~ राजेंद्र शुक्ला (मुंबई)
पांडव आपकी पाँच इंद्रियाँ हैं – दृष्टि, गंध, स्वाद, स्पर्श और श्रवण.
कौरव सौ तरह के विकार हैं, जो आपकी इंद्रियों पर प्रतिदिन हमला करते हैं।
आप उनसे लड़ सकते हैं और जीत भी सकते है।
कैसे?
कृष्ण यानी अपने ‘स्व’ को सारथी बनाएं. जब कृष्ण आपके जीवन रथ की बतौर सारथी सवारी करते हैं, सही दिशा में ले जाते हैं.
कृष्ण आपकी आंतरिक आवाज,
आपकी आत्मा,आपका मार्गदर्शक प्रकाश हैं. यदि आप अपने जीवन को उनके हाथों में सौप देते हैं तो आपको फिर चिंता करने की कोई आवश्कता नहीं है।
स्वीकार करें : अर्जुन मेरी आत्मा हैं, मैं ही अर्जुन हूं और स्वनियंत्रित भी हूं।
कृष्ण हमारे परमात्मा हैं। पांच पांडव पांच नीचे वाले चक्र भी हैं : मूलाधार से विशुद्ध चक्र तक।
द्रोपदी कुंडलिनी शक्ति है, वह जागृत शक्ति है, जिसके ५ पति (५ चक्र हैं)।
ॐ कृष्ण का पांचजन्य शंखनाद है, जो आप को ढ़ाढ़स बंधाता है कि चिंता मत कर मैं तेरे साथ हूं.
आप अपनी बुराइयों पर विजय पा सकते हैं। अपने निम्न विचारों, निम्न इच्छाओं, सांसारिक इच्छाओं, अपने आंतरिक शत्रुओं यानि कौरवों से लड़ाई कर अर्थात अपनी आंतरिक वासनाओं को त्याग कर और चैतन्य पाठ पर आरूढ़ हो जाएं. विकाररूपी कौरव अधर्मी एवं दुष्ट प्रकृति के हैं।
श्री कृष्ण का साथ होते ही हमारी ७२००० नाड़ियों में भगवान की चैतन्य शक्ति भर जाती है, और हमें पता चल जाता है कि मैं चैतन्यता, आत्मा, जागृति हूं।
मैं अन्न से बना शरीर नहीं हूं, इसलिए उठो जागो और अपने आपको, अपनी आत्मा को, अपने स्वयं सच को जानो, पाओ. यही भगवद प्राप्ति या आत्म साक्षात्कार है. यही इस मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है।
आपका ये शरीर ही धर्मक्षेत्र, कुरुक्षेत्र है। धृतराष्ट्र अज्ञान से अंधा हुआ मन है। अर्जुन आप स्वयं हो। संजय आपके आध्यात्मिक गुरु हैं, जो आपका अंतस है.