Site icon अग्नि आलोक

बिना अक्ल के भी है, नर पर भारी नारी.

Share

आरती शर्मा

अक्ल बाँटने लगे विधाता
लम्बी लगी कतारी.
सभी आदमी खड़े हुए थे
कहीं नहीं थी नारी.

सभी नारियाँ कहाँ रह गयीं
था ये अचरज भारी.
पता चला ब्यूटी पार्लर में
पहुँच गयीं थीं सारी.

मेकअप की थी गहन प्रक्रिया
एक एक कर सारी
बैठी थीं कुछ इन्तजार में
कब आयेगी बारी.

उधर विधाता ने पुरूषों में
अक्ल बाँट दी सारी.
पार्लर से फुर्सत पा कर के
जब पहुँची सब नारी.

बोर्ड लगा था स्टॉक ख़त्म है
नहीं अक्ल अब बाकी.
रोने लगी सभी नारियां
नीन्द खुली ब्रह्मा की.

पूछा कैसा शोर हो रहा
ब्रह्मलोक के द्वारे.
पता चला खजाना अक्ल का
पुरुष ले गये सारे.

ब्रह्मा जी ने कहा देवियों
बहुत देर कर दी है.
जितनी भी थी अक्ल सभी वो
पुरुषों में हमने भर दी है.

लगी चीखने तब नारियां
ये कैसा न्याय तुम्हारा.
कुछ भी करो, चाहिए हमको
आधा भाग हमारा.

पुरुषों में शारीरिक बल है
हम ठहरी अबलाएँ.
अक्ल हमारे लिए जरुरी
ताकी निज रक्षा कर पाएँ.

बहुत सोच दाढ़ी सहला कर
तब बोले ब्रह्मा जी.
इक वरदान तुम्हे देता हूँ
हो जाओ अब राजी.

थोड़ी सी मुश्कान तुम्हारी
बनेगी नर की लाचारी.
कितना भी वह अक्लमन्द हो
उसकी मति जायेगी मारी.

एक बोली क्या नहीं जानते
नारी कैसी होती है.
हँसने से ज्यादा हम सब
बिना बात के रोती हैं.

ब्रह्मा बोले यही कार्य तब
रोना भी कर देगा.
औरत का रोना भी नर की
बुद्धि को हर लेगा.

इक बोली हमको ना रोना
ना ही हँसना आता है.
झगड़े में हैं सिद्धहस्त हम
झगड़ा ही हमको भाता है.

ब्रह्मा बोले चलो मान ली
यह भी बात तुम्हारी.
घर में जब भी झगड़ा होगा
होगी विजय तुम्हारी.

जग में अपनी पत्नी से जब
कोई पति लड़ेगा.
पछतायेगा, सिर ठोकेगा
आखिर वही झुकेगा.

ब्रह्मा बोले सुनो ध्यान से
अन्तिम वचन हमारा.
तीन शस्त्र अब तुम्हें दे दिये
पूरा हुआ न्याय हमारा.

इन अचूक शस्त्रों में भी
जो मानव नहीं फँसेगा.
बड़ा विलक्षण जगतजयी
ऐसा नर दुर्लभ होगा.

आज वही सच है सामने
वही है दुनियादारी
बिना अक्ल के भी है
नर पर भारी नारी.

Exit mobile version