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कांग्रेस और बीजेपी के वादों का अर्थशास्त्र,महंगा पड़ेगा चुनावी गारंटियों का लॉलीपॉप

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उमेश चतुर्वेदी

कुछ साल पहले तक मुंबइया सिनेमा का प्रमुख आधार फॉर्म्युला होता था। किसी खास फॉर्म्युले पर फिल्म हिट हुई नहीं कि हर छोटा-बड़ा निर्माता उसी फॉर्म्युले को दोहराने लगता था। राजनीति भी कुछ उसी अंदाज में चलती है। किसी पार्टी विशेष का कोई फॉर्म्युला अगर एक बार सत्ता की सीढ़ी बन गया तो पार्टी चुनावी अभियान में उसे बार-बार लागू करने लगती है। गारंटी स्कीम कांग्रेस का ऐसा ही फॉर्म्युला है, जिसकी बुनियाद पर पार्टी ने कर्नाटक में जीत हासिल की। जीत की वजह बने इस फॉर्म्युले को अब पार्टी दूसरे राज्यों में भी आजमा रही है। चाहे छत्तीसगढ़ की आठ गारंटी हों या राजस्थान की सात गारंटी या फिर मध्य प्रदेश के ग्यारह वचन, सब कर्नाटक फॉर्म्युले का ही विस्तार हैं।

वादों का अर्थशास्त्र

कांग्रेस इन राज्यों की जनता से जो वादे कर रही हैं, उन पर मोटी रकम खर्च होने वाली है। सवाल यह है कि इन गारंटियों को पूरा करने के लिए कांग्रेस की सरकारें धन कहां से लाएंगी।

दरअसल, गारंटियों पर राज्यों के भारी-भरकम खर्च बढ़ने के बाद उनका आर्थिक ढांचा गड़बड़ा रहा है। इस पर आंकड़ों की रोशनी में ठीक से गौर करने की जरूरत है।

अब जरा उन राज्यों पर भी नजर डालते हैं, जहां विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं और कांग्रेस गारंटियों की बरसात कर रही है।

यह तो हुई सिर्फ एक साल की बात। इन राज्यों पर मार्च, 2023 तक के कुल कर्ज भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

कांग्रेस द्वारा दी जा रही गारंटियों पर कुल कितना खर्च आएगा, इसका अभी अर्थशास्त्रियों ने समेकित अनुमान नहीं लगाया है। लेकिन यह तय है कि यह रकम लाखों करोड़ रुपये होगी। इन गारंटियों पर खर्च होने वाली रकम कहां से आएगी? इसका कोई रोड मैप कांग्रेस के पास नहीं है। अगर होता तो कर्नाटक या हिमाचल की सरकारों की ओर से दिख गया होता। कुछ ऐसी ही गारंटी पंजाब में आम आदमी पार्टी ने भी दी। सचाई यह है कि जिन राज्यों में भी गारंटियां दी गईं और गारंटी देने वाली पार्टी की सरकार आई, उनकी आर्थिक स्थिति डांवाडोल है।

गारंटी का असर यह हो रहा है कि राज्यों में नियमित विकास कार्य रुक रहे हैं। उदाहरण के लिए, कर्नाटक में पानी की कमी है, लेकिन पानी से जुड़ी योजनाओं के लिए सरकार के पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं। गारंटी से फायदा उठा रही जनता को इससे ज्यादा लेना-देना नहीं रहता। जब बदहाली होती है तो राज्य सरकारें केंद्र को जिम्मेदार ठहराने लगती हैं। जैसे कर्नाटक सरकार भी जल समस्या के लिए केंद्र को ठहरा रही है। पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार भी ऐसा ही करती रही है।

वैसे, गारंटी तो केंद्र और BJP की सरकारें भी दे रही हैं। केंद्र सरकार 84 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दे रही है। मध्य प्रदेश की सरकार लाड़ली बहना योजना के तहत हजार रुपये महीना महिलाओं को दे ही रही है। लेकिन BJP कह सकती है कि उसे अपनी राजनीतिक अस्मिता के लिए कांग्रेस की गारंटी योजना का जवाब देना ही पड़ेगा।

पॉप्युलर पॉलिटिक्स

बहरहाल, प्रियंका गांधी हों या राहुल गांधी, उन्हें भरोसा है कि उनकी गारंटी योजना उनकी सत्ता के सूखे को खत्म करेगी। वैसे भी कांग्रेस इन दिनों वाम मार्गी सोच के साथ आगे बढ़ रही है। उस सोच में राजकोष पर पड़ रहे दबाव के बजाय जनता को राहत और उसका पॉप्युलर समर्थन ज्यादा मायने रखता है। राहुल गांधी का जाति जनगणना की मांग करना भी इसी पॉप्युलर पॉलिटिक्स का विस्तार है। कांग्रेस गारंटी और जाति के सहारे देश की राजनीति को अपने कब्जे में लेने की कोशिश में है। देखना यह है कि BJP देश की सबसे पुरानी पार्टी के नव वाम चिंतन का कितना और कैसा जवाब दे पाती है।

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