सनत जैन
भारत में सब कुछ नया-नया हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस सीढी से चढ़े। इस सीढी को सबसे पहले उन्होंने हटाया। ताकि लोग उनकी कुर्सी तक कभी नहीं पहुंच सके। इसमें वह पूर्ण रूप से सफल रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी अपना स्वयं का एक नया इतिहास लिखते हैं। पुराने इतिहास और पुरानी परंपराओं में जीना शायद उन्होंने सीखा ही नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं कहते हैं, कि उन्होंने कभी छोटा सोचा ही नहीं। वह हमेशा बड़ा ही सोचते हैं। उनके कार्यकाल में संसद की नई भव्य इमारत बनी। जब उसका उद्घाटन हुआ तो राजसी परंपरा के अनुसार सैंगोल स्थापित किया गया। नई संसद के पहले सत्र में ही महिला आरक्षण विधेयक पेश किया गया। जो पिछले कई दशकों से लंबित पड़ा हुआ था। भारतीय संसद का एक नया इतिहास, सांसदों को सबसे ज्यादा संख्या में निलंबित करने का बनाया। आगे पीछे के सभी रिकॉर्ड एक तरह से तोड़ दिए हैं। ना भूतो ना भविष्यति।
नई संसद में भाजपा के एक सांसद ने एक धर्म विशेष के आधार सांसद के ऊपर जो टिप्पणी की। वह उसके पहले ना कभी संसद में हुई थी, ना बाद में कभी होगी। संसद के दोनों सदनों का संचालन ऐसे हो रहा है। जैसा स्कूल और कॉलेज में उद्दंड छात्रों के लिए भी नहीं होता है। लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति एक हेड मास्टर की तरह सांसदों को अनुशासन में बांधकर रखना चाहते हैं। आसंदी द्वारा सांसदों से जिस तरीके से निर्देश दिए जाते है। उसमें विपक्षी सांसदों के लिए हेय भाव होता है। जो किसी को भी सुनने पर अपमानजनक लगता है। विपक्षी सांसदों को सदन के अंदर बोलने भी नहीं दिया जाता है। बार-बार हस्तक्षेप किया जाता है। विपक्षी सदस्य जब बोलते हैं तो सत्ता पक्ष हंगामा करने लगता है। ऐसा लगता है कि लोकसभा और राज्यसभा मे प्राइमरी स्तर की क्लासें लग रही हैं सांसदों के साथ हेड मास्टर के रूप में आसंदी द्वारा जो क्रूरतम व्यवहार हो सकता है, वह किया जा रहा है। 3 दिन में 141 से ज्यादा सांसद पूरे सत्र की अवधि के लिए निलंबित कर दिए गए। जो विधेयक संसद में पेश किया जा रहे हैं। वह अब ना तो प्रवर समिति को भेजे जाते हैं। नाही संयुक्त संसदीय समिति को भेजे जाते हैं। जिन बिलों में 15 से 16 घंटे चर्चा होनी होती है। उन बिलों को हो हल्ले के बीच में 5 से 10 मिनट में पास कर दिया जाता है। सांसदों को निलंबित करने की वजह भी बिलों को पास करना बताया जा रहा है। कैग की जिस रिपोर्ट के बल पर यह सरकार सत्ता में आई थी। 2014 के बाद से केग की रिपोर्ट पेश करने का पुराना सिस्टम भी लगभग लगभग खत्म कर दिया गया है। सरकार अब संसद में आंकड़े भी पेश नहीं करती है। रिपोर्ट के पुराने तरीकों को बदल दिया गया है। नए तरीके बना लिए गए हैं। आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है। इलेक्ट्रोल बांड के जरिए चंदा जुटाया जा रहा है। उसका 80 से 90 फ़ीसदी भाजपा को प्राप्त हो रहा है। लेकिन कौन चंदा दे रहा है। इसको सरकार द्वारा सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है। मनी बिल के रूप में ऐसे बिल पेश किया जा रहे हैं। जो सांसद और संसद के अधिकारों को ही खत्म कर रहे हैं। बिना चर्चा के बिल बजट और अनुपूरक बजट पास हो रहे हैं। जो बिल पास कराये जाते हैं। उन्हें उसी दिन पेश किया जाता है। सांसद पढ़ भी नहीं पाते हैं। बिल पास हो जाते हैं। इसके पहले कभी नहीं हुआ था।
