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किसान ही है भारत में असली बाघ

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बाघ के बारे में कहा जाता है कि वह सबसे हिंसक पशु होने के साथ-साथ अपने जरूरत के हिसाब से ही शिकार करता है. यानी जब वह भूखा होता है तभी वह शिकार करता है. जब वह भूखा नहीं होता तब वह किसी का शिकार नहीं करता, भले ही उसके आसपास दर्जनों अन्य प्राणी ही क्यों न हो. शायद बाघ की इसी खासियत के लिए सम्राट अशोक ने बाघ को अपना प्रतीक बनाया और बाद में भारत सरकार ने भी सम्राट अशोक के इसी चिन्ह को अपना राजचिन्ह घोषित करते हुए बाघ को राष्ट्रीय प्रतीक बना लिया. संघी पाठशाला जो भारतीय समाज में व्याप्त हर सम्मानित प्रतीकों को अपने एजेंडे के तहत बदनाम होने तक दुरूपयोग करता है, उसने बाघ का प्रतीक उन गुण्डों-बदमाशों को समझ लिया जो हर कमजोरों की हत्या करना, लूटना, कुचलना अपना अधिकार समझता है.

परन्तु, अगर हम सम्राट अशोक के बाघ को प्रतीक बनाने के चिन्तन शैली पर भरोसा करें तो बाघ दरअसल देश में रहने वाले शांतिप्रिय वे नागरिक हैं, जिन्हें किसान कहा जाता है. दरअसल किसान ही सम्राट अशोक का बाघ हैं, जिसे संघी गुण्डों ने अपराधियों और बलात्कारियों का प्रतीक बना दिया है. सवाल उठता है किसान ही क्यों सम्राट अशोक का बाघ है ? जवाब है अपने खेतों में काम करने वाले किसान जिस तरह धीर-गंभीर होकर खेतों से अन्न उगाता है और अपने परिवार सहित समूचे देश का पेट भरता है, वहीं किसान जब अपने खेतों को संकट में पाता है तब वह बड़े-से-बड़े शहंशाहों को कब्र में मौत की नींद सुला देता है. खुद सम्राट अशोक ने भी इसी किसानों की सहायता से सिंहासन हासिल किया और मगध साम्राज्य को समूची दुनिया में प्रतिष्ठित किया. किसान सदैव ही युद्धों में में शक्ति का स्त्रोत है, ठीक बाघ की तरह.

दूसरे शब्दों में कहा जाय तो किसान बाघ से भी ज्यादा हिंसक और भयानक है, अगर उसकी जमीन को उससे छीनने की कोशिश की जाये. यही कारण है कि दुनिया भर में सबसे ज्यादा खून किसानों ने ही बहाया है, किसानों का ही बहा है. संभवतः यही कारण है कि प्रथम समाजवादी देश की स्थापना करने वाले रूस के महान शिक्षक लेनिन ने मजदूर को आगे बढ़ा हुआ तबका मानते हुए भी किसानों को समाजवादी राष्ट्र के निर्माण के लिए संगठित किया. प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भी सबसे ज्यादा खून किसानों का ही बहा है. यहां तक कि आज भी देश की सीमाओं की रक्षा में किसानों के ही बेटे जुटे हैं, और आये दिन अपना खून बहा रहे हैं.

अब जब केन्द्र की अंबादानी का नौकर यह मोदी सरकार किसानों के जमीनों को छीनकर अपने मालिक अंबानी-अदानी के हाथों में डालना चाह रही है, तब अपनी जमीन को बचाने के लिए देश भर के किसान अपनी-अपनी जागरूकता के हिसाब से करोड़ों की तादाद में उठ खड़े हुए हैं और अपनी 10 महीने से लगातार चल रहे दुनिया के सबसे विशाल जनान्दोलन में 700 से अधिक किसानों की शहादत की खून से रंगा परचम अंबानी-अदानी के इस मोदी सरकार के गले की फांस बन गया है.

अंबानी-आदानी के ‘रहमोकरम’ पर जिंदा रहने वाला देश के मुख्यधारा की मीडिया किसानों के खून से रंगी इतिहास को भुलाने के लिए आये दिन किसानों को गरीब, फटेहाल, रोते-कलपते हुए, फटी बिबाईयां लिये खेतों में काम करते हुए दिखाना चाहता है. वह किसानों को यह भूला देना चाहता है कि दुनिया के तमाम हिंसक आन्दोलन या विद्रोहों में किसानों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है. वह किसानों को यह भूला देना चाहता है कि किसान ही वह ताकत है जिसने दुनिया का इतिहास बार-बार लिखा है. वह किसानों को संघियों के गुण्डे बदमाशों के रहमोकरम पर रखना चाहता है, जो जब चाहे किसानों के ऊपर अपनी कर को चला कर उसकी हत्या कर दे, उसकी जमीनों को छीनकर बदमाशों के हवाले कर दे.

