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मरता बचपन : जरूरत है इंसान होने का परिचय देने की

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 डॉ. विकास मानव

   _जीवन वाणी-लेखनी का विशेषण नहीं, क्रिया का विज्ञान है। हर कहीं बड़ी-बड़ी, अच्छी-अच्छी बातें हो रही हैं। इंसानियत के, घर्म के, प्रेम-परोपकार के और भलाई के उपदेश दिए जा रहे हैं।_

हम अपने को नेक बता रहे हैं,और आचरण? हम जो लिखते-बकते हैं उसका रत्ती-भर भर भी अपने चरित्र में नहीं लाते। इस तरह किसे छल रहे हैं हम? सिर्फ़ खुद को। हमारे़ इसी पाखंड के कारण आधुनिक इंसान दो-पाया जंगली जानवर बनता जा रहा है और उसका समाज मशीनी जंगल।

      _अगर हमारे़ सामने कोई असहाय-मासूम इंसान मरता रहे और हम उसे अनदेखा कर के अपने में मस्त रहें तो क्या हम ईश्वर-विश्वासी हैं? क्या हम धार्मिक हैं? क्या हम इंसान कहलाने के हकदार हैं?_

      अपने लिए तो पशु-पंछी कीड़े-मकोड़े, सैतान-हैवान भी जी लेते हैं! हम भी ऐसे ही हैं तो उनसे किस अर्थ में अलग हैं?

साथियों!

_कथनी से परे कुछ करनी की  तरकीब निकाली जाए।_

_अब यह आज की बात बने कल पर न टाली जाए ।।_

_नए निर्माणों की तामीर जऱूरी है मगर !_

_पहले गिरती हुई दीवार संभाली जाए…!!_

शासकीय अनुदान बटोरने वाले N.G.O’s  से अलग, बतौर ट्रस्ट रजिस्टर्ड “ज्योति अकादमी” चेतना विकास मिशन समर्थित एक ऐसा निजी उपक्रम है, जिसके द्वारा उन मासूमों को बचपन+अध्ययन का अनुभव दिया जा रहा है :

  (१).जिन्हें देश का भविष्य नहीं माना जाता। 

  (२).जिन्हें अपना या अपने मृतवत अपनों का पेट पालने के लिये कूड़ा-कचरा टटोलना पड़ता है। 

  (३). जिन्हें बंधुआ मजदूर बनना पड़ता है।

  (४). जिन्हें पैसे वाले नर-पशुओं को अपना जिस्म सौंपकर उनकी हवस मिटानी पड़ती है। 

       _जो चंद रूपये देकर इन लाचारों से ये सब करवाते हैं, जो उनको भोगते हैं वो भी इंसान हैं। सभ्य इंसान हैं। हमारी तरह आम इनसान नहीं, बल्कि खास इंसान।_

      और हम? हम जो कर सकते हैं वो भी नहीं करते। तो क्या यही इंसानियत है? यही कहता है हमारा धर्म और मजहब? ऐसे ही हमसे खुश होंगे हमारे़ भगवान, अल्लाह, गॉड?

    आपकी रोटी का थोड़ा- सा हिस्सा ऐसे मासूमों को जिंदगी दे सकता है और आपको वास्तविक खुशी/तृप्ति की अनुभूति करा सकता है।

      _ज़रूरी नहीं की आप पैसे ही दें. स्टेशनरी, कपड़े, राशन देकर और असहाय बच्चों को हम तक पहुंचाकर भी आप आपने मनुष्य होने का परिचय दे सकते हैं._

—ज्योति अकादमी, A/C नं. 55037262092 स्टेट बैंक ऑफ इंडिया। [9997741245 : गूगल पे]

      _अनेकों मीरा, गौतम, नीराला, सूर हैं जिनमें !_

_अहर्निश बुझ रही है जिनके जीवन दीप की बाती !!_

_जिन्हें हर मौत मिलती है वसीयत में जनम से ही !_

_उठो उन दुधमुहें मासूम बच्चों के लिए साथी!!_

     {चेतना विकास मिशन}

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