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 घोटाला तो जरूर है चुनावी बांड

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इस आजाद देश के इतिहास में सरकार पर घोटालों और भ्रष्टाचार के विरुद्ध बड़े बड़े आंदोलन हुए बोफोर्स से लेकर 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन तक कई ,भले ही आंदोलन के बाद सरकारें चली गई हो मगर बाद में आरोप साबित नहीं हो पाए।**लेकिन इस चुनावी बांड पर सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश तहत मांगी गई जानकारी को सरकार उसकी संस्था का बिका हुआ प्रबंधन जिस प्रकार से सरे आम झूठ बोल कर जानकारियों इस चुनाव से पहले छुपाने का प्रयास कर रहा है। वह इस आरोप की पुष्टि ही करता है* *कि घोटाला तो जरूर है* *और सत्तारूढ़ दल द्वारा अभी तक का देश का सबसे बड़ा।*

विजय दलाल

*चूंकि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और उसका प्रबंधन इस प्रकरण में शामिल है और खासतौर से कर्मचारियों के वेतन व सेवशर्तो के साथ  सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों के प्रबंधन व नीतियों में दखल बैंकों के राष्ट्रीयकरण से लेकर बैंकों को सार्वजनिक क्षेत्र में बचाने में प्रमुख यूनियन संगठन एआईबीईए की अहम भूमिका भी रही है।*

*उदाहरणों के तौर पर एआईबीईए के शीर्ष नेताओं में कामरेड डी.पी.चढ्ढा द्वारा पंजाब नेशनल बैंक में 1987 में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन।* 

*कामरेड ताराकेश्वर चक्रवर्ती द्वारा बड़े कार्पोरेट्स विलफुल डिफाल्टर के नाम सार्वजनिक करना उनके विरुद्ध कार्रवाइयां करना इत्यादि सैकड़ों छोटे बड़े प्रकरणों पर।*

*काम.प्रभातकार के समय बैंकों में राजनीतिक हस्तक्षेप के विरुद्ध।*

*लेकिन आज गंगा – जमुना में पानी बहुत बह चुका है। आज एआईबीईए के सदस्यों का बहुत बड़ा तबका भी मोदी सरकार की चालाकियों से बहुत भ्रमित है और उसके समर्थन में खड़ा है।*

*मोदी सरकार हर आपदा को अवसर बनाने में माहिर है इसलिए इस बार उसने द्विपक्षीय वेतन समझौते का समय उसी रणनीति के तहत चुना है।*

*लेकिन मुझ जैसे लाखों न हो तो भी हजारों में संगठन के प्रतिबद्ध (वैचारिक)लोगों को पुरा विश्वास है कि हमेशा की तरह जनहितों को*प्राथमिकता देकर संघर्ष करने वाला संगठन इस बार भी एसबीआई प्रबंधन के जनविरोधी कदम के विरुद्ध आगे आएगा और देश की असल परवाह करने वालों की जमात का नेतृत्व*करेगा। यह सवाल केवल राजनीतिक सवाल ही नहीं है*

*इससे बढ़कर देशहित और जनहित का महत्वपूर्ण सवाल है।*

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