अग्नि आलोक

पोल खोलते गिरते पुल, जलभराव, टूटी सड़कें!

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मोदी सरकार लगातार “देश की तरक्की” का ढोल पीटती रहती है। यह सुहावने ढोल जरा से मानसून की बारिश से धराशायी हो गये। देश का विकास हो रहा है, निर्माण हो रहा है, इस तरह के तमाम दावे मोदी सरकार करती रही है। मोदी के सभी वायदों की तरह यह भी खोखला ही निकला। यहाँ तक कि जिस रामलला को टेंट से निकालकर महल में बसाने के नाम पर मोदी सरकार वोट माँग रही थी, उनके “महल” के छत से भी पानी टपक रहा है! वहीं राम की नगरी अयोध्या भी राम भरोसे हो चुकी है। जिस अयोध्या को स्मार्ट सिटी बनाने की बात की जा रही थी वहाँ की सड़के पूरी तरह पानी में डूब चुकी हैं। यह सिर्फ़ अयोध्या नहीं बल्कि पूरे देश की हालात हैं। देश के कई हिस्सों में एयरपोर्ट की छत से लेकर तमाम सड़कें और पुल, लगातार उन सरकारी नीतियों की भेंट चढ़ते दिख रहे हैं, जिनका नाम पिछले दस सालों में विकास के दावों में बार- बार दोहराया जा रहा था और वोट माँगा जा रहा था। इसके कारणों पर बात करने से पहले, एक बार देश भर में हुए इन हादसों के बारे में जान लेते हैं।

‘डेक्कन हेराल्ड’ में सजित कुमार का कार्टून

दिल्ली में 28 जून को भारी बारिश के कारण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा के टर्मिनल 1 का छत का एक हिस्सा गिर गया था, जिसकी वजह से आठ लोग घायल हो गये और एक व्यक्ति की मौत हो गयी। मृतक का नाम रमेश कुमार था और वह कैब ड्राइवर थे। ज्ञात हो कि 10 मार्च को मोदी जी ने दिल्ली हवाई अड्डे के एक टर्मिनल का उद्घाटन किया था।

दिल्ली में 28 जून को एम्स के विभागों और ऑपरेशन थियेटरों में पानी भर जाने से दर्ज़नों सर्जरी रुक गयी और आपातकालीन भर्ती प्रभावित हुई। दीवारों से पानी अन्दर आने और ज़मीन पर जमा होने के कारण ट्रॉमा सेन्टर और कार्डियो न्यूरोसाइंसेस सेन्टर (सीएनसी) के नौ ऑपरेशन थिएटर, जहाँ गम्भीर रूप से बीमार मरीजों को भर्ती किया जाता है, उसे बन्द करना पड़ा। अस्पताल में बिजली कटौती हो गयी और शाम चार बजे के बाद बिजली आपूर्ति बहाल हुई।

मध्य प्रदेश के जबलपुर हवाई अड्डे के नए टर्मिनल भवन का एक हिस्सा 28 जून को भारी बारिश के कारण ढहकर एक कार पर गिर गया। 29 जून को राजकोट में भी भारी बारिश के चलते एयरपोर्ट की कैनोपी टूट गयी। हालांकि, इन हादसों में किसी के घायल या हताहत होने की ख़बर नहीं आयी।

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 19 जून 2022 को जिस प्रगति मैदान के सुरंग का उद्घाटन किया था, उसके कुछ समय के बाद से लगातार इसमें पानी का रिसाव हो रहा है। सुरंग की दीवारें ख़राब हो रही हैं और अभी इसे बन्द कर दिया गया है। इस परियोजना की कुल लागत 777 करोड़ रुपये थी। ज्ञात हो कि पिछले साल G20 के लिए प्रगति मैदान का नाम बदलकर भारत मण्डपम तैयार किया गया, उसमें भी भरी बारिश के बाद पानी भर गया था। जी-20 के प्रचार के लिए जिस तरह बेतहाशा पैसा बर्बाद किया गया, उसमें से 2,700 करोड़ रुपए इस मण्डपम के निर्माण में लगाये गये थे। इसका भी उद्घाटन मोदी ने किया था।