यह अंबानी-अदानी की मीडिया सम्राट अशोक के प्रतीक बाघ में से किसानों को हटाकर अब भाड़े के हत्यारों, बलात्कारियों, गुडों, तस्करों, माफियाओं को शामिल करना चाहता है, यही कारण है कि अब ऐसे असमाजिकतत्व खुद को बाघ कहने लगे हैं और सम्राट अशोक के खिलाफ बोलने लगे हैं. इसमें संघी सबसे आगे बढ़कर सम्राट अशोक के खिलाफ दुश्प्रचार में जुट गये हैं.

पिछले 10 महीनों से अपनी जमीनें छीने जाने के खिलाफ शांतिपूर्ण आन्दोलन कर रहे हैं. शांतिपूर्ण आन्दोलन कर रहे इस बाघ किसान को खालिस्तानी, आतंकवादी, माओवादी, चोर, डकैत, मवाली आदि-आदि जैसे संबोधनों से संबोधन करती आ रही मीडिया और भाजपा के नेताओं, मंत्रियों, कार्यकर्त्ताओं, आईटीसेल के गुण्डों का हर दुश्प्रचार विफल साबित हुआ. इससे बौखलाये इन गुण्डों ने अब किसानों पर कातिलाना हमला करना शुरू कर दिया.

पिछले दिनों करनाल में पुलिस अधिकारियों के द्वारा हर किसानों का सर फोड़ देने का आदेश देने के बाद उठे किसानों के बाबंडर ने सरकार को उस पुलिस अधिकारी पर कार्रवाई करने पर विवश होना पड़ा. जिससे ऐसा लगता है कि अब पुलिस अधिकारियों के द्वारा किसानों पर सीधी कार्रवाई से सरकार बचने की कोशिश करेगी. तब इस संघी गुण्डों ने नया पैतरा आजमाया, जो लखीमपुर खीरी में सफलीभूत हुआ.

संघी गुण्डों ने लखीमपुर खीरी में 4 किसानों को अपनी गाड़ी से कुचलकर मौत के घाट उतार दिया. लेकिन इन संघी गुण्डों को यह अहसास नहीं हुआ होगा कि किसान आन्दोलनकारी इन गुण्डों को भी मौत के घाट उतार कर त्वरित न्याय कर देगी. इन गुण्डों को पूरी उम्मीद होगी कि वह किसानों को कुचलकर मार डालने के बाद भी उनका बाल तक बांका नहीं होगा. बाद में कानूनी पैतरों से तो बच ही निकलेंगे और सम्मानित होकर विधायकी-सांसदी आदि जैसा पद मिल जायेगा. क्योंकि जैसा कि प्रचारित किया गया है कि शांतिपूर्ण का अर्थ यह होता है कि मारो, कुचल दो, बलात्कार कर दो, किसान कुछ भी नहीं करेगा. रो-धोकर रह जायेगा. परन्तु, जब किसानों ने अपनी मौत का न्याय त्वरित ही ले लिया तब ये तमाम मीडिया, संघी, यहां तक सुप्रीम कोर्ट भी बौखला गया.

चूंकि देश में संवैधानिक तौर पर किसानों की मांग पूरी तरह जायज है और उनका आन्दोलन भी पूर्णतया लोकतांत्रिक चरित्र के अनुरूप है, इसलिए सत्ता के लाख चाहने के बावजूद किसान आन्दोलनकारियों के खिलाफ सेना, अर्द्ध-सेना आदि का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. ऐसे भी अब संघी गुण्डों ने खुद को किसानों के खिलाफ गाड़ियों से कुचल कर भाग जाने, गोली चलाने आदि जैसे कामों को अंजाम देने लगी है, जैसा कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा है. यही वजह है कि आज भी लखीमपुर खीरी के ही तर्ज पर हरियाणा में जारी किसान आन्दोलनकारियों को कुचलते हुए एक सांसद के गुर्गे की गाड़ी निकल गई, जिसमें एक किसान शहीद हो गये और एक गंभीर रूप से घायल हो गये.

बहुत अच्छा, अगर इसी तरह संघी गुण्डे किसान आन्दोलनकारियों के खिलाफ हिंसा का प्रयोग करता रहा, तब वह दिन दूर नहीं जब किसान आन्दोलनकारी अपने असली स्वरूप का दर्शन इन संघी गुण्डों और उसकी सरकार को करा दें. अगर ऐसा होता है तो निश्चित तौर पर देश में संघियों को खोज-खोजकर मार डाला जायेगा, जिसकी जिम्मेदारी भी इसी संघी गिरोहों की होगी. तब इसे बचाने के लिए भारतीय सेना और पुलिस भी उसे बचा नहीं पायेगी. संघी गुण्डे इसे जितनी जल्दी समझ ले उतना ही बेेहतर होगा, अन्यथा उसकी किसान उसे समझा देगा क्योंकि किसान इस दुनिया का सबसे हिंसक प्राणी है. अगर किसान का जमीन छीनोगे तो किसान तुम्हें उसी जमीन में जमींदोज कर देगा.

 ‘प्रतिभा एक डायरी’ से

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