अग्नि आलोक

ई-पुस्तकों तक पहुंच आसान, पर पढ़ने का सुकून मुद्रित पुस्तकों से

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(विश्व पुस्तक एवं प्रकाशनाधिकार दिवस विशेष – 23 अप्रैल 2024)

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

विश्व ज्ञान, आत्मीय शांति, योग्य मार्गदर्शन, समय का सदुपयोग, प्रेरणा, प्रोत्साहन, मददगार, समस्याओं का हल,नवचेतना, नवनिर्मिति, जागरूकता, अद्यतन, बेहतर साथी, सफलता, गुरु, सलाहकार जैसे अनेक मूल्यवान गुणों का सार होती हैपुस्तकें। आज के आधुनिक युग में यांत्रिक संसाधनों ने दुनिया भर तक हमारी पहुंच आसान कर दी है। हर ओर जानकारी औरसूचना की बाढ़ आ गई है। पुस्तकों को ज्ञान का मुख्य स्त्रोत कहा जाता है, जीवन में सफल होने के लिए किताबों का बेहतर साथआवश्यक होता है। पुस्तकें मनुष्य के जीवन के आरंभ से अंत तक निस्वार्थ साथ देते हुए पथ-प्रदर्शक की भूमिका में होते है।


किताबों से दोस्ती करने वाला इंसान हमेशा खुश और ज्ञानी बना रहता है, जिससे जीवन में मुश्किलें कम होती है। इंटरनेट केद्वारा पुस्तकें बस एक क्लिक पर मौजूद है, जब चाहे तब कहीं पर भी, कभी भी हम ई-पुस्तकें पढ़ सकते हैं, संग्रहीत कर सकते है।
हर साल 23 अप्रैल को पुस्तकों के महत्व को समझकरपाठ्य संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए “विश्व पुस्तक व
प्रकाशनाधिकार दिवस” दुनिया भर में मनाया जाता है।इस वर्ष 2024 की थीम “रीड योर वे” है, यह थीम पढ़ने
के प्रति प्रेम को बढ़ावा देने में चयन और आनंद के महत्वपर जोर देती है। जीवन में पुस्तकों का स्थान अतुलनीय है,एक अच्छी पुस्तक सौ दोस्तों के बराबर होती है। जिसने किताबों के महत्व को जान लिया है, वह
जीवन में कभी असफल नहीं हो सकता। पुस्तकों के सहयोग से हम जीवन में विश्व के हर क्षेत्र का
सर्वोत्तम स्थान प्राप्त कर सकते हैं।
किताबें पढ़ने की आदत मनुष्य के जीवन को लगातार विकसित करता हैं। मस्तिष्क तेज होकर
स्वयं विचार कर कुछ नया ज्ञान खोजने की शक्ति मिलती हैं। पढ़ते रहने से हम अधिक होशियार होते
जाते है। लिखने का कौशल, भाषा कौशल सुधरता है, फोकस और एकाग्रता बढ़ती है, हम जीवन में अंधेरे
से उजाले की ओर बढ़ते हैं, हम अपने समय का सही इस्तेमाल कर पाते हैं, नयी जानकारी और ज्ञान
मिलता है, पढ़ने से तनाव कम होता है, हमेशा हम अद्यावत और जागरूक बने रहते है और पढ़ने से
अच्छी नींद आती हैं। भूलने की बीमारी से काफी हद तक दूर रहते हैं।
डिजिटलीकरण के कारण हर कोई अपनी मांग और सुविधा अनुसार पुस्तकों को ऑनलाइन पढ़
सकता है, ऑनलाइन के द्वारा हम दुनिया से हर समय जुड़े रहते हैं। पाठकों की रुचि अनुसार,
दुनियाभर के विषयों की पुस्तकें उपलब्ध हैं। बहुत से प्रकाशक, कंपनी, शैक्षणिक संस्थान, पेशेवर,

