सुसंस्कृति परिहार
हिंदुओं मुसलमानों के बीच जो कटुता का इतिहास संघ की शाखाओं से फैलाया गया अंधभक्त उसी में मगन हैं। अफसोसनाक तो यह कि मुगलकाल जो साम्प्रदायिक सद्भाव के काल के विख्यात है जिसमें अकबर महान का ज़िक्र हम सब की जुबां पर रहता है जिस काल में तुलसी,मीरा,सूर जैसे अनेक भक्त मनीषी कवि हुए।उससे नफ़रत का कारण सिर्फ संघ और भाजपा की निम्न स्तरीय सोच है वरना पाठ्यक्रम से उन्हें अलहदा नहीं किया जाता आश्चर्य नहीं होता क्योंकि वे गांधी के हत्यारे का प्रशस्तिगान कर सकते हैं तो राम की शक्ति की पूजा के कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ,कबीर और मिर्ज़ा ग़ालिब को भी हटाना कोई बड़ी बात नहीं।बड़ी बात तो यह कि जो नया इतिहास रचने में वे लगे हैं उसकी बानगी गुजरात की परीक्षा में पूछे इस सवाल में साफ देख सकते हैं –महात्मा गांधी ने आत्महत्या क्यों की ? जबकि सार्वजनिक तौर पर प्रार्थना सभा में जाते हुए बापू पर नाथूराम गोडसे ने गोलियां दागीं थी।जो सरकार हत्या को आत्महत्या पढ़ा रही हो। उसके लिए मुगलकाल हटा देना सहज काम है।
यहां यह भी समझने की ज़रूरत है कि महमूद गजनवी, मोहम्मद गोरी और बाबर सच्चे इस्लाम के प्रतिनिधि नहीं थे ।गजनवी तुर्क हूण और ईरानी मां के पुत्र ने।गोरी पठान था। जबकि बाबर का ताल्लुक मंगोल जाति से था ।उसकी मां चंगेज खां के खानदान से थी चंगेज खां बौद्ध था।खां मंगोलिया में सम्मान जनक उपाधि थी। वहीं बाबर तैमूरलंग के खानदान है। हालांकि बाबर से ही मुगलकाल आरंभ माना जाता है।उससे पहले गजनवी गोरी वंश के लोग लूटपाट और मारधाड़ में यकीन करते थे। उन्होंने मालबा में राज भी कायम कर लिया था और कई बार सोमनाथ मंदिर को लूटा था।
संस्कृति के चार अध्याय में रामधारी सिंह दिनकर साफ तौर पर लिखते हैं कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कटुता का दौर पठानों के समय तक रहा। मुगलों के आगमन के बाद परिस्थिति में सुधार आने लगा मुगल सम्राट अकबर ने जिस उदारता का परिचय दिया उसके बीज बाबर के ही ह्रदय में मौजूद थे बाबर ने हुमायूं के लिए एक वसीयतनामा लिखा था जिसमें हुमायूं को उसने वह उपदेश दिए थे- “हिंदुस्तान में अनेक धर्मों के लोग रहते हैं भगवान को धन्यवाद दो कि उन्होंने तुम्हें इस देश का बादशाह बनाया है तुम तअस्सुब से काम ना लेना निष्पक्ष होकर न्याय करना और सभी धर्मों की भावना का ख्याल रखना। गाय को हिंदू पवित्र मानते हैं अतएव जहां तक हो सके गौवध नहीं करवाना और किसी भी संप्रदाय के पूजा के स्थान को नष्ट नहीं करना।”इसी कड़ी में अकबर के दीन इलाही जैसे ने धर्म को देखने की ज़रूरत है
साहित्य और कला की सेवा में मुगलों ने सांप्रदायिकता नहीं आने दी मनोहर मिश्र, जगतराम ,बीरबल हुलराय टोडरमल, भगवानदास ,मानसिंह ,नरहरी और गंग को अकबर ने काफी सम्मान दिया था हिंदू चित्रकारों में भी मुकुंद ,महेश ,जगन हरिवंश और राम का मुगलों के यहां बड़ा सम्मान था जैसे पठान युग में खुसरो, कबीर जायसी आदि मुस्लिम कवियों ने हिंदी साहित्य की रचना की थी वैसे ही मुगल काल में रसखान आलम जमाल, कादेर मुबारक राही और ताज ने हिंदी की बहुत अच्छी सेवा की दारा शिकोह तो हिंदी संस्कृत और हिंदुत्व के पक्षपाती होने के कारण मुसलमानों में काफी बदनाम थे कहते हैं उनकी अंगूठी पर नागरी अक्षरों में ‘प्रभु’ शब्द अंकित रहता था शेरशाह के सिक्कों पर भी नागरिक फारसी अक्षरों में उनका नाम खुदा था उसके कई सिक्के ऊं और स्वस्तिक वाले भी पाए जाते हैं शेरशाह का न्याय भी अटल था एक साधारण स्त्री की फरियाद पर उसने अपने बेटे को कड़ा दंड दिया था। कवि सुंदरदास को शाहजहां ने महाकविराज की उपाधि दी थी।
