Site icon अग्नि आलोक

मोदी जी के सात वर्षों के शासन में देश कमजोर हुआ , लोगों की तकलीफ़ बढ़ी

Share

शिवानंद तिवारी, पूर्व सांसद
नरेंद्र मोदी जी की के नेतृत्व में चलने वाली भाजपा सरकार के पिछले सात वर्षों के कार्यकाल में देश के अंदर तनाव और टकराव बढ़ा है. सांप्रदायिक तनाव तो बढ़ा ही है, समाज में अन्य तरह के तनाव भी बढ़े हैं. राज्यों के साथ टकराव बढ़ता जा रहा है. पश्चिम बंगाल इसका ताजा नजीर है. राज्यों की बात नहीं सुनी जा रही है. झारखंड के मुख्यमंत्री ने तो सार्वजनिक रूप से यह आरोप लगाया है. इन कारणों से देश की एकता पहले के मुकाबले ढीली हुई है.

मोदी सरकार के अब तक के महत्वपूर्ण फैसलों के नतीजों का अगर मूल्यांकन करते हैं तो पाते हैं कि देश को उन फैसलों की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है. इनमें सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण फैसला नोटबंदी का था. उसका जो मकसद बताया गया था वह तो नहीं ही हासिल हुआ, बल्कि उस फैसले ने ठीक-ठाक चलने वाली अर्थव्यवस्था की हवा निकाल दी. असंगठित क्षेत्र के करोड़ों गरीबों को उसकी कीमत चुकानी पड़ी. इस फैसले ने देश की अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान पहुंचाया.मोदी सरकार का दूसरा बड़ा फैसला जीएसटी को लागू करने का था. बहुत उत्सव के साथ आधी रात को संसद का सत्र बुलाकर जीएसटी का कानून बनाया गया. बड़े-बड़े दावे किए गए. कहा गया कि देश का विकास अब द्रुत गति से होगा. नतीजा वही, ढाक के तीन पात. जीएसटी आज व्यापार और व्यापारियों के लिए गले का फाँस बन गया है.पिछले एक डेढ़ वर्षों से दुनिया कोरोना महामारी के गिरफ्त में फंसी हुई है. जिस प्रकार हमारा देश की सरकार इस महामारी का मुकाबले के लिए फैसले ले रही है उसकी क़ीमत तो हम चुका ही रहे हैं,उससे दुनिया में भी हमारी भद्द पिट रही है. 

24 मार्च 2020 को चार घंटे की नोटिस पर प्रधानमंत्री जी ने 21 दिनों के लॉक डाउन की घोषणा कर दी. लेकिन उनको शायद अनुमान नहीं था कि हमारे देश की प्रगति और विकास पिछड़े क्षेत्रों के करोड़ों प्रवासी श्रमिकों के कंधों पर है. लॉकडाउन तो उनके लिए भूखमरी का संदेश बनकर आया. कमायेंगे नहीं तो खायेंगे क्या ! भुखों मरने की डर से अपने-अपने कंधों पर अपनी गृहस्थी लादे बाल बच्चों के साथ अपने अपने गांवों की ओर उस अमानवीय यात्रा पर निकले उन लाखों लाख प्रवासी श्रमिकों का दृश्य दुनिया ने देखा.कोरोना महामारी को लेकर दुनिया भर के जानकार बार-बार चेतावनी दे रहे थे  कि इसकी दूसरी लहर भी आएगी. दूसरी लहर पहले  लहर के मुकाबले ज्यादा मारक होगी. अमेरिका और यूरोप के विकसित देश जो कोरोना की पहली लहर की चपेट में बुरी तरह आ गए थे.

उन्होंने  दूसरी लहर से बचाव की व्यापक तैयारी अपने-अपने देशों में शुरू कर दी. वैज्ञानिक बार-बार कह रहे थे कि इस महामारी से बचाव का एकमात्र कारगर तरीका व्यापक टीकाकरण है. टीका पर शोध और उसकी खरीदारी की अग्रिम तैयारी इन देशों ने शुरू कर दिया. लेकिन हमारे देश में अहंकार में डूबे प्रधानमंत्री जी दावा करते रहे कि हमने कोरोना को परास्त कर दिया है. देश में ही नहीं यह दावा उन्होंने दावोस में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच भी किया. नतीजा हुआ कि जब कोरोना की दूसरी लहर आई तो उसकी कोई तैयारी हमारे देश में नहीं थी. इस बीच पांच पांच राज्यों में चुनाव हुआ. प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सहित देश के अन्य मंत्रियों और नेताओं ने चुनाव होने वाले राज्यों में बड़ी बड़ी रैलियां की. चुनाव के बाद कुंभ का स्नान हो गया. जिसमें एक करोड़ लोगों ने हरिद्वार में गंगा में डुबकी लगाई. उसके बाद उत्तर प्रदेश ने अपने यहाँ पंचायतों का चुनाव करवाया. नतीज हुआ कि लोग महामारी में पटापट मरने लगे. पहली दफा ऐसा देखा गया कि मृतकों को जलाने के लिए दस दस, पंद्रह पंद्रह घंटा की कतार लगी. शव जलाने के लिए जगह की कमी पड़ गई. लकड़िया नहीं मिल रही थी. लोगों ने नदियों में शव को प्रवाहित कर दिया

. दुनिया ने देखा, चील्ह,कौवे और कुत्ते हमारे मृतकों के शवों को नोच नोच कर खा रहे हैं. हम विश्व गुरु हैं का दावा करने वाले देश की हालत देख कर दुनिया हक्का बक्का है.अब स्पष्ट है कि टीकाकरण ही इस महामारी से मुकाबले सबसे विश्वस्त जरिया है. टीका के मामले में भी प्रधानमंत्री जी ने अपने अहंकार में देश को बुरी तरह फंसा दिया है. देश में टीका की कमी के चलते कई राज्यों में कई टीका केंद्र बंद हैं. एक टीका की तीनतीन कीमत है. टीका की उपलब्धता के विषय में लोगों से झूठ बोला जा रहा है.मोदी सरकार के सात वर्षों के शासन ने देश को गंभीर नुक़सान पहुँचाया है. ग़रीबों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. मध्यवर्ग की संख्या में भारी कमी आई है. दूसरी ओर अमीरों की अमीरी में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. मोदी जी के सात वर्षों के शासन में देश कमजोर हुआ है. लोगों की तकलीफ़ बढ़ी है. दुनिया की पंचायत में देश की प्रतिष्ठा काफ़ी घटी है.

शिवानन्द तिवारी, पूर्व सांसद 

Exit mobile version