Site icon अग्नि आलोक

चाहे कोई मुझे जंगली कहे….?

Share

शिकांत गुप्ते इंदौर

आज सीतारामजी बहुत ही विनोदी मानसिकता में हैं।
आज मिलते ही कहने लगे आज व्यंग्य की बात नहीं करेंगे,आज सिर्फ और सिर्फ हास्य की बातें करेंगे।
मैने पूछा आज एकदम इतना परिवर्तन कैसे हुआ है?
सीताराम ने कहा परिवर्तन तो संसार का नियम है। प्राकृतिक परिवर्तन को कोई भी रोक नहीं सकता है। बदलाव हो कर ही रहेगा।
मैने कहा हां बदलाव की शुरुआत नाम बदलने से हो गई है।
सीतारामजी ने नाराज होकर कहा,आज बिलकुल भी व्यंग्य नहीं सिर्फ हास्य।
इतना कहकर सीतारामजी गीतकार हसरत जयपुरी का लिखा हुआ,ब्रम्हचारी फिल्म का गीत गाने लगे।
आज कल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर ज़बान पर
सबको मालूम है और सबको खबर हो गई
क्यों भला हम डरें दिल के मालिक हैं हम
मैने पूछा इस गीत का स्मरण करने की कोई खास वजह?
सीतारामजी ने कहा,समाचार पढों,देखों और सुनों आपको सन 1993 प्रदर्शित फिल्म दामिनी में दर्शाए गए न्यायालय के दृश्य का स्मरण होगा। फिल्मों में खलनायक जब अभिभाषक का रोल अदा करता है तो कैसे संवाद बोलता है,स्त्री के शारीरिक अवयवों पर बेशर्मी से सवाल करता है?
मैने पूछा आप तो आज विनोदी मानसिकता में हैं,तो यह आक्रोश क्यों प्रकट कर रहें हैं?
सीतारामजी ने कहा फिल्में मनोरंजन के लिए ही निर्मित होती है। फिल्मों में खलनायक का अभिनय करने वाले अभिनेताओं को चरित्र अभिनेता कहा जाता है। ये खलनायक दर्शकों के मनोरंजन के लिए,सारे अवैध कार्य,निम्न स्तर के अपराध,बलात्कार, मादक पदार्थों का व्यापार करने का अभिनय करते हैं,हमारे देश के फिल्म निर्माता उक्त सारे दृश्य दर्शकों के मनोरंजन के लिए ही तो निर्मित करते हैं। एक खास बात फिल्म के पटकथा लेखक,दिग्दर्शक,अभिनेता सभी भारतीय ही होते हैं।
इसी के साथ सीतारामजी फिल्म शोले के इस गीत की पंक्तियां गुनगुना लग गए,इस गीत के गीतकार आनंद बक्षी है।
ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे
तेरी जीत मेरी जीत,तेरी हार मेरी हार सुन ए मेरे यार
जान पर भी खेलेंगे तेरे लिए के लेंगे सबसे दुश्मनी
मैने सीतारामजी से कहा मान गए कि,आप अंतः व्यंग्यकार ही हो,विनोद विनोद में आपने अच्छे व्यंग्य सुना दिए।
सीतारामजी कहा मैं तो आज हास्य विनोद की मानसिकता में हूं,मेरे कथन को आप जैसा भी समझो।
इतना कहते हुए सीतारामजी पुनः फिल्म जंजीर के गीत की निम्न पंक्तियां गुनगुना लग गए,
इस गीत के गीतकार गुलशन बावरा हैं।
यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िन्दगी
गुले-ए-गुलाजार क्यों बेज़ार नज़र आता है
जान भी जाए अगर यारी में यारों गम नहीं
अपने होते यार हो गमगीन मतलब हम नहीं
इतना सुनने के बाद मैंने सीतारामजी से पूछा क्या व्यंग्य का असर होता है?
सीतारामजी ने जवाब दिया, यह चमड़ी पर निर्भर है, गेंडे की चमड़ी बहुत ही मोटी होती है?
ऐसा वन्य प्राणी के विशेषज्ञों का कहना हैं।
मैने कहा वन्य प्राणी शब्द सामाजिकता का द्योतक है,जानवर शब्द असामाजिक लगता है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

Exit mobile version