जिसे भारत का सबसे लम्बा समुद्री पुल बताया जा रहा था उस अटल सेतु के सम्पर्क मार्ग पर इसके उद्घाटन के छह महीने के भीतर दरारें आ गयी है। नरेंद्र मोदी ने इस साल 12 जनवरी को सी लिंक-अटल बिहारी वाजपेयी सेवरी-न्हावा शेवा अटल सेतु का उद्घाटन किया था। 17,843 करोड़ रुपये की लागत से बने 21.8 किलोमीटर लम्बे इस पुल को मुम्बई महानगर क्षेत्र (एमएमआर) के लिए एक गेम चेंजर और इंजीनियरिंग की एक उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा था।

सबसे बुरा हाल तो बिहार का हुआ। नीतीश कुमार के “सुशासन” वाला राज्य देशभर में निर्माण कार्यों के खोखले दावों की पोल खोलने में ज़रूर अव्वल है। 17 दिनों में राज्य में अलग-अलग जगहों पर 12 पुल गिरने की ख़बर आयी और यह सिलसिला अब भी जारी है। सीवान, सारन, मधुबनी, अररिया, चम्पारण, किशनगंज समेत कई ज़िलों में यह घटनाएँ हो चुकी हैं। अत्यधिक बारिश होने के कारण लगातार पुल गिरने की घटनाएँ सामने आ रही है। पुराने पुल की मरम्मत नहीं होने के कारण और नदियों में पानी का प्रवाह तेज़ होने के कारण मिट्टी खिसक जा रही है और पुल गिर जा रही है। ऐसा नहीं है कि राज्य में हाल ही में ऐसी घटनाएँ शुरू हुई है, इसके पहले भी कई बार पुल गिर चुके हैं। पिछले साल भागलपुर में निर्माण के दौरान एक ही पुल दो बार गिर गया। पहले अप्रैल 2022 में और फिर जून 2023 में। 1700 करोड़ रुपए इस पुल में लगे थे। सबसे अजीब बात यह है कि एक बार पुल गिर जाने के बाद उसी कम्पनी को ठेका दिया गया। क़ायदे से इसका निर्माण 2019 में पूरा हो जाना था, मगर 3 साल देर करने के बाद जो निर्माण हमारे सामने होता है वह भरभराकर गिर जाता है। उस कम्पनी का नाम सिंगला कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड है। यह वही कम्पनी है जिसने 10 मई 2019 को 75 लाख का इलेक्टोरल बॉण्ड ख़रीदा था। साफ़ है कि यहाँ भी ‘चन्दा दो और धन्धा लो’ का फ़ार्मूला अपनाया गया।

मुम्बई में एक दिन की बारिश के बाद मध्य रेलवे पर चूनाभट्टी, भांडुप और कुर्ला में ट्रैक पर करीब 9 इंच तक पानी जमा हो गया, जिससे रेल सेवाएँ रोकनी पड़ीं। कई लम्बी दूरी की ट्रेनों को भी रद्द करना पड़ा, तो कई ट्रेनों का समय बदलकर चलाया गया।

यह महज़ चन्द उदाहरण थे, यह हालत अभी पूरे देश की है। सरकार की चाटुकार गोदी मीडिया इसपर पूरी तरह लीपापोती करने में लगी है। याद कीजिए, मोदी सरकार के वायदे कि देश को “मज़बूत बनाया जायेगा” पर उन्होंने मज़बूत बनाया है देश के पूँजीपतियों को बड़ी कम्पनियों को, जिन्होंने मोदी सरकार को करोड़ों रुपये का चन्दा दिया और बदले में मोदी ने उन्हें धन्धा दिया। यह साफ़ दर्शाता है कि मोदी सरकार के राज में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। यह स्पष्ट है कि जनता की गाढ़ी कमाई का हिस्सा मन्त्रियों व ठेकेदारों के साथ गठजोड़ और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। बीते वर्ष आयी कैग की रिपोर्ट में सड़क एवं परिवहन मन्त्रालय के घोटाले का ज़िक्र है। द्वारका एक्सप्रेस-वे के एक किलोमीटर सड़क निर्माण के लिए 18 करोड़ की राशि का ख़र्च अनुमोदित किया गया था। लेकिन यहाँ एक किलोमीटर सड़क बनाने में लगभग 250 करोड़ रुपये ख़र्च किये गये हैं! इसमें अनुमानित राशि से 14 गुना अधिक राशि आवण्टित की गयी है। केवल द्वारका एक्सप्रेस-वे में ही नहीं बल्कि भारत सरकार के सड़क एवं परिवहन निर्माण विभाग के भारतमाला परियोजना के अन्य प्रोजेक्टों में भी काफ़ी गड़बड़ियाँ मौजूद हैं। कैग के अनुसार भारतमाला परियोजना में अनुमोदित राशि से लगभग 58 फ़ीसदी राशि अधिक आवण्टित की गयी। परियोजना को महँगा करने के बावजूद काम तय समय पर नहीं हुआ। मामला केवल वित्तीय गड़बड़ियों का नहीं है बल्कि इसमें और भी कई प्रकार की गड़बड़ियाँ हैं। उन बोली लगाने वालों को भी काम दिया गया है जिसके पास वाजिब दस्तावेज़ तक नहीं थे। यानी फर्ज़ी दस्तावेज़ के आधार पर बोली लगाने वालों का चयन करने के मामले भी सामने आये हैं।

