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तकनीकी के जन जीवन पर प्रभाव व दुष्प्रभाव

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भरत गहलोत

भारत मे तकनीकी के कई प्रभाव है जो स्वाभाविक भी है किर्या की प्रतिकिया अवश्य होती है,
कहा भी गया है अति सर्वदा वर्जते,
अति किसी भी चीज की हो कही पर भी हो,
किसी भी वस्तु , व्यक्ति ,स्थान व अन्य चीज की हो अति खराब ही है,
जैसे पहले तकनीकी का इतना विकास नही हुआ था जैसे टेलीफोन, मोबाइल, कम्प्यूटर आदि नही थे,
उस समय चिट्ठी पत्री से संवाद व्यवहार किया जाता था,
उस समय आज के समय की तरह मोबाइल (दूरभाष) का अविष्कार नही हुआ था लोगो मे अपनत्व व प्रेम की भावना थी ,
चिट्टी के लिए लंबा इंतजार किया जाता था ,
किसी शायर का एक बहुत ही अच्छा शेर है ,
लंबा अरसा बीत गया डाकिए हमको दिखे नही ,
दूरभाष पर बतियाते है चिट्टी कौन लिखे,
इसके कारण आज डाकघर पर चिट्टियो का काम कम हो गया है ,
मोबाइल ने डाकघर से चिट्टियो को लगभग विलुप्त ही कर दिया है ,
पहले सब कार्य हाथ से होते थे तब मानवीय श्रम की जरूरत पड़ती थी,
जैसे गणना करना व अन्य कार्य लेखन आदि का कम्प्यूटर के आने से समय की बचत के साथ -साथ बेरोजगारी बढ़ी है,
पहले चिट्टियो के आने का इंतजार होता था , कोई रूठ जाता था तो उसे खत लिखकर भेजा जाता था और वो मान भी जाता था,
अब मोबाइल के दौर में कुंजीपटल पर उंगलियां दौड़ने लगी है ,
रिश्ते नगण्य हो गए है ,
जरा सी बात पर एक सन्देश में रिश्ते में कड़वाहट आ रही है रिश्ते टूट रहे है ,
पहले ऐसा नही था इसलिए तकनीकी के बहुत से फायदे है तो बहुत से नुकसान भी हुए है,

 भरत गहलोत

जालोर राजस्थान

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