अग्नि आलोक

*भेदभाव, दमन और लूट के खिलाफ किसानों का संघर्ष जारी है* 

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*डॉ सुनीलम*

  मुलताई में 12 जनवरी 1998 को किसान आंदोलन पर पुलिस गोली चालन हुआ था। 26 वर्ष बाद यदि देखा जाए कि किसानों की स्थिति में क्या अंतर आया तो पता चलेगा कि किसानों के साथ भेदभाव, अन्याय , दमन और लूट जारी है। मुलताई गोली चालन के बाद मंदसौर गोली चालन हुआ लेकिन किसान आंदोलन रुका नहीं। मुलताई गोली चालन के बाद भले ही देश में किसान संगठनों की व्यापक एकजुटता न बनी हो लेकिन मध्य प्रदेश के मंदसौर में हुए गोली चालन के बाद 250 किसान संगठनों ने मिलकर किसानों के साथ हो रहे भेदभाव, अन्याय और लूट को खत्म करने के लिए अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का गठन किया। फिर कोरोना काल के दौरान केंद्र सरकार द्वारा जब तीन किसान विरोधी कानून लागू किए जाने पर संयुक्त किसान मोर्चा गठित कर 550 किसान संगठनों की एकजुटता बनाई।  दिल्ली की सीमाओं पर 380 दिन तक आंदोलन चला जिसमें 732 किसान शहीद हुए। मोदी सरकार को तीन किसान विरोधी कानून वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। सरकार ने एमएसपी की कानूनी गारंटी को लेकर किसानों को जो आश्वासन दिया वह धोखा साबित हुआ, जिसके खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा का संघर्ष आज भी जारी है।

*चौतरफा भेदभाव*

 किसानों का समर्थन मूल्य तय करने और कर्मचारियों का वेतनमान तय करने तथा औद्योगिक उत्पादों का एमआरपी तय करने के मापदंड अलग-अलग है। कर्मचारियों का वेतन उसके परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के आधार पर तय किया जाता है जबकि किसान का समर्थन मूल्य केवल किसान की निजी आवश्यकता अनुसार।

 किसान को कुशल कारीगर मानकर कभी उसका पारिश्रमिक तय नहीं किया गया। कर्मचारी या कुशल श्रमिक की तरह पेंशन भी किसानों को नहीं दी जाती है।

    देश में किसानों की जनसंख्या 65% है लेकिन बजट का 2% भी किसानों के लिए आवंटित नहीं किया जाता है। किसानों को सिंचाई हेतु रात के समय बिजली दी जाती है। मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य में किसानों को सरकार 10 घंटे बिजली देने का वादा करती है लेकिन वास्तविक तौर पर किसानों को 8 घंटे भी बिजली नहीं मिलती है। जबकि कारखानों को, शहरों में व्यापारियों को, बाजारों के लिए 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराई जाती है।

     किसानों के साथ भेदभाव का आलम यह है कि किसान कितनी भी जमीन का मालिक क्यों न हो? उसकी जमीन की कीमत लाखों या करोड़ों में क्यों न हो,  उसे घर बनाने के लिए राष्ट्रीयकृत बैंकों द्वारा जमीन के आधार पर होम लोन नहीं दिया जाता ।

   किसानों का फसल बीमा राशि अथवा मुआवजा भी अनावरी के आधार पर दिया जाता है और आज भी अनावरी पटवारी हल्के के आधार पर तय की जाती है, किसान के खेत में हुए नुकसान के आधार पर नहीं अर्थात जब कोई वाहन का बीमा कराता है तो उसे गाड़ी के नुकसान का हर्जाना मिलता है लेकिन किसान के खेत में नुकसान होने पर उसे भुगतान नहीं किया जाता जब तक कि नुकसान सामुहिक पटवारी हल्के में न हुआ हो।

 सरकार दुनिया भर में प्रतिबंधित कीटनाशक किसानी हेतु बाजार में  बिकने देती है जबकि प्रतिबंधित कोई भी दवाई या कोई दूसरा सामान, बाजार में बिक नहीं सकता।

   मंडियों में किसानों से सब्जियों और फलों पर बिचौलियों द्वारा 14%  तक कमीशन वसूला  जाता है जबकि इस तरह की कोई वसूली औद्योगिक सामानों की बिक्री पर नहीं होती है। किसान की फसल जब बाजार में आती है, तब उसका दाम 25 से 90% तक गिर जाता है। मिसाल के तौर पर मेरे क्षेत्र मुलतापी में पत्ता गोभी जो आमतौर पर शहरों में 40 रूपए किलो बिकती है। उसे 4 रूपए तो क्या 40 पैसे में भी कई बार फसल आने पर व्यापारी खरीदने को तैयार नहीं होते।

अभी मुलतापी में सोयाबीन साढ़े चार हजार रुपए क्विंटल बिक रही है जबकि यही सोयाबीन 2 वर्ष पहले साढ़े सात रुपए क्विंटल बिक रही थी।