महँगाई, बेरोज़गारी और भुखमरी से त्रस्त आम जनता को तो मोदी सरकार बोलती है कि विकास के लिए कुछ समय के लिए हम अधिकार भूल जायें और केवल कर्तव्य की बात करें! हमें संघ परिवार और भाजपा “संस्कार”, “संस्कृति”, “राष्ट्रवाद” और “देशभक्ति” की नसीहतें देती है और कहती है कि हम “रामराज्य” लाने के लिए पेट पर पट्टी बाँध लें और त्याग करें! हमें “सन्तोषम परम सुखम” का उपदेश दिया जाता है! वहीं दूसरी ओर अडानियों-अम्बानियों, बड़ी-बड़ी कम्पनियों और भाजपा के नेता-मन्त्रियों को तिजोरियाँ और पेट ठूँस-ठूँसकर भरने के लिए भ्रष्टाचार करने का पूरा अवसर दिया जाता है। ऐसे में, जिस “चाल-चेहरा-चरित्र” की दुहाई भाजपा और संघ परिवार हमेशा दिया करते थे, मानसून की एक बारिश ने ही सारे विकास की कलई पूरी तरह से खोल कर रख दिया और यह सिर्फ़ इस साल की बात नहीं है।

यह हमें पता होना चाहिए कि हमसे ही वसूले गये टैक्स के पैसे को सरकार इन पब्लिक सेक्टर के कामों में लगाती है। इसका ठेका प्राईवेट कॉन्ट्रैक्टर व कम्पनियों को दिया जाता है और जो भाजपा को अधिक चन्दा देता है, इन कामों का ठेका उन्हें दे दिया जाता है। आपको याद ही होगा पिछले साल उत्तराखण्ड में जिस सुरंग के ढहने से मज़दूर फँस गये थे, उस सुरंग का निर्माण करने वाली कम्पनी नवयुग इन्जीनियरिंग ने भाजपा को 55 करोड़ का चन्दा दिया था। इससे पहले भी यह कम्पनी ज़मीन अधिग्रहण और प्रोजेक्ट तैयार करने को लेकर भी विवाद में लिप्त थी, पर भाजपा ने इनको धन्धा देकर अपना धर्म निभाया। ऐसे में सरकार द्वारा जारी तमाम टेण्डरों में भ्रष्टाचार होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

चुनाव जीतने के लिए मोदी सरकार ने तमाम पुलों व इमारतों को हड़बड़ी में बनवाकर उसका उद्घाटन कर दिया, जैसे कि राम मन्दिर। यह भी एक कारण है कि तमाम निर्माण इतने कमज़ोर होते हैं। वहीं इन भ्रष्टाचारों की मार भी मज़दूरों-मेहनतकशों को ही झेलनी पड़ती है। एक तो ठेका प्रथा को बढ़ावा दिया जाता है ताकि मज़दूरों के लिए कोई श्रम क़ानून न लागू करना पड़े। दूसरा, जब ऐसे हादसे होते है, उसमें जान गवाने वाले भी ग़रीब ही होते हैं। यानी हम ही टैक्स भरे, हम ही निर्माण करें और हम ही मारे जायें और नेता-पूँजीपति-ठेकेदार मौज उड़ाएँ।

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