Site icon अग्नि आलोक

कट्टरता कोई भी करे, अस्वीकार्य है, निंदनीय है

Share

अगर कोई हिन्दु ऐसा माने कि मेरा धर्म सब से महान है। पूरे देश में सबको हिन्दु धर्म स्वीकार कर लेना चाहिए तो ये कट्टरता है।
कोई मुस्लिम ऐसा माने कि पूरी दुनिया में सबको मुस्लिम बन जाना चाहिए। तो ये कट्टरता है।
यही बात क्रिश्चियन, सिख, बौद्ध जैन, यहूदी, नास्तिक सबको लागु होती है।
अगर कोई नास्तिक भी ऐसा सोचे कि नास्तिक के अलावा किसी जीने का अधिकार नहीं है तो यह कट्टरता है। कंई बार नास्तिकों में भी कट्टरता पायी जाती है। नास्तिक ना होने के बावजूद भी व्यक्ति अच्छा इन्सान हो सकता है जैसे कि सुभाष चंद्र बोस, नास्तिक होने के बावजूद भी व्यक्ति बूरा इन्सान हो सकता है जैसे कि सावरकर।
नास्तिको को भी समझना चाहिए कि एक साथ सारी दुनिया नास्तिक नहीं बन सकती है। जैसे-जैसे वैज्ञानिक चेतना का विकास होता जायेगा लोग नास्तिक बनते जायेंगे। इस में बरसो लग सकते हैं। शायद एक दो शताब्दी भी लग जाये।
लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि नास्तिक नहीं है उनको आप इन्सान ही ना समझो। मूर्ख समझो। जन्म से धर्म और ईश्वर की धारणा मन में बिठाई जाती है। उसे निकालना सबके लिए आसान नहीं है। जो ईश्वर की धारणा को मन से नहीं निकाल पाते हैं वो भी एक इन्सान होने के नाते सन्मान के पात्र हैं। उनके साथ भी इन्सानियत भरा व्यवहार करना चाहिए।
जैसे हिन्दु मुस्लिम लडाई सामाजिक सौहार्द के लिए खराब है उसी तरह आस्तिक नास्तिक लड़ाई भी समाज के लिए हानिकारक है। आस्तिक नास्तिक के बीच भी भाईचारा जरूरी है।
जब तक कोई आस्तिक दूसरों लोगों के लिए खतरा नहीं है तब तक उसे स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं है।
एक दिन में दुनिया एक जैसी बन जाय ये संभव नहीं है।  आपको विविधता का सम्मान करना होगा। अगर लोग आपकी सोच को समझ ना पाये तो भी उनके साथ धैर्य से सौजन्यता पूर्वक भाईचारा वाला संबंध बनाये रखना सामाजिक सौहार्द के लिए जरूरी है।
*सोशल मीडिया से प्राप्त ज्ञान*

Exit mobile version