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धर्मांधता : अब्बासी खलीफा अल मुतवक्किल

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 पुष्पा गुप्ता

    _11 दिसम्बर 861 ई० को दसवें अब्बासी ख़लीफ़ा अल मुतवक्किल की हत्या उसके बेटे अल-मुन्तसिर ने तुर्क ग़ुलाम की सहायता से करायी थी। अल मुतवक्किल का दौर एक तरफ़ राज्य की भगौलिक सीमाओं में वृद्धि की पराकाष्ठा के लिये जाना जाता है तो दूसरी तरफ़ धार्मिक असहिष्णुता के लिए भी।_

          इस दौर में मुताज़िला विचारधारा का दमन करते हुए इसे हर स्तर पर सख़्ती से कुचल दिया गया। 

        इस दौर में क़ुरान के सृजन के सम्बंध में जारी विवाद का इख़्तेताम इमाम हंबल की विचारधारा के अनुसार हो गया (852 ई०)। और, इस प्रकार मिहना ख़लक़ अल क़ुरान (ordeal [regarding] the createdness of the Qur’an”) के दौर का ख़ात्मा हो गया।

अल मुतवक्किल के हृदय में अहले बैत अर्थात पैग़म्बर (स) के परिवार लिये बहुत कटुता थी। नजीब अकबराबादी लिखते हैं कि वह अहले बैत से दुश्मनी में इतना आगे बढ़ गया था कि वह अपने पुत्रों को हसन-हुसैन से ज़्यादा श्रेष्ठ समझता था।

      _एक बार उसने अपने बेटों के मुआल्लिम (अध्यापक) से सवाल किया कि उसके बेटे श्रेष्ठ हैं या हसन-हुसैन,, तो मुआल्लिम ने जवाब दिया कि उनके ग़ुलामों के पुत्र ख़लीफ़ा के बेटों से श्रेष्ठ हैं। उसके इस जवाब पर गर्दन काट दी गयी।_

       मुतवक्किल के दौर में उदारवादी नीतियों से हटते हुए कट्टरवाद को बढ़ावा दिया जाने लगा। ईसाई और यहूदी (ज़िम्मी) नागरिकों के लिए अपनी शिनाख़्त के लिये पृथक वस्त्रों के धारण का हुक्म दिया गया। इसके साथ एक घटना की चर्चा बहुत होती है कि जब उसने 10 दिसम्बर को कशमार स्थित पारसीयों के लिए पवित्र साइप्रस के वृक्ष के काटे जाने का हुक्म उसने जारी किया था लेकिन इसके अगले दिन उसकी हत्या हो जाती है।

मुतवक्किल ने कर्बला स्थित इमाम हुसैन की क़ब्र के निशान को भी मिटाने की कथित तौर पर कोशिश भी की थी। 

मुतवक्किल के बाद अब्बासी ख़िलाफ़त के पतन का दौर शुरू हो जाता है। दरबार में तुर्की फ़ैक्शन का वर्चस्व क़ायम हो गया तथा ख़लीफ़ा केवल एक संस्था के रूप में बाक़ी रहा। 

      _इतिहास का अध्ययन धार्मिकता से इतर ज़रूरी है क्योंकि कोई भी राज्य कभी भी जनपक्षधर नहीं रहा। शासक का मूल उद्देश्य करों की वसूली और सीमाओं का विस्तार रहा है, यह अवश्य हुआ कि रियाया का वह हिस्सा जो शासक से धार्मिक हमअहंगी रखता था थोड़ी बहुत रियाअत हासिल कर लेता था।_

     लेकिन वर्तमान में किसी भी शासक की कट्टरवादिता का मूल्यांकन तत्कालीन परस्थितियों में करना चाहिए।

      _वर्तमान में धार्मिक या राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये इनका इस्तेमाल किसी भी तरह स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए._

    {चेतना विकास मिशन}

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