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संकीर्ण विचारधारा से मुल्‍क और लोकतंत्र सांप्रदायिकता की आग में झुलसेगा

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राज वाल्‍मीकि 

मोर्निंग वॉक से लौटते हुए ठंड के इस मौसम में गर्मा-गरम चाय पीने की तलब हुई तो मैं चाय की टपरी की ओर बढ़ गया। वहां पड़ोसी विष्‍णु शंकर खरे और राधेश्‍याम तिवारी भी मिल गए। हाय-हलो के बाद चाय की चुस्कियों के साथ मौजूदा राजनीति पर बातचीत का सिलसिला चल पड़ा। संभल की मस्जिद और अजमेर शरीफ की दरगाह की बात भी निकली।

राधेश्‍याम तिवारी बोले-”मुसलमान शासकों ने अपने शासनकाल में हिंदुओं के मंदिर तोड़कर उसी जगह पर मस्जिदें बनवाईं। यही कारण है कि मस्जिदों के अंदर मंदिरों के अवशेष मिलते हैं।

अब आप देख लीजिए कि बाबरी मस्जिद के नीचे हिंदू मंदिर था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के पक्ष में फैसला दिया। इसी तरह काशी में ज्ञानवापी मस्जिद का मामला विचाराधीन है। मथुरा वृंदावन में कृष्‍ण के मंदिर के साथ ही ईदगाह मस्जिद है।

मुसलमान हिंदुस्‍तान को मुस्लिम देश बनाना चाहते थे, इसलिए उन्‍होंने हिंदू धर्म के पूजा स्‍थलों को मिटाने का कार्य किया। लेकिन देखिए अयोध्‍या में फैसला हमारे पक्ष में आया। खैर, अयोध्‍या तो झांकी है, अभी मथुरा काशी बाकी है।

और अब उत्तर प्रदेश में संभल की मस्जिद और राजस्‍‍थान अजमेर के दरगाह की जगह भी हिंदू मंदिर होने का इतिहास मिल रहा है, ऐसा लगता है।

वैसे दावा तो यह भी किया जा सकता है कि अगर खुदाई की जाए तो ताजमहल के नीचे भी हिंदू मंदिर के अवशेष मिल जाएंगे और कुतुब मीनार में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां दिख भी रही हैं। इसलिए इनको तोड़ कर वहां मंदिरों की स्‍थापना होनी चाहिए। जो जिस देवता का मंदिर हो वहां उसकी मूर्ति की प्राण प्रतिष्‍ठा होनी चाहिए।’’

मैंने कहा- ”तिवारी जी, ऐसे तो कुछ बुद्धिस्‍ट का भी दावा है, कहते हैं कि हिंदुओं ने उनके बुद्ध विहार तोड़ कर मंदिर बनवाए। उनके अनुसार इसके प्रमाण मिलते हैं। तो क्‍या मंदिरों को तोड़कर बुद्ध विहार बनवा दें। छोड़िए इन पुरानी बातों को, आखिर गड़े मुरदे उखाड़ने से क्‍या फायदा।”

”फायदा कैसे नहीं है। यह हिंदुस्‍तान है।‍ हिंदू राष्‍ट्र में मंदिर तो होने ही चाहिए। लेकिन बुद्धिस्‍टों का दावा गलत है। उनका कोई इतिहास नहीं मिलता। इसलिए उनके दावे में कोई दम नहीं है।

मंदिरों को तुड़वा कर मस्जिदें बनवाने के ऐतिहासिक साक्ष्‍य मिलते हैं। अजमेर शरीफ दरगाह के बारे में तो 1911 में एक जज द्वारा लिखी किताब में भी इसका उल्‍लेख मिलता है कि जहां आज अजमेर शरीफ दरगाह है वहां पहले भगवान शिव का मंदिर था।

ऐसा माना जा रहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद में भी सर्वे के दौरान शिवलिंग मिला है। यह इस बात का प्रमाण है कि वहां पहले शिव मंदिर था। पर यह मामला कोर्ट में विचाराधीन है इसलिए इसके बारे में कोई टिप्‍पणी करना उचित नहीं होगा।’’

तिवारी जी की बात के समर्थन में विष्‍णु शंकर खरे भी बोल पड़े- ”देखिए, लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट को भी मानना पड़ा कि अयोध्‍या में बाबरी मस्जिद के नीचे राम मंदिर था। और माननीय मुख्‍य न्‍यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने भी हमारे पक्ष में फैसला दिया। और देख लीजिएगा, चाहे ज्ञानवादी मस्जिद हो या संभल की जामा मस्जिद यहां भी हमारे पक्ष में ही फैसला आएगा।”

