपरीत परिस्थितियों में,
लहराए परचम ……
न मालूम क्यों
तुम्हारे लिए बजती तालियों के
शोर के बीच,
विचलित हो जाती हूँ मैं।

ले बैठती हूँ छोटी-छोटी बातें,
उन्नाव और हाथरस से लेकर
तमाम महानगरों में
हत्या,आत्महत्याओं की दर्दनाक खबरें,
डर-डर कर जीते-मरते परिजन,
तंत्र के अभयदान के साथ
बेखौफ घूमते अपराधी।
ब्लैकमेलिंग,
लांछनों-निर्देशों-नसीहतों के बीच,
आयशा और निर्भयाओं के
गिद्ध-भोज में तल्लीन
धर्मगुरु-राजनेता और माफिया,
संस्कृति के ध्वज लहराते हैं।
संसद से सड़क तक,
मुखौटे उतरते हैं
चाल-चलन-चेहरों को
उजागर करते हुए।

उम्मीदों की डोर
बार बार थामती हूँ
जानती हूँ
संघर्ष और संकल्प की सामर्थ्य।
फिर भी आहत और व्यथित ही नहीं
आशंकित हूँ बहुत
मी लॉर्ड,
उथली सोच,
भावशून्यता,
और सामंती दंभ के साथ,
इस आसन पर विराजमान आप,
जहां भविष्य के लिए राहें निर्धारित होती हैं।
मी लॉर्ड,
कबीलाई न्याय
और खाप-पंचायतों की वापसी का दौर
विधिवत तो नहीं लौटेगा ?
इतनी आश्वस्ति चाहती हूँ।

प्रभा मुजुमदार,कवियित्री, सम्पर्क-99692 21570

संकलन-निर्मल कुमार शर्मा, प्रतापविहार, गाजियाबाद,उप्र,

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