महाकवि सूरदास में भी मुसलमानों के प्रति निंदा आक्रोश के भाव नहीं है विद्यापति और सूरदास ने अपने लिए जो विषय चुना था वह ऐसा था भी नहीं जिसमें समकालीन सामाजिक व्यवस्था की झांकी
झांकी हो। हां मुस्लिम काल में लोग समाहार के समर्थक कवि गोस्वामी तुलसीदास हुए जो अपने समय से लेकर आज तक जनता के हृदय पर एकछत्र राज्य करते आ रहे हैं तुलसीदास केवल कवि ही नहीं है उनका स्थान हिंदू संस्कृति के रक्षक कर्ता के रुप है नैतिक विषयों पर धर्म शास्त्रों को कहां क्या कहना है यह जानने की चिंता उत्तर भारत में अधिक नहीं है वहां की जनता प्रत्येक विषय पर केवल तुलसीदास की राम को जानना चाहती है। खास बात ये तुलसीदास के साहित्य में इस बात का कहीं उल्लेख नहीं है मुगलों से जनता पीड़ित थी। तुलसी का काल अकबर और जहांगीर के राज्यकाल में पड़ता है जब हिंदू मुस्लिम एक समस्या का ताप काफी दूर तक सीमित हो चुका था जब लोग यह भूल चुके थे कि मुसलमान विदेशी हैं और जब हिंदू और मुसलमान पड़ोसी बनकर शांति के भाव से जीने लगे थे।
तुलसीदास का सम्मान दोनों ही धर्मों के लोग करते थे खानखाना रहीम और तुलसीदास की गहरी दोस्ती थी यह बात साहित्य के इतिहास में अनेक बार कहीं गई है जब तुलसीदास ने रामचरितमानस लिखा रहीम ने कुछ दोहे रचकर उस काव्य की प्रशंसा को स्वीकार किया और कहा कि यह काम हिंदुओं के लिए वेद और मुसलमानों के लिए कुरान है। यह भी जान लेना जरूरी है कि औरंगज़ेब की पुत्री जेबुन्निसा बेगम हिंदी की कवयित्री थी।उनके काव्य संग्रह का नाम नैन विलास ही। अंबिका प्रसाद बाजपेयी का एक दोहा इसकी पुष्टि करता है -जैबुन्नसा जहान में,दुख्तर आलमगीर।
नैन विलास बिलास में, खास करी तकरीर।।
इस दौर में ताज तो अत्यंत भावुक कवयित्री हुईं ।वे इतनी भावुक थी कि कृष्ण प्रेम मीरा की तरह दीवानी हुईं हैं कि यह भी बोल जाती हैं कि मैं इस्लाम छोड़ हिंदू हो जाने तैयार हूं।
जो हिंदू नारियां मुगलों के घर ब्याही गई वे राज महल में हिंदू विधि से ही रहती थी ऐसा कहा जाता है रानी जोधाबाई के आंगन में तुलसी के पौधे बराबर लहराते थे उनके घर में होम और यज्ञ भी बराबर होते थे। अकबर और जोधा बाई के महलों के बीच के रास्ते पर हरम की और कोई रानी नहीं चल सकती थी ।लेकिन यह सम्मान भगवान दास की बेटी को नहीं मिला जिसका व्याह जहांगीर से हुआ था क्यों उसके पूरे हृदय पर एकमात्र नूरजहां का राज्य था। भगवान दास की बेटी पर उसने सितम नहीं किया बराबर सम्मान दिया था।
रहा सवाल युद्ध का तो तमाम राजे महाराजों की तरह मुसलमान शासक भी अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ाने में लगे रहे।वरना मुस्लिम फौजों की कमान हिंदी और हिंदू फौज की कमान मुस्लिम के साथ में कैसे होती? महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए युद्ध में महाराणा का सेनापति हकीम खां सूरी था तथा अकबर का सेनापति मानसिंह था। शिवाजी की सेना में हज़ारों मुसलमान थे पठानों को सेना में बड़े अधिकारी पद पर रखा था जबकि औरंगजेब की सेना का सेनापति महाराजा जय सिंह था।सबसे बड़ी बात अकबर महान और आलमगीर औरंगजेब एक बड़े देश के लिए लड़ रहे थे तो राजा महाराजा सिर्फ अपनी क्षेत्र विशेष की सुरक्षा के लिए लड़े। एक बड़े देश के लिए सिर्फ सम्राटअशोक ने कोशिश की थी।
इसी तरह मुसलमान शासकों के हरम की बात अक्सर होती है इसमें अनेक बेगमें होती थी तो वहीं हाल तो हिंदू राजाओं का रहा। रानी और पटरानियों की ये गाथाएं इतिहास में मौजूद हैं।एक दस्तावेज़ के मुताबिक अकबर की 9 बेगमें थी जबकि औरंगजेब की चार थीं वहीं महाराणा की 11, पृथ्वीराज चौहान की 14 तथा हवाई राजा जयसिंह की 1400बीबियां थीं।आशय यह कि राजा हो या शहंशाह हरम में अधिक बीबियां रखना गौरव की बात थी।बीबियों के अलावा हज़ारों दासियां भी महलों और हरम में होती थीं।
