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इलेक्टोरल बॉण्ड घोटाला : पूँजीपतियों से यारी, आमजन से गद्दारी

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      पुष्पा गुप्ता 

    जो जिसकी खाता है, वो उसके ही गुण गाता है! यह कथन भाजपा और देश के कॉरपोरेट घरानों के लिए बिल्कुल सही साबित होता है। पिछले दिनों हुए खुलासे में भाजपा का काला चिट्ठा सामने आया, जिसमें यह बात सामने आयी कि इलेक्टोरल बॉण्ड के ज़रिये पिछले पाँच सालों में भारत के बड़े कॉरपोरेट घरानों ने भाजपा को हज़ारों करोड़ रुपयों का चन्दा दिया है। इस बॉण्ड के तहत अन्य पार्टियों को भी चन्दा दिया गया, लेकिन उसमें से भाजपा को सबसे अधिक पैसे मिले।

     भाजपा को कुल इलेक्टोरल बॉण्ड से आने वाले फ़ण्ड का लगभग 55 फ़ीसदी मिला। कांग्रेस को लगभग 13, तृणमूल कांग्रेस को लगभग 11, भारत राष्ट्र समिति को लगभग 10, बीजू जनता दल को लगभग 6, द्रमुक को 5, वाईएसआर कांग्रेस को लगभग 3 और तेलगुदुेशम को लगभग 2 प्रतिशत मिला है।

    कुल 11,450 करोड़ रुपये के चुनावी बॉण्ड में से 6,566 करोड़ भाजपा को, 1123 करोड़ रुपये कांग्रेस को, 1093 करोड़ तृणमूल कांग्रेस को, 774 करोड़ बीजू जनता दल को मिले। 

     इलेक्टोरल बॉण्ड के तहत जिन कम्पनियों ने भाजपा को चन्दा दिया, उनमें डीएलएफ़, मेघा इंजीनियरिंग, मित्तल ग्रुप, वेदान्ता जैसी कम्पनियाँ शामिल हैं। ग़ौरतलब है कि ख़ुद को गौभक्त बताने वाली और बीफ़ के नाम पर मॉब लिंचिंग कराने वाली भाजपा ने बीफ़ की कम्पनियों से भी चन्दा लेने में कोई संकोच नहीं किया है। साथ ही इस दौरान भाजपा को उन कॉरपोरेट घरानों से भी बेशुमार पैसा मिला है, जिन पर ईडी, इनकम टैक्स और सीबीआई निगाहें गड़ाये बैठा था। डीएलएफ, डिविज़ लैब, यूनाइटेड फॉस्फोरस जैसी 25 से भी ज़्यादा कम्पनियों ने इलेक्टोरल बॉण्ड ख़रीदे। इसके अलावा वण्डर सीमेण्ट, ब्राइट स्टार इन्वेसमेण्ट और मित्तल ग्रुप जैसी भी कम्पनियों ने भी भाजपा को करोड़ों में चन्दा दिया, जिसके बाद सरकार ने अपनी वफ़ादारी निभाते हुए इन कम्पनियों को बड़े-बड़े टेण्डर दिये।

      साथ ही काले धन को भी इसके ज़रिये सफ़ेद में तब्दील किया गया। कई कम्पनियाँ जिनका मुनाफ़ा बेहद कम था पर उन्होंने भाजपा को कई सौ करोड़ का चन्दा दिया है।

    सत्ता में आने के बाद से ही मोदी सरकार ने पूँजीपरस्त नीतियों को लागू करने में कोई कोताही नहीं की। रेलवे, एलआईसी, बीएसएनएल समेत तमाम सरकारी संस्थानों को इस फ़ासीवादी सरकार ने औने-पौने दामों में पूँजीपति घरानों को बेच दिया। बड़ी बड़ी कम्पनियों को एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) घोषित कर उनके करोड़ों के कर माफ़ कर दिये। साथ ही अपने आका अडानी-अम्बानी जैसे पूँजीपतियों के लिए खानों-खदानों तक को तबाह कर डाला। 

    इतना ही नहीं अवाम और मज़दूर विरोधी इस सरकार ने मज़दूरों के हक़ों को कुचलने के लिए श्रम क़ानूनों को ख़त्म कर चार लेबर कोड लाने पर अपना पूरा ज़ोर लगा दिया। तमाम सरकारी विभागों को निजी हाथों में बेचकर नौजवानों के लिए पक्की नौकरी के अवसर समाप्त कर दिये। 

      मोदी सरकार की इन नीतियों का नतीजा यह हुआ कि एक तरफ़ अडानी दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में शामिल हो गया, वहीं दूसरी ओर विश्व भूख सूचकांक में 125 देशों की सूची में 111वें पायदान पर पहुँच गया। पिछले दस सालों में अवाम की झोली में केवल महँगाई, बेरोज़गारी, अशिक्षा और भ्रष्टाचार ही आये हैं। लेकिन जनता इसपर सवाल न करे इसलिए यह सरकार हमारे बीच मज़हब की दीवारें खड़ी करती है।

     बीफ़ कम्पनियों से चन्दा लेने के बावजूद क्यों आज आरएसएस और इसकी गुण्डा वाहिनियाँ मोदी और अमित शाह के सामने लाठियाँ लेकर नहीं पहुँच रही हैं? यह इसलिए क्योंकि भाजपा, आरएसएस और इनके गुण्डा संगठन की राजनीति असल में देशभक्ति और गोरक्षा की आड़ में बड़ी पूँजी की सेवा करना है। 

     गाय और फ़र्जी राष्ट्रवाद का मुद्दा असल में जनता को बाँटने की साज़िश है। इलेक्टोरल बॉण्ड का खुलासा भाजपा की इस सच्चाई को बेपर्दा करता है।

   देश के मेहनतकशों को यह स्पष्ट रूप से समझ लेने की ज़रूरत है कि भाजपा किसी भी सूरत में रत्तीभर भी मज़दूरों के हित में काम नहीं कर सकती। उल्टा यह हमें बाँटने के लिए तमाम हथकण्डे अपनाती है। जाति, धर्म और राष्ट्र का मुद्दा केवल मज़दूर वर्ग को बाँटने के लिए है। 

    जब भी पूँजीपति वर्ग की बात आती है, तो भाजपा आँखें बन्द कर अपने इन आकाओं को जी-हुज़ूरी करती है।

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