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exhibition…… गुरुद्वारा का मॉडल 

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मोनिका शर्मा 

तीन-चार साल पहले बेटे के स्कूल में exhibition थी, उसे थर्माकोल से दो मंजिला गुरुद्वारा का मॉडल बनाना था, ये 5 बच्चों का ग्रुप था लेकिन बच्चे छोड़ो, माँ-बाप को भी नहीं पता था कि ये बनेगा कैसे? सभी पेरेंट्स परेशान थे कि ये क्या आफत आ गयी. ख़ैर समस्या का हल खोजना ही पड़ता है, कुछ पेरेंट्स को पता चला कि स्टेशनरी की शॉप पर ये मॉडल भी बनते हैं, फिर क्या था. पैसा देकर मॉडल बनवा लिया. स्कूल को कोई फर्क नहीं पड़ा कि मॉडल बच्चों ने नहीं बनाया बल्कि पैसे देकर बनवाया है, उन्हें केवल अच्छा दिखने वाला गुरूद्वारे का मॉडल चाहिए था ताकि लोग देखें तो वाहवाही करते ना थकें, स्कूल के नाम को चारचांद लग जाएँ. 

पर ये नाकाफी था, अभी बच्चों को गुरुद्वारे पर स्पीच भी बोलनी थी वो भी अंग्रजी में रट्टा मारकर. 

Exhibition देखने पेरेंट्स को भी बुलाया गया था सो हम गए, जैसे ही लोग बच्चों के पास जाकर खड़े होते बच्चे बिना रुके, रट्टू तोते की तरह बोलना शुरू हो जाते इसका आगा पीछा कुछ नहीं पता, ये बना कैसे? सब रटा रटाया बोले जा रहे थे. मुझे दुःख हुआ कि इन बच्चों को क्या सिखाया जा रहा है?

अब फिर से मेरे बेटे के स्कूल में Science, Art & Craft की exhibition लगेगी और इस बार उन्होनें रोबोट बनाया है जिसे स्कूल ने एक बार तो रिजेक्ट कर दिया, कहा बहुत ही कॉमन है कुछ अलग बनाओ. लेकिन बच्चों ने तो पहले ही इस पर काम शुरू कर दिया था सामान भी खरीद लिया, बड़ी मुश्किल से टीचर्स को मनाया इसमें दो दिन खराब हो गए, अंत में रोबोट ही बनाया, स्पीच भी तैयार की जो फिर से teacher ने रिजेक्ट कर दी, अच्छी नहीं है दूसरी लिखो, रात 11 बजे तक स्पीच लिखी और आज रट्टा भी मारना है ताकि कल सभी “तोते” चालू हो जाएँ मशीन की तरह, एक अच्छा दिखावा हो जाएगा. स्कूल का नाम होगा. 

बच्चे क्या सीखेंगे? 

बच्चे सीखेंगे कि नकली, हल्का और दिखावटी बनकर कैसे impression डाला जाता है.  

ये सब show-off ही है बस बाहरी पैकेजिंग अच्छी कर दो अंदर भले ही कचरा हो, कौन देखता है, किसे फर्क पड़ता है ? बाहर से सब ख़ूबसूरत होना चाहिए जिससे लोग तारीफ़ करें. इस शो-ऑफ नाम की बीमारी से सब लोग ग्रस्त हैं केवल उनके फ़ील्ड्स अलग अलग हैं. घर, स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल, मंदिर, कंपनी, फिल्म इंडस्ट्री, पॉलिटिक्स, छोटे से लेकर बड़े तक सिर्फ दिखावा भरा है कंटेंट के नाम पर zero है. 

घर-परिवार के लोग कैसे खुद अपनी बड़ाई मारने में लगे रहते हैं किसी ने कार खरीदी है, किसी ने घर, कोई विदेश घूम कर आया है, बच्चे के या खुद के अचीवमेंट्स का बखान और घर में शादी हो फिर देखिये नज़ारा, लोग डिज़ाइनर कपडे पहने हुए, हर फंक्शन की ड्रेस अलग होती है, ड्रेस फंक्शन के हिसाब से चुनते हैं, इन्हें देख ऐसा लगता है किसी फैशन शो में आये हैं. शादी की जगह से लेकर, खाना-पीना, रहना-सोना सब कुछ दिखावे से ओतप्रोत है. 

फिल्मों ने भी बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लोग फिल्मों से काफी प्रभावित होते रहे हैं, पिछले कुछ सालों में बहुत तेज़ी के साथ ये बदलाव हुआ है कि लोग हीरो-हीरोइन जैसे दिखना चाहते हैं, उनके जैसा हेयर कट, बॉडी, कपडे, लाइफ स्टाइल इन सब के पीछे पागल हो रखे हैं. फ़िल्में बन कैसी रही हैं ये हम सब जानते हैं, दोहराने की ज़रूरत नहीं है.  

अब मंदिर में लोग भगवान के दर्शन और मन की शान्ति के लिए जाते हैं, पर कुछ स्वार्थ की राजनीति वाले लोग उन्हें भी तोड़ कर चमक दमक से आधुनिक बनाने में लगे हैं, ताकि विकास के नाम पर उनका इस्तेमाल किया जा सके. एक के बाद एक सारे मंदिर मॉल में बदल रहे हैं और भक्त ख़ुशी से नाच रहे हैं. भगवान तक को नहीं बख्शा उन्हें भी अपने में शामिल कर लिया.

हमारे देश के प्रधानमन्त्री जी ही दिखावे में पड़े हुए हैं, दिन में दस बार कपडे बदलते हैं, उनका यकीन भी शो-ऑफ में है, कंटेंट गया भाड़ में, चलो फोटो खिंचवाओ, सब साइड हो जाओ. जब राजा ऐसा है तो प्रजा से क्या उम्मीद की जा सकती है? हर चीज़ ऊपर से शुरू होती है और नीचे तक पहुँचती है फिर चाहे बेईमानी, छल-कपट, झूठ, बुराई हो, या अच्छाई, ईमानदारी, सच, न्याय हो. 

ऊंचे तबके के लोग ऐसे चलन शुरू करते हैं जो धीरे धीरे नीचे तबके के लोगों तक पहुँचता हैं, बिना सही गलत जाने सब लोग इनका अनुसरण करने लगते हैं जो समाज, देश और लोगों के भविष्य को बर्बादी की कगार पर ले जाता है.

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