सिद्धांत जयकुमार
हॉलीवुड का एक हीरो है ‘फ्लैश'(चमक)। जो इतना तेज है कि बंदूक की गोली से भी तेज कहीं पहुँच सकता है । वह क्षण भर में यहाँ तो क्षण भर में वहाँ रहता है, कभी किसी की जान बचा रहा होता है तो कभी किसी को सड़क पार करा रहा होता है । कहीं किसी अंधे की मदद कर रहा होता तो क्षण भर में कहीं किसी का पिज़्ज़ा पहुँचा रहा होता है । ठीक वैसे ही सपा कार्यकर्ताओं को सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी चाहिए । और नेता, कार्यकर्ता घर सोये, फेसबुक पर ज्ञान पेलें लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष जमीन पर दिखना चाहिए, ए.सी. से बाहर । आज सपा के कार्यकर्ता बीजेपी IT सेल की भाषा में अखिलेश के खिलाफ खूब ज्ञान पेल रहें । उन्हें चाहिए कि अखिलेश राष्ट्रपति उम्मीदवार यसवंत सिन्हा के साथ प्रेस कांफ्रेस भी करें, पल्लवी पटेल बीमार हैं उनके सिरहाने जाकर कपार भी दाबे, विजय लाल का एक्सीडेंट हुआ तो उनसे जाकर मिले भी, लालू जी का स्वास्थ्य खराब हैं तो तत्क्षण दिल्ली जाकर उनकी भी तिमारदारी करें उसके बाद ए.सी. से निकले और गाँव-गाँव जमीन पर उतरे, हर विधायक का घर-घर जाकर प्रचार करे, हर एमएलसी के लिए बीडीसी का पैर छूता फिरे, संसदीय चुनाव में गली-गली पर्चा बाँटे, बूथ अध्यक्ष से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक सबसे फोन पर सीधे जुड़े भी रहें । प्रदेश के हर छीनरो-बुजरों में अखिलेश मौजूद चाहिए नाली का झगड़ा हो, खड़ंजे का विवाद हो, थाने में पंचायत हो अखिलेश उसको लेकर सड़क पर आंदोलन करे; यह सपा कार्यकर्ताओं की मांग है । इन्हें अपने प्रत्याशी से लेकर सपा के हर लीडर में कमी दिखाई देती है । पार्टी ने प्रत्याशी भेजा उसमें असहमति, इसको क्यों टिकट दे दिए यह तो एकदम बेकार है वह सही रहता, उसको देना चाहिए था । इनको केवल ब्राह्मण प्यारा है ये समझ नहीं पा रहे ब्राह्मण इन्हें बर्बाद कर देगा । ये केवल ठाकुरों की सुनते हैं, सरकार हम बनाये चले ठाकुरों की। चमार को टिकट क्यों दिए, चमार इन्हें कभी वोट नहीं देगा, प्रदेश अध्यक्ष इनको और नहीं मिला जिसे बनाये यह अपना बूथ न जिता सके। इनके नवरत्न इनको ले डूबेंगे। ये ट्युटर पर क्या छोटी-छोटी बात डालते हैं राष्ट्रीय अध्यक्ष के गरिमा का तो ख्याल रखना चाहिए।
मतलब एकतरफ उनको गरिमा भी चाहिए दूसरी तरफ गली-गली चक्कर भी लगाएं । एक तरफ जीत भी चाहिए दूसरी तरफ मुसलमान, पंडित, ठाकुर, राजभर इनसे दूर भी रहें ।
एकतरफ हर बीमार को इलाज के लिए पैसा, स्टूडेंट को लैपटॉप, कार्यकर्ताओं की हेल्प तथा दूसरी तरफ पैसे वाले नवरत्नों से दूर भी रहें ।
आज सपाईयों की हाल यह है कि वे अखिलेश से घास भी छिलवा लें ।
इन्हें जीत भी चाहिए पर अपने घर का वोट वोटरलिस्ट में डलवा नहीं सकते, चुनाव के दिन अपने घर के वोटरों को लेजाकर बूथ कर वोट नहीं डलवा सकते।
चुनाव से पहले अपनी जुबान पर लगाम नहीं लगा सकते, चुनाव हुआ नहीं कि सबको धमकाना शुरू, देख लेंगे बनने दो सरकार, एक-एक का बदला लिया जायेगा । गाँव में किसी की हेल्प नहीं करेंगे, किसी के साथ खड़े नहीं होंगे लेकिन अखिलेश को जमीन पर उतारेंगे ।
सुनिए! कार्यकर्ताओं! यदि आपको पार्टी में विश्वास है तो आप भी उतने ही जरूरी हैं जितने राष्ट्रीय अध्यक्ष । सपा कोई कंपनी नहीं है वह एक पार्टी है, एक विचारधारा है उसके विचार उसकी नींव मजबूत करते हैं। आप पार्टी के लिए उतने ही जरूरी हैं जितने राष्ट्रीय अध्यक्ष। आप अपनी भूमिका स्पष्ट कीजिए अखिलेश खुद ब खुद सब जगह दिखेंगे । (हमने सदियों से देखा है राय सबसे अधिक वही देता है जो सबसे ज्यादा आलसी और निकम्मा होता है ) आपकी मेहनत पार्टी की मजबूती होती, आपही पार्टी को हिलाते-डूलाते हैं आप केवल फेसबुक पर ज्ञान देंगे और अध्यक्ष को सड़क पर बुलाएंगे तो कैसे होगा। आप गलत के लिए लड़िए, आप पार्टी के लिए जवाबदेह बनिए, गरीबों के साथ खड़ा होइए, दलितों को अत्याचार से बचाइए, व्यक्तिगत लाभ को दरकिनार कर सार्वजनिक लाभ के लिए समाज में खड़े होइए, आप लोगों के हर अच्छे-बुरे में अपने आसपास के लोगों से जुड़िए तब पार्टी मजबूत होगी। आपही राष्ट्रीय अध्यक्ष और पार्टी के हाथ पैर हैं, अध्यक्ष कंखजुरा नहीं जिसके सैकड़ों पैर होंगे, उसके हजारों लाखों पैर आप है।
और अंत में- राष्ट्रीय अध्यक्ष बेवकूफ नहीं है यह आप भी भली भांति जानते हैं और दुनिया भी। अखिलेश और पार्टी पर वही पीढ़ी आरोप लगा रही जो अपने पिता पर यह आरोप लगाती है कि “आपने हमारे लिए कुछ नहीं किया है ।”
और रही महंगाई, विद्यार्थी, अग्निवीर, किसान, मजदूर की लड़ाई के लिए संघर्ष करना तो वह दौर गया अब जनता अपने दुःख के लिए आपके पीछे खड़ा नहीं होना चाहती और यदि आप अपने विशेष कार्यकर्ताओं को लेकर संघर्ष करेंगे तो वह सार्वजनिक संघर्ष न रहकर पार्टी का संघर्ष घोषित कर दिया जायेगा। यह पिछले कुछ आंदोलनों में देख चुके होंगे।
आज अखिलेश के हारने का कारण संघर्ष नहीं पूंजीवादी चुनाव, मीडिया की दोगलई, अधिकारीयों की अनदेखी, सरकार की ज़्यादाती दोषी है, और यह सभी फिलहाल उनके खेमें में है। समय बदल गया है हल जोतने से अच्छी फ़सल नहीं होगी, समय की नजाकत और खाद डालने से होगी जो पैसे से मिलती है।
सिद्धांत जयकुमार