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स्वावलम्बन छीनकर नौकर, गुलाम, अपंग, शोषक व अपराधी बनाने वाली शिक्षा 

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             कुमार चैतन्य 

आज से 500 साल पहले पढने की जरुरत क्या थी? पढ़कर क्या तुम हल चलाना सीखते हो?औजार बनाना सीखते हो?गाय चराना सीखते हो?बाल काटना सीखते हो?शिल्पकारी सीखते हो?कपडा बनाना सीखते हो?मौसम का अनुमान लगाना सीखते हो? 

   पढ़कर क्या तुम बीज बोना सीखते हो?निराई-गुड़ाई सीखते हो?फसल काटना सीखते हो?गोबर का खाद बनाना सीखते हो?दूध दुहना सीखते हो?मक्खन निकालना सीखते हो?घी निकालना सीखते हो?सब्जी उगाना सीखते हो?चमडे निकालना सीखते हो?धातु निकालना सीखते हो?

   पढ़कर क्या तुम घर बनाना सीखते हो? झोपड़ी छाना सीखते हो? लकड़ी काटना सीखते हो? तलवार चलाना सीखते हो? घुड़सवारी करना सीखते हो? पहलवानी करना सीखते हो? लट्ठ चलाना सीखते हो? शहद निकालना सीखते हो?

    पढ़कर क्या तुम शिकार करना सीखते हो? जाल लगाना सीखते हो?गहना बनाना सीखते हो? सिलाई सीखते हो? रंग अबीर बनाना सीखते हो? मसाला बनाना सीखते हो? खाना बनाना सीखते हो? चित्र बनाना सीखते हो? मूर्ती बनाना सीखते हो?रथ-बग्गी चलाना सीखते हो?

     पढ़कर क्या तुम तालाब बनाना सीखते हो? बच्चे को पालना सीखते हो?सन्गीत गाना सीखते हो?मिठाई बनाना सीखते हो?तेल निकालना सीखते हो?मिट्टी के बर्तन बनाना सीखते हो? प्रेम और संभोग करना सीखते हो?

    यदि तुम पढ़ लिखकर यह सब नहीं सीख सकते थे तो 1000-500 साल पहले तुम को पढने की जरुरत क्या थी? आखिर गांव मे रहने वाले लोग क्युं पढते? क्युं अपना कीमती समय पढ़ने और अक्षरज्ञान मे जाया करते?

क्या आज से 1000-500 साल पहले अक्षरज्ञान हासिल करना कोई तर्कसंगत बात थी?

आज से 1000-500 साल पहले पढने लिखने वाला केवल 2-4 काम ही कर सकता था। वह किसी राजा का दरबारी बन सकता था। वह किसी जमीन्दार के यहां मुनीम बन सकता था। यह दोनो काम नही कर पाया तो उसके पास एक ही काम बचता था और वह था दीक्षा देकर भीक्षा मांगना।

    यह सब धन्धा पूर्ण ग्रामीण व्यवस्था मे सम्भव ही नही था। यह सब नगरीय शासकिय व्यवस्था के काम थे।

    तुमने इसलिये नहीं पढा क्युकिं तुम्हे न तो दरबारी बनना पसंद था, न मुनीम बनना पसंद था और भीक्षा मांगने मे स्वाभिमान आड़े आ रहा था। जितने गणित के ज्ञान की आवश्यकता थी वह घर मे ही मिल जाता था।

     दरअसल तुमको अक्षरज्ञान और पढाई की जरुरत ही नहीं थी। इसलिये ग्रामीण व्यवस्था मे सबसे फालतू का काम यानी पढाई करने की फालतू की जहमत तुमने की ही नही।

     जैसे जैसे अंग्रेजों का शासन बढ़ता गया, वैसे वैसे पुरे देश मे केन्द्रीयकृत नगरीय शासकिय व्यवस्था का वर्चस्व फैलता गया। भारत की आत्मा गांव से शहर की ओर भागने लगी। शहर की सत्ता गांव में भी जड़ जमाने लगी।

सुविधाएं बढ़ने से लोग भी शहर में भागने लगे। फलस्वरूप इस नये व्यवस्था मे पढे लिखे लोगों का महत्व बढ़ता चला गया।

     जब तक गांव मे रहने वाली किसान और कामगार जातियां यह बात समझकर खूद पढना लिखना शुरु करतीं तब तक दरबारी, मुनीम और भीक्षा मांगने वाले जातियों ने नये व्यवस्था मे अपना सिक्का जमा लिया।

अब जब उन्होनें तुम्हारे मूर्खता के कारण एकछत्र सिक्का ज़मा लिया तो तब तुमको समझ आया की अरे! यह तो पूरी व्यवस्था ही बदल गयी सत्ता शहर से गांव चली गयी। 

      इस शिक्षा ने तुम्हारा स्वावलम्बन छीन लिया. तुम को नौकर, गुलाम, अपंग बना दिया और शोषक व अपराधी भी.

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