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भारत में जातिवाद रूपी कोढ़ की स्थापना सिंधुघाटी सभ्यता के बाद रामायण और महाभारतकाल में स्थापित और सुदृढ की गई !

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-निर्मल कुमार शर्मा,

भारतीय जातिवाद- रूपी कोढ़रूपी बुराई की शुरूआत सिंधुघाटी सभ्यता ( लगभग 8000 साल पूर्व ) के बाद ही महाभारत काल और रामायण काल में कुछ अत्यंत धूर्त व शातिर समाज के दुश्मन कुछ गुँडों के वर्ग ने रखी.इसी के फलस्वरूप आज तक इस देश में जातिवादी वैमनस्यता रूपी दावानल में यहाँ की 85 प्रतिशत बहुसंख्यक आबादी बुरी तरह झुलस रही है ! इस महाभारतकालीन पांचाल नरेश द्रुपद की सभा में द्रौपदी स्वयंवर में जातिवाद को किस प्रकार फूहड़ तरीके से महाधनुर्धर कर्ण को सार्वजनिक रूप से अमानवीय जातिवादी गाली ‘सूतपुत्र ‘ कहकर अपमानित किया गया,

इस विडिओ में यह कटुसच्चाई भरी बात स्वयं देख लीजिए,जबकि किसी भी बच्चे का उसके जन्म लेने के लिए उसे कतई गुनाहगार मानना ही वैज्ञानिक तौर पर सबसे बड़ी अमानवीयता,धूर्तता और अपराधिक कुकृत्य है,किसी भी बच्चे को जन्म देने में उसकी जन्मदात्री माँ और उसके जनक मतलब पिता पूर्ण रूप से उत्तरदायी हैं। कर्ण के मामले में भी उसकी कुँआरी माँ कुंती और उसका पिता कथित तौर पर सूर्य पूर्णतः जिम्मेदार हैं,फिर निरपराध कर्ण को जीवनभर ‘सूतपुत्र ‘ कहकर अपमानित करने वालों की बुद्धि पर तरस आती है ! इस धरती पर जन्म लेनेवाले किसी भी बच्चे को उसके जन्म के आधार पर अपमानित करना ही अक्षम्य अपराध है !

ऐसे दरिंदों को कठोरतम् दंड मिलनी ही चाहिए । वास्तव में महाभारत काल और रामायण काल में भारत में जातिवाद रूपी कैंसर को और सुदृढ किया गया ! संग्लग्न पूरी विडिओ को देखिए और स्वयं निर्णय करिए,स्तयं चिंतन करिए,कि हम जिस महाभारत और रामायण को हिन्दू समाज की सबसे पवित्रतम् धार्मिक पुस्तक मानते हैं,लेकिन वस्तुतः रामायण और महाभारत काल भारतीय इतिहास और समाज का सबसे स्याह काल है,क्योंकि इसी काल में जातिवाद रूपी भारतीय समाज के कोढ़ और कैंसर के ताने-बाने को सुनियोजित तरीके से और सुदृढ़ीकरण किया गया,जिसके फलस्वरूप यह राष्ट्रराज्य,यहाँ का अधिसंख्यक समाज अभी भी नारकीय जीवन जीने को अभिशापित है। यही कटुसच्चाई और कटुयथार्थ है। जन्म आधारित जातिवाद से सदा लाभान्वित होती रहने वाली कथित तौर पर उच्च जातियाँ भले ही इस विचार का घोर प्रतिवाद व सशक्त विरोध करें, लेकिन 85 प्रतिशत बहुसंख्यक,बहुजनों को उनका कड़ा प्रतिरोध करना पूर्णतया संविधानसम्मत,न्यायोचित व आज के समय में बिल्कुल समयोचित है।

-निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद,उप्र

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