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“अनाज उडाता हुआ किसान

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गोपाल राठी

धुंधली सी स्मृति है …1971 के आम चुनाव की …. होशंगाबाद नरसिंहपुर लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार बाबू नीतिराजसिंह के खिलाफ प्रख्यात समाजवादी नेता हरिविष्णु कामथ साहब का चुनाव मैदान में आना तय था ..परन्तु उनका नाम मतदाता सूची में से गायब होने के कारण द्वारकाप्रसाद पाठक (?) विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में आये …कांग्रेस का चुनाव चिन्ह “बैल जोड़ी “बदलकर “गाय बछड़ा” हुआ था और विपक्षी उम्मीदवार का चुनाव चिन्ह “अनाज उडाता हुआ किसान ” था .l…
ये सब वाकया लिखने का मकसद ये है की इस अन्तराल में कृषि क्षेत्र में हुई प्रगति के बाद इस तरह के चिन्ह बेमतलब हो गए है ..अब .अनाज उडाता हुआ किसान कही दिखाई नहीं देता l इस बीच चलन में आये थ्रेसर आदि कृषि यंत्रों को हार्वेस्टर ने विदा कर दिया l

अनाज उड़ाने की इस क्रिया को उडावनी कहा जाता था l फसल कट कर जब खलिहान में आती थी तो उसे बैल के पैरों से बार बार कुचला जाता था l कुचलने के बाद उसे ऊंचे स्थान पर खड़े होकर सुपडे में लेकर इस तरह उड़ाया जाता था कि भूसा हल्का होने के वजह से थोड़ा दूर जाकर गिरे l इस क्रिया में हवा की दिशा अनुकूल होना ज़रूरी होता था l बाद में इस क्रिया को करने के लिए एक मशीन आई जो बिना ऊर्जा के मानव श्रम से चलती थी l एक हेंडिल को घुमाकर पंखा चलाया जाता था l उडावनी की इस मशीन के बाद थ्रेसर चलन में आया l इस सब मशीनी और मानवीय क्रियाओं के बाद बाइप्रोडक्ट के रूप में मवेशियों के लिए पर्याप्त भूसा प्राप्त मिल जाया करता था l लेकिन हार्वेस्टर के विराट स्वरूप ने सभी का कार्य खत्म कर दिया l हार्वेस्टर से फसल की कटाई से लेकर अनाज प्राप्त करने तक की सारे कृषि क्रियाकलाप सम्पन्न हो जाते है l यह किसानों के लिए अत्यंत उपयोगी यंत्र साबित हुआ l हार्वेस्टर के त्वरित कार्य के कारण किसान आज तीन तीन फसल ले पा रहा है l हार्वेस्टर में भूसा प्राप्त करने का कोई प्रावधान नहीं होता l कटाई के बाद जो ठूठ बचते है उन्हें नरवाई या पराली कहा जाता है l किसानों द्वारा नरवाई से मुक्ति पाने का सरल और सस्ता उपाय उसमें आग लगाना है l नरवाई में आग लगाने से विगत वर्षों में कई दुर्घटनाएं हो चुकी है l आग लगाने से मित्र कीट खत्म हो जाते है और जमीन को बहुत नुकसान होता है l हार्वेस्टर से भूसा प्राप्त नहीं हो पाता जिस कारण किसानों की पशुपालन में अब विशेष दिलचस्पी नहीं रही l बछिया तो बड़े होकर गाय बनती है दूध दही घी देती है लेकिन बछड़ा तो किसान के लिए भार बन जाता है l पशुधन का अब खेती में उपयोग भी खत्म हो चुका है l आधुनिक खेती पशुधन विशेषकर गाय बैल के लिए अभिशाप सिद्ध हुई है l (गोपाल राठी )


	
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