Site icon अग्नि आलोक

किसान जुमले को अमलीजामा पहनाने लखनऊ और दिल्ली जायेंगे

Share

सुसंस्कृति परिहार


इन दिनों पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की हलचल तेज हो गई है जुमलों की बौछार भी शुरू हो चुकी ।कृषि बिलों की वापसी को बतौर जुमला देखा जा रहा है ।इस बीच भाजपा का यह सोचना है कि प्रधानमंत्री की कृषि कानून रद्द करने की घोषणा से पश्चिम उत्तर प्रदेश और पंजाब में उसके साथ किसान फिर जुड़ जायेंगे और वे दोनों राज्यों में किसानों की ताकत पाकर सरकार बना लेंगे यह दिवास्वप्न की तरह ही है।पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाट काश्तकार इस बहकावे में आने से रहे वे साफ कह रहे हैं यह पी एम का एक चुनावी जुमला है जो वोट लेने के बाद आम लोग समझ पायेंगे।आज इसकी विश्वसनीयता बिहार के एक मंत्री की बात में सामने आ गई जो भाजपाई हैं और खुलकर यह कह दिए ये तो दो तीन माह के लिए है कृषि के तीनों कानून तो रहेंगे ही । इसीलिए राकेश ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌टिकैत तो मोदीजी को झूठ का गोल्ड मेडल देने की बात कर रहे हैं ।


जहां तक पंजाब का सवाल है वहां अकाली दल की वापसी की संभावनाएं तो तब बनती हैं यदि किसान मोदी जी पर भरोसा करें ।ऐसे आसार अभी तो नज़र नहीं आते जो किसान हर्ष मना रहे हैं वे मोदीजी पर यकीन नहीं कर पा रहे हैं और उनसे कई और मांगे करते नज़र आ रहे हैं यानि पंजाब का अकाली दल गुमराह होने वाला नहीं। लगभग यही बात पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के साथ है जो इन दिनों भाजपा समर्थक एक नई पार्टी के नेता हैं।पहले तो यह कहते रहे कि मैं तीनों बिल मोदी जी से वापस कराऊंगा। बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा भी। लेकिन श्रेय उन्हें नहीं मिल पाया। इससे पूर्व उन्होंने कहते हैं कि किसानों की बात पी एम और महत्वपूर्ण नेताओं तक पहुंचाई भी थी।कई दिन वहां रुके भी रहे जब बात नहीं बनी तो अपनी पार्टी बना डाली जो वैशाखी है भाजपा की।दिक्कत ये भी है कि जहां भाजपा के ख़िलाफ़ किसान बच्चा बच्चा बोल रहा हो वहां इनके पैर कैसे जम सकते हैं ?
आप ध्यान दें उत्तरप्रदेश में पी एम के लगातार घोषणाओं और उद्घाटनों के जिस तेजी से दौरे हो रहे हैं वे पंजाब में शून्य है।वे सोच रहे होंगे कि कृषि बिलों की वापसी पर किसान खेतों की ओर चल देंगे ।विरोध बंद हो जाएगा।तब पंजाब में शान से चुनाव प्रचार करेंगे लेकिन किसानों ने सब मटियामेट कर दिया। उन्होंने मोदीजी के झुकने का जश्न मनाया ज़रूर लेकिन तमाम मांगों पर वे अडिग हैं और आंदोलन जारी रहेगा।
यही वजह है कि 22नवम्बर को लखनऊ के ईको पार्क में होने वाली किसान महापंचायत की तैयारी जोरशोर से जारी हैं।  इस महापंचायत में तीन कृषि कानूनों की वापसी वाले जुमलेबाज प्रधानमंत्री के कल के भाषण के बाद आंदोलन के अगले चरण के बारे में संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से एलान किया जाएगा।   मुज़फ्फरनगर के विराट के बाद लखनऊ महापंचायत इस मायने में महत्वपूर्ण है कि यह मध्य और पूर्वी उत्तरप्रदेश के किसानों की आवाज को मुखर करेगी ।
मालूम हो कि केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को लेकर पंजाब, हरियाणा और यूपी के किसान दिल्ली की तीनों सीमाओं पर एक साल से धरना देकर प्रदर्शन कर रहे हैं।नवंबर 2020 में जब आंदोलन शुरू हुआ था उसके बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर के साथ किसान संगठनों के नेताओं के साथ उनकी कई दौर की बातचीत हुई मगर कोई सर्वमान्य हल नहीं निकल सका।  
पी एम की घोषणा के बाद भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि एक बार फिर किसान दिल्ली के खुले रास्तों से संसद तक जाएंगे। उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले दिल्ली पुलिस ने सीमा पर लगाए गए बैरिकेड हटा दिए हैं, अब किसान अपने ट्रैक्टरों से उन खुले रास्तों से संसद तक जाएगा, जहां पर दिल्ली पुलिस उनको रोक देगी वो वहीं रुक जाएंगे। इसी माह लोकसभा का शीतकालीन सत्र शुरू होने वाला है, इसी को लेकर किसान यूनियन इसकी तैयारी कर रही है। 26 नवंबर को किसान आंदोलन के एक साल पूरे हो रहे हैं, किसान उसकी भी तैयारी हो रही है। उसके बाद 29 नवंबर को किसान गाज़ीपुर और टीकरी बॉर्डर से ट्रैक्टर से संसद मार्च करेंगे। इसको लेकर दिल्ली पुलिस और खुफिया एजेंसियां भी एक्टिव हो गई हैं।
इसके अलावा  किसान मोर्चा ने तय किया है कि 26 नवंबर को आंदोलन के एक साल पूरे हो रहे हैं इसलिए संसद के शीतकालीन सत्र के शुरू होने पर एक बार फिर अपने ट्रैक्टरों से संसद तक जाएंगे। एक निजी चैनल से बातचीत में राकेश टिकैत ने कहा कि सभी सीमाओं से 26 नवंबर को किसान अपने ट्रैक्टरों से 500 की संख्या में संसद तक जाएंगे। यदि दिल्ली पुलिस उनको कहीं पर रोकेगी तो वो वहीं पर रूक जाएंगे। साथ ही 10 साल पुराना ट्रैक्टर न ले जाने को कहा, ये भी बताया कि जितने लोग दिल्ली में ट्रैक्टर से जाएंगे उन सभी के पहचान पत्र आदि मोर्चा के पास पहले से मौजूद रहेगा। 26 जनवरी वाला हाल इस बार नहीं होने दिया जाएगा।
कुल मिलाकर जिस तैयारी से डरकर पी एम ने आनन-फानन में कृषि बिलों को रद्द करने की घोषणा भारी मन से की। किसानों को बहकाने और नासमझी की तोहमत लगाई।अपने नेक इरादों को रखा। वह एक षड्यंत्र की नाईं था जो बेनकाब हो चुका है । किसान अपनी बातों पर अडिग हैं।देखना होगा किसान जुमले को कैसे अमलीजामा पहनाते हैं?

Exit mobile version