”खरे जी, आप कानून की बात कर रहे हैं तो आपको पता ही होगा कि 1991 में पूजा स्‍थलों के बारे में एक अधिनियम है जो कहता है कि 15 अगस्‍त 1947 के पहले बने धार्मिक पूजा स्‍थलों से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। वहां यथास्थिति रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने भी अयोध्‍या के राम मंदिर को एक अपवाद बताया था।” मैंने कहा।

इस पर तिवारी जी बोले- ‘’राज साहब, पूजा स्‍थल अधिनियम के बारे में आपको पता नहीं है कि पूर्व सीजेआई चंदचूड़ जी ने क्‍या कहा है। उन्‍होंने कहा है कि भले ही हम इन स्‍थलों से छेड़छाड़ न करें। पर हमें यह जानने का अधिकार है कि मस्जिदों और दरगाह के नीचे पहले मंदिर था या नहीं।”

”आप ये गड़े मुरदे उखाड़ कर यह जान भी लेंगे तो इससे क्‍या लाभ होगा। कुछ हिन्‍दुत्‍ववादी मस्जिद तोड़कर मंदिर बनाने के लिए आंदोलन करेंगे।

इससे हिंदू संप्रदाय और मुस्लिम संप्रदाय के बीच नफरत की आग भड़केगी, लोग एक दूसरे के खून के प्‍यासे हो जाएंगे। हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़केंगे।

हमारा अमन-चैन पसंद मुल्‍क और लोकतंत्र सांप्रदायिकता की आग में झुलसेगा। आखिर आप ऐसा चाहते क्‍यों हैं? आपका औचित्‍य या कहूं आपकी पॉलिटिक्‍स क्‍या है? ”

”हमारी कोई पॉलिटिक्‍स नहीं है। हमारा औचित्‍य स्‍पष्‍ट है। हम पुन: मंदिरों की स्‍थापना कर हिंदू धर्म के गौरव, गरिमा और अस्मिता की पुन:स्‍थापना करना चाहते हैं।

बाबा बागेश्‍वर धीरेंद्र शास्‍त्री भी हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए हिंदुओं को एकजुट करने के लिए हिंदू एकता पदयात्रा कर रहे हैं। हिंदू धर्म के लिए माला और भाला साथ लेकर चलने की बात कह रहे हैं। हमारे योगी जी सही कहते हैं कि हम जब भी बंटे हैं तो कटे हैं।

आप बंगलादेश में ही देख लीजिए। हिंदुओं पर किस तरह अत्‍याचार किए जा रहे हैं। उनके मंदिर तोड़े जा रहे हैं। उनके साथ हिंसा की जा रही है। वहां हिंदुओं की हत्‍याएं की जा रही हैं। ऐसे में हम एकजुट होकर ही अपनी सुरक्षा कर सकते हैं।

एक होकर ही हम अपने हिंदू राष्‍ट्र का सपना पूरा कर सकते हैं। एक होकर ही हम अपने धर्म की रक्षा कर सकते हैं।’’

”आप अपने धर्म की रक्षा की बात कर रहे हैं। आखिर आपके धर्म को खतरा किससे है? ”

”खतरा इन्‍हीं मुसलमानों, से है। मुसलमान अपनी जनसंख्‍या बढ़ा रहे हैं। ज्‍यादा से ज्‍यादा बच्‍चे पैदा कर रहे हैं। तभी हमारे श्रद्धेय मोहन भागवत जी को कहना पड़ रहा है कि कम से कम तीन बच्‍चे पैदा करो।” मुझे लगा तिवारी से बहस में उलझना व्‍यर्थ है।

मेरी चाय खत्‍म हो चुकी थी। मैंने चाय के पैसे चुकाए और घर की ओर चल पड़ा। चलते-चलते सोच रहा था मेरे जैसे लाखों लोग जो देश में लोकता‍ंत्रिक मूल्‍यों के समर्थक हैं।

संवैधानिक विचारधारा के हिमायती हैं। देश के हर नागरिक के मानवाधिकारों के पैरोकार हैं। सबको समान समझते हुए भाईचारे की बात करते हैं।

सबके लिए समता, स्‍वतंत्रता और सामाजिक न्‍याय चाहते हैं उनके लिए विष्‍णु शंकर खरे और राधे श्‍याम तिवारी जैसे लोगों की संकीर्ण विचारधारा नुकसान ही पहुंचाएगी।

उनकी कट्टर हिंदुत्‍ववादी विचारधारा लोकतंत्र में शांति, समृद्धि, अमनाे-चैन के लिए अहितकर है। मुझे अपनी ही कविता की ये पंक्तियां याद आ गईं :-

यहां कैसे उगें समता की फसलें

दिलों की भूमि बंजर देखते हैं

किस तरह बंटता है इंसा ‘राज’ यहां पर

गुरुद्वारे, चर्च, मस्जिद और मंदिर देखते हैं।

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