ईबुक विक्रेता, सरकारी पोर्टल अपनी वेबसाइट पर डिजिटल स्वरूप में पुस्तक अपलोड करते हैं, ताकि
पाठकों तक ई-पुस्तकें पहुंच सकें। पढ़ने का समय बचाने के लिए ऑडियो बुक्स भी डिजिटल मार्केट में
उपलब्ध हैं।
ई-पुस्तकें बहुत आसानी से उपलब्ध हैं, लेकिन वे कागजी पुस्तकों का स्थान नहीं ले सकतें।
बहुत से लोग ऑनलाइन पुस्तकें तो डाउनलोड करते है, लेकिन उसे पूरा पढ़नेवाले बहुत कम होते हैं।
यह ई-पुस्तकें हमें पढ़ने के लिए कागजी पुस्तकों की तरह प्रेरित नहीं करती, बल्कि बहुत बार बोझिल
महसूस होती हैं। कागजी पुस्तकों की भांति ई-पुस्तकों से लगाव या प्रेरणा की कमी लगती हैं, इनसे
हम भावनिक रूप से जुड़ नहीं पाते। कागजी पुस्तकें पाठ्य संस्कृति को बढ़ावा देने में मुख्य सहायक है।
ई-पुस्तकों में हम अधिकतर सिर्फ सीमित सूचनाओं को पढ़कर फिर भूल जाते हैं, जबकि कागजी
पुस्तकों में पढ़ते वक्त विषय की गहराई में जाकर समस्या का हल ढूंढते हैं, पूरी किताब पढ़ते हैं,
जिससे पुस्तक का पूरा ज्ञान हमें हमेशा याद रहता हैं और यही पुस्तक का उद्देश्य होता है कि उसके
ज्ञान का पूरा फायदा पाठकों तक पहुचें। जबकि अधिकतर पाठकों द्वारा ई-पुस्तकों में केवल काम
निकालने लायक ही जानकारी खोजी जाती हैं। कागजी पुस्तकें पेड़ कटवाते हैं, लेकिन ई-पुस्तकें भी
बिजली खर्च करवाकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते है, तकनीकी खराबी भी एक समस्या है, और
ऊपर से मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटॉप का ई-कचरा पर्यावरण के लिए पहले से ही घातक स्तर पर पहुंच
चूका हैं।
जिसे पढ़ना आता हैं, चाहे वह निर्धन ही क्यों न हो, वह कही पर भी पुस्तकें पढ़ सकता है,
सार्वजनिक पुस्तकालयों में जा सकता हैं, वहां की पुस्तकें पढ़ सकता है। परन्तु ई-पुस्तकें पढ़ने के लिए
विशेष यांत्रिक संसाधन और कौशल की आवश्यकता होती है, जिसके लिए आर्थिक खर्च और कुछ
प्रशिक्षण की जरुरत होती हैं, जैसे :- कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल, बिजली और तकनिकी कौशल।
जबकि कागजी पुस्तकों में यह चीजें आवश्यक नहीं। कक्षाओं में विद्यार्थियों को कागजी पुस्तकों से
पढ़ाना आसान होता हैं जबकि ई-पुस्तक से पढ़ाने के लिए प्रोजेक्टर का खर्च वहन करना पढता हैं।
पुस्तकों का ज्ञान आत्मसात करने के लिए पढ़ते वक्त ध्यान और नजर पुस्तक पर एकाग्र करनी
होती हैं, परन्तु इलेक्ट्रॉनिक साधनों की स्क्रीन पर लगातार ध्यान केंद्रित करना कुछ समय पश्चात
तनाव, सिरदर्द, दृष्टिदोष का कारण हो सकता हैं, क्योंकि कंप्यूटर की स्क्रीन आँखों की रोशनी को
प्रभावित करती हैं। ई-पुस्तक की आसानी से उपलब्धता, समय की बचत, आसान संग्रहण होने के

बावजूद पुस्तक का मुख्य उद्देश्य पुस्तकों में मौजूद पूरा ज्ञान पाठकों द्वारा आत्मसात करना यह
कागजी पुस्तकों के मुकाबले ई-पुस्तक में पूर्णता नजर नहीं आता। संकटमय काल में या थोड़े समय के
लिए ऑनलाइन अध्ययन वरदान हैं, लेकिन दीर्घ काल में यह शारीरिक और मानसिक समस्या
निर्माण कर सकता हैं। यांत्रिक साधनों के लगातार बढ़ते उपयोग से हम उन संसाधनों पर आश्रित होने
लगे हैं, अब तो हमें अपनों के मोबाइल नंबर तक याद नहीं रहते। इससे हमारी सोचने-समझने की शक्ति-
याददाश्त कमजोर हो रही है, यह आधुनिकता का बहुत बड़ा दोष है। आज तक किसी भी शोध या
सर्वेक्षण में मुद्रित किताबें पढ़ने से होने वाली कोई समस्या या नुकसान सामने नहीं आया है, लेकिन
कोरोना के समय में ऑनलाइन अध्ययन द्वारा कई शारीरिक और मनोवैज्ञानिक समस्याएं सामने आई
हैं।
ई-पुस्तकें और मुद्रित पुस्तकों के बीच चयन आखिर हमारा व्यक्तिगत निर्णय है। लेकिन जब हम
वैश्विक तौर पर पाठकों की पसंद देखते हैं तब पता चलता है कि, मुद्रित पुस्तकें दुनिया भर के शौकीन
पाठकों के दिलों में एक बहुत ही विशेष स्थान रखती हैं। जबकि ई-पुस्तकों का अलग लाभ हैं, अब पाठकों
को इन दोनों के संभावित खूबियों/कमियों के प्रति जागरूक रहकर अपनी मांग अनुसार, एक संतुलन
बनाना चाहिए जो उनकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं और पढ़ने की प्राथमिकताओं के लिए
सबसे उत्तम हो।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम
भ्रमणध्वनी व व्हाट्सअप क्रमांक- 082374 17041

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