  कई बार किसानों से कृषि उत्पाद खरीद कर व्यापारी फरार हो जाते हैं लेकिन ऐसा औद्योगिक माल के साथ कभी नहीं होता। 

दुग्ध उत्पादन करने वाले किसानों को गांव में दूध का भाव 20 रूपए लीटर दिया जाता है जबकि किसान को पशु खरीदने, चारा खिलाने, रखरखाव करने में तथा दूध निकालने में जो मेहनत और लागत आती है वह 20 रूपए से कहीं अधिक होती है। दूसरी तरफ बोतल बंद पानी 20 से 50 रूपए लीटर तक बेचा जाता है। 

  किसानों के खेत का ट्रांसफार्मर जलने पर उसे स्वयं उतार कर सुधरवाने ले जाना होता है और ऑइल बदलना होता है। नया ट्रांसफार्मर और खंभे लगाना हो तो अपने पैसों से लगाना होता है।  पहले सरकार द्वारा खंबे और ट्रांसफार्मर पर सब्सिडी दी जाती थी लेकिन  अब वह भी बंद कर दी गई है।

किसानों के साथ यह भेदभाव अंग्रेजों के समय से होता आ रहा है जो आजादी के 76 वर्ष बाद भी सतत जारी है।

   *किसानों से लूट*

   किसानों से लूट का आलम यह है कि मोदी सरकार ने 50 किलो की यूरिया की बोरी  को पहले नीम कोटेड करके  45 किलो की कर दी, अब सल्फर कोटेड करके 40 किलो की बोरी कर दी यानी 10 किलो वजन कम कर दिया है। दाम वही है ।

   किसानों का समर्थन मूल्य लागत मूल्य से डेढ़ गुना होगा इस सिद्धांत को सरकार ने स्वीकार किया है  लेकिन स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिश के मुताबिक़ सी 2+ 50% के हिसाब से किसानों को समर्थन मूल्य उपलब्ध नहीं कराया जाता। केंद्र सरकार की कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) द्वारा 23 फसलों का समर्थन मूल्य तय किया जाता है लेकिन पंजाब के अलावा देश में गेहूं और चावल भी समर्थन मूल्य पर पूरे देश में नहीं खरीदा जाता। बाकी 21 फसलें  खरीदना तो दूर की बात है। ऐसा नहीं है कि 21 फसलें बिलकुल खरीदी नहीं जाती। खरीदी तो जाती है लेकिन सीमित मात्रा में , टोकन के तौर पर अर्थात किसान जितना उत्पादन करता है वह पूरा समर्थन मूल्य पर नही खरीदा जाता है यानी कि एमएसपी कागज तक सीमित बनी हुई है।

*किसानों का दमन*

   उक्त सभी भेदभाव और लूट के खिलाफ किसान या किसान संगठन जब भी भी संघर्ष करते है तब उन्हें फर्जी मुकदमें और जेल भुगतना पड़ता है। 

आजादी के पहले भी अंग्रेजी हुकूमत किसानों पर दमन करती थी लेकिन आजादी के बाद 76 वर्षों में पूरे देश में लगातार किसान आंदोलन पर दमन की घटनाएं लगातार सामने आती रही है।

   मुलताई में जब किसानों ने अतिवृष्टि और ओलावृष्टि से फसल खराब होने पर मुआवजा मांगा तब उन्हें मुआवजा नहीं, गोली मिली। 24 किसान शहीद हुए, 150 किसानों को गोली लगी, 250 किसानों पर 67 मुकदमें दर्ज हुए तथा 17 साल तक मुकदमें चले। अंततः तीन मुकदमों में मेरे सहित चार किसानों को आजीवन कारावास की सजा हुई। मुलताई के बाद भी गोली चालन का सिलसिला थमा नही। मंदसौर में भी 6 किसान गोली चालन में शहीद हुए लेकिन भेदभाव, लूट और दमन के खिलाफ किसानों का संघर्ष आज भी जारी है।

*संयुक्त किसान मोर्चे  का संघर्ष जारी है*

     26 नवंबर से 28 नवंबर 23 के बीच देशभर के राजभवनों पर हजारों किसानों के प्रदर्शनों से यह साबित हुआ कि किसान न तो थके हैं, न रुके हैं, न झुके हैं।

  आगामी 26 जनवरी को होने वाले ट्रैक्टर मार्च से फिर किसानों  की शक्ति का आभास देश को होगा। फरवरी में किसानों की दिल्ली कूच की तैयारी है।  76 वर्षों में पहली बार किसानों के सबसे बड़े मंच, संयुक्त किसान मोर्चा और मजदूरों के सबसे बड़े मंच केंद्रीय श्रमिक संगठनों के एक मंच पर एक साथ आने से देश में किसानों और मजदूरों के संघर्ष को ऐसा मुकाम हासिल हुआ है जहां से किसानों और मजदूरों को भेदभाव, अन्याय, लूट और दमन के खिलाफ जीत हासिल करने की संभावना बढ़ गई है।

डॉ सुनीलम

राष्ट्रीय अध्यक्ष, किसान संघर्ष समिति

8447715810

samajwadisunilam@gmail.com

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