भारतीय जनता पार्टी जब विपक्ष में थी। तब वह सदन के अंदर कैसे-कैसे धरने, विरोध प्रदर्शन, और सदन की कार्यवाही नहीं चलने देती थी। अब उस पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। सबसे लंबे समय तक विपक्ष में रहकर किस तरीके से सरकार के काम को बाधित किया जाता है। यह बीजेपी से अच्छा कोई नहीं जानता है। इसलिए जब केंद्र में भाजपा की सरकार बनी तो सबसे पहले विपक्ष की उसी सीढी को हटा दिया गया, जिसके कारण विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच में अब इतनी दूरी बन गई है, कि उसको पाटा नहीं जा सकता है। भाजपा के सांसद रमेश बिधूड़ी ने बहुजन समाज पार्टी के सांसद को एक तरह से सदन के अंदर गाली ही दी थी। उसे पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। जब सदन चल रहा होता था। तब परंपरा थी, कि सरकार जो भी बयान देती थी,वह सदन के अंदर देती थी। हाल ही में संसद के ऊपर आतंकी हमला हुआ। गृहमंत्री और प्रधानमंत्री सदन के बाहर बोल रहे हैं। संसद के अंदर नहीं बोल रहे हैं। विपक्ष सदन में व्यक्तत्व देने की मांग कर रहा है। लेकिन सरकार नहीं दे रही है। जिसके कारण विपक्ष विरोध कर रहा है। इस मांग के चलते 141 सांसदों का निष्कासन हो जाना, एक ऐसा इतिहास बन गया है। जिसे शायद भविष्य में भी ना तोड़ा जा सके। सरकार कह रही है, कि विपक्षी सांसद अपना आचरण सुधारें। जो कुछ कहना है,अपनी सीट से कहें आसन्दी सदन की कार्यवाही दिखाना चाहेगी तो दिखाएंगे,नहीं तो विपक्ष के लिए उसे भी ब्लैक आउट अर्थात सेंसर कर दिया जाएगा। विपक्ष के सांसदों को समझ नहीं आ रहा है,कि वह अपनी बात सरकार से किस तरह से कहें। मणिपुर में भारी हिंसा हुई थी। 5 माह से ज्यादा मणिपुर में हिंसा चल रही थी। सरकार उस पर भी चर्चा करने के लिए तैयार नहीं हुई। सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह रही, कि अब आसन्दी भी सरकार की हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में विरोध प्रदर्शन करना अनुशासन हीनता और राष्ट्र द्रोह माना जाता है। इस सारी स्थितियों को देखते हुए यही कहा जा सकता है,नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री पद से लेकर प्रधानमंत्री बनने के बाद तक जिस सीढी और जिस रास्ते में चलकर वह यहां तक पहुंचे हैं। उन सारे तोर तरीकों ओर रास्ते बंद कर दिए हैं। ताकि कोई उन्हें चुनौती न दे सके। विपक्ष के सामने अब और कोई रास्ता नहीं रहा। रही-सही कसर गोदी मीडिया और न्यायपालिका ने पूरी कर दी है। वह भी सरकार की गोदी में बैठकर सरकार जो चाहती है, वैसा ही आचरण कर रही है। जिसके कारण युवा उद्देलित होकर संसद तक पहुंच गए। महंगाई और बेरोजगारी पर उनकी कोई बात सुन नहीं रहा था। मीडिया भी उनकी बात को नहीं सुन रहा था। उन्हें कहीं से जब न्याय नहीं मिला, तो वह भगत सिंह के रास्ते पर चलते हुए विद्रोह के रास्ते को चुनने के लिए विवश हुए। कुछ ऐसी ही स्थिति अब विपक्षी दलों की बन गई है। इंडिया गठबंधन के नाम पर सभी 28 राजनीतिक दल एकजुट होकर आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए विवश हो रहे हैं। अब देखना है, कि भविष्य के गर्त में क्या छिपा है।