Site icon अग्नि आलोक

पर्यावरणरक्षा : क्या न्यूक्लियर पावर’प्लांट विकल्प है?

Share

 सुधा सिंह

_जी हां, न्यूक्लियर पावर प्लांट निश्चित रूप से एक विकल्प हो सकता है. भारत के पास टेक्नॉलजी है, अनुभव है; लेकिन इच्छा नही है।_

        पहला परमाणु रियेक्टर भाभा ने नेहरू दौर मे ही बना लिया था। अप्सरा नाम का यह रियेक्टर जर्मन सपोर्ट से बना था। तब एनपीटी लागू नही थी। बाद मे हो गई, तो न्यूक्लियर टेक्नीक साझा करना, न्यूक्लियर फ्यूल लेना-देना बैन हो गया।

      बीच के वक्त मे हमने आठ परमाणु बिजलीघर बनाए। ये सामान्य ज्ञान की परीक्षा के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है, भारत की बिजली आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कम। 

     क्योकि सारे देश मे दस पंद्रह हजार मेगावाट ही परमाणु बिजली बनती है। इत्ती तो हमारे कोरबा वाले प्लांट, लंच ब्रेक मे बना लेते है। 

तो न्यूक्लियर फ्यूल और न्यूक्लियर वेस्ट एक बड़ी बाधा रही। 

अटल की एटमी बेवकूफी के दशक भर बाद, मनमोहन ने अमेरिका से न्यूक्लियर समझौता किया। लेकिन वर्ल्ड न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (NSG) ने इसे रेटिफाई करने मे काफी वक्त लगा दिया। इसमे हमारी एन्ट्री होते होते मनमोहन सरकार चली गई। अब ये सरकार स्वयं बाधा है। 

         न्यूक्लियर टेक्नीक को प्राइवेट हैंड मे दिया नही जा सकता। और सरकार खुद कोई काम करना नही चाहती। 2008 मे परमाणु समझौते के बाद सात-आठ घोषणा हुई, कोई पूरा बना नहीं। उघर 100 से उपर, कोयला प्लान्ट लगकर चालू हो चुके। 

असल मे क्येाकि कोयला की बेच खरीद करने, और निजी पावर प्लान्ट से आंय-बांय रेट मे बिजली खरीद मे जो पैसा पार्टी को मिलता है, वो सरकारी न्यूक्लियर प्लांट से मिलना नही है। 

आप कहेगे कि जबरन पॉलिटिकल आरोप लगा रही हूं। तो याद कीजिए, होगा कि विगत वर्ष सरकार ने जबरन कोल इंडिया का प्रॉडक्शन गिराकर, प्रदेश सरकारों को विदेशी कोयला खरीदने का आदेश दिया, जिसकी कीमत चार गुना होती है। 

     और विदेशी कोयला खदान, स्टेट बैंक के कर्ज से ,आस्ट्रेलिया मे उस गोदी सेठ ने खरीदी थी, जिसे पोर्ट और रेल्वे सब गया है। 

खैर। सवाल था कि क्या परमाणु एनर्जी से बिजली पैदा हो तो ग्रीन फ्यूल कार चलाना जायज है? ठीक.

      तो आपने किसी तरह न्यूक्लियर बिजली बना ली। लेकिन अगर सड़को पर ट्राम, या रेल इंजन की तरह ओवरहेड नंगे तार न लगाऐं, तो इंडिविजुअल व्हीकल के लिए बैटरी तो लगेगी ही। 

        बैटरी तकनीक अभी तक स्थिर और एफीशियंट नही है। वेस्ट की समस्या अलग है। समाधान पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन को विस्तार करने, और सस्ता बनाने मे है। यहां सरकार रेल्वे, मेट्रो, एयरपोर्ट सब महंगा कर रही है, बेच रही है। इससे भी पार्टी को पैसा मिलता है। तो पैसा बड़ा या पृथ्वी ??

इसलिए छोड़ो ग्रीन फ्यूल, प्रदूषण और पृथ्वी!! ये सब हमारे नाती पोतों की समस्याऐं है।

      अपन पहले विश्वगुरू होकर कुछ मंदिर बना लें, कुछ और राज्य मे महामानव को डबल इंजन प्रदान करें, क्योकि आपके देश प्रदेश मे, बेच मारने को बहुत कुछ बचा हुआ है।

Exit mobile version