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आज भी दलितों को नहीं मिलता मंदिर प्रवेश

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आर_पी_विशाल

मीरा कुमार के पिता का नाम बाबू जगजीवन राम था जो इंदिरा गांधी सरकार में देश के रक्षामंत्री थे। बात 1978 की है जब बाबु जगजीवन राम जी अपने परिवार के साथ जगन्नाथ पुरी मंदिर दर्शन के लिए गए लेकिन दलित होने के कारण उनके परिवार को मंदिर प्रवेश की अनुमति नही मिली और उन्हें वापस लौटना पड़ा। आज 2021 में भी स्थिति ज्यूँ, की त्यों है।
वर्तमान राष्ट्रपति माननीय कोविंद जी और 1930 में डॉ अम्बेडकर के नासिक में कालाराम मंदिर प्रवेश आंदोलन, जगजीवन राम के रक्षा मंत्री होते हुए मंदिर प्रवेश विरोध या शुद्धिकरण से लेकर पूर्व एससी, एसटी आयोग के अध्यक्ष पीएल पुनिया की रोक तक या फिर गुजरात के द्वारका मंदिर में पंडित द्वारा पूर्व कैबिनेट मंत्री कुमारी शैलजा की जाति पूछने से लेकर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के मंदिर प्रवेश के बाद शुद्धिकरण तक में जातिगत भेदभाव कॉमन है
हम एक शब्द में आत्मसंतुष्टि हेतु अपनी सफाई दे देते हैं लेकिन इससे समस्या समाप्त नहीं होती है। यहां बात मन्दिर प्रवेश की नहीं बल्कि जाति आधारित भेदभाव की है। यही मीरा कुमार के पिता बाबू जगजीवन राम जी एकबार वाराणसी (बनारस अथवा काशी) में ठाकुर पूर्ण सिंह की मूर्ति की स्थापना करने गए। मूर्ति का अनावरण करने के बाद जब वे वहां से वापस आये तो काशी के पंडितों ने तीन ट्रकों में गंगाजल भरकर मूर्ति का शुद्धिकरण किया। पंडितों का कथन था कि एक अछूत ने मूर्ति को अपवित्र किया था। 
वे रक्षा मंत्री बाद में थे पहले एक अछूत थे याद होगा वो 1971 में पाकिस्तान को भारत ने धूल चटाई थी और रक्षा मंत्री के रूप में जो कार्य जगजीवन राम जी ने किये थे उसके सब कायल थे भले ही आज भी इस युद्ध की जीत का श्रेय श्रीमती इंदिरा गांधीजी को दिया जाता हो मगर बात यह है कि एक रक्षामंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री की भी इस देश में एक जाति है, उनके साथ भी जातिगत भेदभाव है, तो आम आदमी की बिसात ही क्या है। 

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