कहा जाता है कि मुसलमान शासक अपने भाईयों से लड़ते थे बड़े क्रूर होते थे हत्यारे थे।हिंदुओं का इतिहास भी अपने भाई और परिवार पर की गई क्रूरताओं से भरा हुआ है। औरंगजेब के बारे में कहा जाता है कि उसने अपने बाप शाहजहां को कैद में डाला था तथा दो भाईयों को मारकर गद्दीनशीं हुआ था लेकिन सम्राट अशोक के बारे में तो कहा जाता है उसने अपने 99भाईयों को मौत के घाट उतारा था।इतनी अधिक हत्याएं उन्होंने करवाईं कि प्रायश्चित स्वरूप उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। अजातशत्रु ने अपने भाई बिम्बिसार को मारकर सत्ता हथियाई।उदय सिंह ने अपने पिता राणा कुंभा की हत्या कर गद्दी प्राप्त की। पृथ्वीराज चौहान ने अपने चाचा का सिर काटकर किले के द्वार पर टांग दिया था तथा अपने सगे भाई को देश निकाला दे दिया था तब जाके मेवाड़ पर राज किया। यह सब उस वक्त सत्ता में बने रहने की जिजीविषा को दर्शाता है हिंदू मुस्लिम में भेद भाव नहीं करता।
यहां एक बात और याद रखनी चाहिए कि मुगल अकेले विदेश से नहीं आए थे। पंडित और राजपूत भी विदेशी आक्रमणकारी थे।उनका रक्त सम्बन्ध आर्य शक और हूण से माना जाता है।भारत की मूल जाति तो जनजाति थी जो आक्रमणकारियों से लोहा लिए बगैर जंगलों और पहाड़ों पर जाकर शरण ले ली। इंडिया टुडे के मुताबिक महाराणा प्रताप ईरान के आदिवासी समाज से थे इसलिए मुगल आक्रमण के दौर में वे जंगल और पहाड़ी क्षेत्र में आनंद से रहे।
आज लोकतांत्रिक भारत में भी जो परिवारवाद नज़र आता है उसमें भी सत्ता में बने रहने की चाहत प्रमुख लेकिन उसका रास्ता आमचुनाव के ज़रिए खुलता है। सत्ता प्राप्ति हेतु आज भी उसी तरह के सम्मोहन में लोग उलझे हुए हैं। इसलिए कहा जाता है कि राजनीति में साम दाम दण्ड भेद की नीति मायने रखती है।
बहरहाल, इसीलिए आज औरंगजेब के कार्यकाल को हिंदू विरोधी बताया जाता है किंतु यह नहीं बताया जाता कि उसने कितने हिंदू मंदिरों को आर्थिक सहायता दी।संघ की पाठशाला से निकला ज्ञान सिर्फ मुस्लिम विरोधी है कम से कम इस बात को ही यदि हिंदुत्व वादी समझ लें कि लगभग 700साल शासन करने के बाद उन्होंने इस्लाम कबूलने या अल्लाहों अकबर कहने बाध्य नहीं किया।जैसा नज़ारा आज देखा जा रहा है जबरिया जय श्री राम कहलवाकर आप किसी के धर्म को क्षति नहीं पहुंचा सकते हैं।सोचिए जिस नज़र से संघ और भाजपाई मुसलमानों से नफ़रत कर रहे हैं वैसा यदि मुस्लिम शासकों ने किया होता तो क्या कोई भारत में हिंदू बच पाता।वे जानते थे कि उन्हें शासन करना है और वह जोर जबरदस्ती से नहीं किया जाता। मुगलकाल में लूटपाट नहीं हुई क्योंकि वे हिंदुस्तान को महान बनाने में लगे रहे।अल्लामा इकबाल तो इसीलिए यह कह पाए सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा।
कुल मिलाकर नफरत की भावना से लिया मुगलकाल को हटाने का फैसला संविधान विरोधी कृत्य है। इतिहास तो वही बताता है जिसमें अच्छा बुरा सभी समाविष्ट हो जिससे आगे का इतिहास अपने नए स्वरूप में आगे बढ़ता है।आज जिस तरीके से प्रतिरोधी ताकतों को दफ़न करने की कोशिश हो रही है वे एकजुट हो रही हैं। मुगलकाल हटाए जाने की घटना के बाद अब वे मुगलकालीन संस्कृति के अध्याय भी सामने आ रहे हैं जो अभी तक दबे हुए थे।चलो अच्छा हुआ मुगलकालीन समन्वयवादी सल्तनत से नई पीढ़ी का ज्ञानसंवर्धन तो हुआ। हिंदू-मुस्लिम करने वाले कुछ तो होश में आयेंगे।