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पर्यावरण:तमतमाया सूरज ,बढ़ता पारा भी ज़रुरी!

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-सुसंस्कृति परिहार 

तमतमाए सूरज और रोजबारोज़ बढ़ते पारे से डरना कैसा ?यह तो प्राकृतिक नियम है जो जितना तपेगा उतना निखरेगा। यही हाल इस धरती का है बिन तपन सब सून।नौतपा में तो एक खास स्थिति में सूर्य कर्क रेखीय क्षेत्र में होता है सूर्य की उत्तरायण की अपनी सीमा होती है वह कर्क रेखीय क्षेत्र में अभी प्रविष्ट हुआ है 22- 23जून के दरम्यान वह कर्क पर होगा तब ताप के तेवर सबसे ज्यादा जोर पर होंगे लेकिन उसके बाद जब वह इन तप्त क्षेत्रों से गुजरता है तो समझिए आग ही बरसती है हालांकि दिन धीरे धीरे छोटा होना शुरू हो जाता है इससे सूरज के ताप की अवधि घटती है वर्षा भी आ जाती है इसलिए गर्मी सताती नहीं।

तब किसान की खुशी देखते ही बनती हैं।जंगल से लेकर नन्ही दूब भी नाच उठती है और ज़मीन में पड़े असंख्य बीज प्रस्फुटित होने लगते हैं।धीरे धीरे हरीतिमा और खिले पुष्प धरती का श्रंगार कर देते हैं। किसान अपने कृषि कार्य में लग जाते हैं। त्यौहार की शुरुआत नागपंचमी से हो जाती है। पक्षियों का कलरव तथा नदी और झरनों की कल-कल मन को हर लेता है।

कहने का आशय यह कि प्रकृति अपने काम को सुनियोजित तरीके से संचालित करती है लेकिन इस पूरी कायनात में मनुष्य को छोड़कर सभी जीव-जंतु पक्षी वगैरह पर्यावरण की सेवा में अपने तरीके से लगे रहते हैं नाग, चूहे, चींटियां,दीमक ज़मीन को पोला बनाते हैं जिसमें जल संचय होता है।वृक्ष अपनी पत्तियां गिराकर जमीन को उर्वर बनाती हैं।जड़ें मिट्टी को बहने नहीं देती।पक्षी बीजों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाकर वृक्षों का विस्तार करते हैं।जबकि मानव सिर्फ़ प्रकृति का दोहन करता है उसे नुकसान तरह तरह से पहुंचाता है ।जमीन,वृक्ष, नदियां पशु पक्षी सब उससे प्रताड़ित हैं।वह उनकी वेदना और कराह नहीं सुनता इसी वजह से उसे बढ़ते ताप और पारे से डर लगता है।

गांवों में आज भी ऐसे दृश्य कहीं कहीं देखने मिल जाते हैं जहां लोग सूरज के तीखे तेवरों का सामना अमराई में चारपाई पर बैठकर करते हैं लेकिन गर्मी को कोसते नहीं है।अभी भी ऐसी खबरें आती हैं कि बड़े वृक्षों की छाया में बने मकान में पारा तीन से चार डिग्री कम होता है।इस ताप से घबराने की ज़रूरत नहीं है इससे सामंजस्य स्थापित करना ज़रुरी है।यदि आप वृक्ष लगाते हैं तो असंख्य फायदे आपको मिलेंगे मसलन शुद्ध हवा,पानी की उपलब्धता, मिट्टी कटाव से बचत,ताप में कमी, पक्षियों का सुमधुर चहचहाना अन्य जीव-जंतुओं का सानिध्य और वर्षा की प्राप्ति। हमारे स्वास्थ्य के लिए इतना ही काफी है यह प्रकृति संरक्षण के लिए भी काफी है।

 प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का एक ताज़ा उदाहरण दुबई की भारी बरसात है जिससे अब तक दुबई त्रस्त है।दूबई वास्तव में डूबा हुआ था जिस पर आलीशान इमारतें  बनाकर प्रकृति विरोधी काम किया जिससे ऐसी विपदा आई । प्रकृति के कार्य में हस्तक्षेप खतरनाक होता है क्योंकि प्रकृति अपना संतुलन दीर्घकालिक और अल्पकालिक घटनाओं के ज़रिए बनाए रखती है। अल्पकालिक घटनाएं ज्वालामुखी विस्फोट ,भूकंप या दुबई की बरसात ,सुनामी जैसी घटनाएं हैं जबकि दीर्घकालिक घटनाएं सदियों तक आहिस्ता आहिस्ता काम करती रहती है।मसलन अरावली,विन्द्याचल पर्वत श्रखंला का पठार में परिवर्तित होना सरस्वती का विलुप्त हो जाना या हिमालय का धीरे-धीरे बढ़ना।

कभी कभी हमे सोचकर देखें  प्रकृति के मानव कितने बड़े गुनहगार है। सोचते हैं एसी,कूलर की हवा खाकर,फ्रिज का ठंडा पानी पीकर हम खुशहाल हैं यह ग़लत फहमी है।तरह तरह की बीमारियों की जड़ इनमें ही मौजूद है। आइए जानवरों, पशु-पक्षियों से प्रेरणा लें।संग्रह वृत्ति का परित्याग करें।सबका प्रकृति पर बराबरी का हक है।यह संचेतना ज़रुरी है और ज़रुरी है इसका विस्तार।यदि हम अपनी धरती को करते हैं प्यार तो उसकी फ्रिक में शामिल हों।बेतुके दोहन को रोकने एकजुट हों वरना चढ़ता पारा ,सूखता जल हमें और परेशानी में डाल देगा।

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