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प्राणायाम की अनिवार्यता

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डॉ. प्रिया

_प्राणायाम एक प्राच्य पद्धति है जिसका उल्लेख वेद - उपनिषद् में मिलता है। प्राण एक दैवीय शक्ति है जो समस्त जगत् में व्याप्त है। परमाणु से लेकर आकाश पर्यन्त सब पदार्थों में प्राण सूक्ष्म रूप में विद्यमान है।_

ऐतरेय आरण्यक का मन्त्रांश है :
“सर्वे हीदं प्राणेनावृत्तम्।”
अर्थात् यह सब (जगत्) प्राण से व्याप्त है।
आगे कहा है:
“प्राण उक्थमित्येव विद्यात्।”
अर्थात् प्राण को जीवन का स्रोत जानो।
यह भी :
“प्राणाद् वायुरजायत।”
अर्थात् प्राण से वायु उत्पन्न हुआ।
तात्पर्य यह कि प्राण सूक्ष्म (Subtle) रूप और वायु इसका स्थूल (Gross) रूप है।

जीवधारियों में प्राण श्वास-प्रश्वास के रूप में अभिव्यक्त है परन्तु प्राण केवल श्वास-प्रश्वास प्रक्रिया नहीं है। प्राण वह शक्ति विशेष है जिससे शरीर की समस्त क्रियाएँ होती हैं।
शरीर के जिस भाग को लक्वा हो जाता है, वहां प्राण बाधित हो जाता है, इसलिए वह अंग गति नहीं कर पाता। जब तक शरीर में प्राण रहता है, वह जीवित रहता है और जब प्राण निकल जाता है, तब वह मर जाता है।
इसलिये जीवधारियों को प्राणी कहा जाता है। वस्तुतः हमारा जीवन-मरण और स्वास्थ्य-अस्वास्थ्य प्राण-प्रक्रिया पर ही आधारित है।

प्राणायाम के विषय में ऋग्वेद का मन्त्र है:
“द्वाविमौ वातौ वात आ सिधोरा परावतः।
दक्षं ते अन्यः आ वातु परान्यो वातु यद्रपः।।”
(10-137-2)
अर्थात् शरीर में दो वायु — प्राण (श्वास) और अपान (प्रश्वास) चल रही हैं। उन में से एक तो सिन्धु अर्थात् हृदय तक चलती है और दूसरी बाहर के वायुमण्डल तक।
हे प्राणायाम-अभ्यासी पुरुष ! उन में से एक अर्थात् प्राण तुम्हें बल, बुद्धि, आरोग्यता प्रदान करें और दूसरी अर्थात् अपान (प्रश्वास) रुग्णता, दुर्गन्ध, मलिनता दूर करें।

अथर्ववेद में प्रार्थना है :
“प्राणापानौ मृत्योर्मा पातम्। “
अर्थात् प्राण अपान शक्तियां मृत्यु से मेरी रक्षा करें।
सूफ़ी शायर शेख़ सादी ने इसी आशय को इस प्रकार अभिव्यक्त किया है :
हर श्वास जो अन्दर आता है,
जीवन को पुष्ट करता है।
हर प्रश्वास जो बाहर आता है,
शरीर को पवित्र करता है।
हर आता-जाता श्वास,
दो शुभाशीष लाता है।
हर श्वास के साथ उसका स्मरण करो,
दोहरे धन्यवाद के साथ।।

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी जीवन में प्राणायाम के महत्त्व को रेखांकित करता है :
“Take deep breathing exercises daily several times a day. A hundred deep breaths a day is a recipe for avoiding Tubercloses.”
– How to Live by Dr. Fisher

प्रतिदिन कई बार दीर्घ श्वास लो। एक दिन में 100 दीर्घ श्वास लेना तपेदिक से बचने का मंत्र है।
— कैसे जियें : डा फ़िशर
प्राण से ही हो रहा, अनन्त शक्ति-प्रवाह।
बिना प्राण नहीं सम्भव, कोई इन्द्रिय निर्वाह।
श्वास-प्रश्वास करें नियन्त्रित, पाएँ शक्ति अथाह।
कराटे प्रदर्शन में दिखे स्पष्ट, प्राण-शक्ति-प्रवाह।।
टायर हवा भरने पर, टनों भार उठाए यथा।
प्राणकेन्द्रित अंग भी, अत्यधिक बल पाए तथा।।

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